नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/शिमला/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- अब हिमाचल में अमेरिकी सेब अपना जलवा बिखेरने की तैयारी में हैं। इसमें लिए विश्व बैंक से 1134 करोड़ की वित्तीय मदद से हिमाचल में पहली बार अमेरिका से आयातित पांच लाख सेब और अन्य फलदार पौधे रोपे जाएंगे। इन पौधों को वायरस न लगे, इस कारण इन्हें क्वारंटीन किया गया है। फरवरी के अंत में एक साल की क्वारंटीन अवधि पूरी होने के बाद मार्च में बागवानों को पौधे आवंटित होंगे। सेब के एक पौधे की कीमत 750 रुपये होगी।
अमेरिका से आयात इस किस्म से सेब की पैदावार भी अधिक होगी और साथ ही ये पौधे बीमारी रोधक भी हैं। सेब की इन किस्मों से मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पैदावार ले सकेंगे। पांच लाख सेब पौधे पहली खेप में आए हैं। इसके बाद उन्नत किस्म के सेब के साथ ही आड़ू, नाशपाती, चेरी समेत कुल 10 लाख और पौधे आयात किए जाने हैं। पहले इटली से सेब के पौधे आयात किए जाते थे, जिनमें आधे से ज्यादा खराब होते थे। इस कारण अब अमेरिका से पौधे लाए गए हैं। अमेरिका से आयात सेब की नई किस्मों की बाजार में मांग तेजी से बढ़ रही है। नई किस्मों के पॉलीनेटर किस्मों का सेब भी गुणवत्ता और रंग में अच्छा है। यह सेब भी अन्य सेब की तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छे दामों पर बिक रहा है। पुरानी पॉलीनेटर सेब की मांग बहुत कम रहती है और दाम भी कम मिलते हैं।
प्रति हेक्टेयर अधिक होगी पैदावार
अमेरिका से आयात किए जाने वाले फलदार पौधों से फलों की पैदावार अपेक्षाकृत अधिक ली जा सकेगी। अमेरिका के सेब की नई किस्मों से 50 से 70 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर फल की पैदावार ली जा सकेगी। पुरानी किस्मों से सेब की पैदावार अधिकतम दस मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर होती थी।
ये हैं अमेरिका सेब की नई किस्में
अमेरिकी किस्मों में रॉयल रेड, हनीक्रस्प, सेप्टेंबर वंडर, वेजेंट गाला प्रमुख हैं। रूट स्टॉक में जनेवा-11, जनेवा-935, निग-29, बड-118, जी 11- 3935, पंजम-2 प्रमुख हैं। चेरी की किस्मों में चेलान, लैपींजा बैंटन प्रमुख हैं। नाशपाती में बाटलेट, ओल्ड होम, एफ-87 हैं। आड़ू में वैंचर, वैलिंजन स्टार, एफ-फ्यूरी किस्में शामिल हैं। ये मिट्टी, मौसम, क्षेत्र की ऊंचाई के आधार पर उगाई जा सकती हैं।
क्यों महंगे हैं अमेरिका से आयातित सेब के पौधे
अमेरिका से लाए गए सेब पौधे इसलिए महंगे हैं, क्योंकि एक साल तक इन पौधों को क्वारंटीन किया जाता है, ताकि विदेश से कोई बीमारी या वायरस बगीचों में न पहुंचे। इनकी पैदावार अधिक होने के साथ-साथ गुणवत्ता और आकार अच्छा होने पर सेब की अंतरराष्ट्रीय मांग ज्यादा होती है। इस कारण सेब की कीमत भी ज्यादा होती है। इटली से जो सेब पौधे मंगवाए जाते थे, उनकी पैदावार कम होती है।
अमेरिका से आयात सेब और अन्य फलों के पौधे बीमारी रोधक और अधिक पैदावार देने वाले हैं। इनकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग अधिक है। ये पौधे न लाभ न हानि आधार पर बागवानों को 700 से 7500 रुपये प्रति पौधा बेचा जाना है। ग्राफ्टिंग के बाद पौधों की कीमत सौ से डेढ़ सौ रुपये रखी जानी है। – जेपी शर्मा, बागवानी निदेशक
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