नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/रायपुर/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- छत्तीसगढ़ राज्य के कृषि मंत्री रविन्द्र चैबे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर धान का समर्थन मुल्य सबसे कम बढ़ाये जाने को लेकर आरोप लगाते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने एक बार फिर किसानों के साथ धोखा किया है। क्योंकि पिछले पांच साल में धान का समर्थन मूल्य सबसे कम बढ़ाया गया है।
राजीव भवन में आज मीडिया से बातचीत करते हुए कृषि मंत्री रविन्द्र चैबे ने कहा कि धान का समर्थन मूल्य वैसे तो 53 रुपए बढ़ाया गया है लेकिन अगर प्रतिशत में देखें तो पिछले साल की तुलना में सिर्फ 2.92 प्रतिशत बढ़ा है। नरेंद्र मोदी सरकार ने कल चार तथा कथित बड़ी घोषणाएं की, लेकिन चारों में झूठ और धोखा छिपा हुआ है। पहले तो समर्थन मूल्य में न्यूनतम बढ़ोत्तरी करते हुए यह कहना कि किसान को लागत का डेढ़ गुना मूल्य मिल रहा है, दरअसल सरकार ने लागत का आकलन ही गलत किया है। जिन 14 फसलों का समर्थन मूल्य घोषित किया है उनमें दो को छोड़कर सब पांच प्रतिशत या उससे से कम हैं। धान और अन्य फसलों के समर्थन मूल्य में वृद्धि तो बाजार में बढ़ी महंगाई की दर से भी कम है। दूसरी घोषणा यह है कि किसानों को 7 प्रतिशत की दर पर कर्ज दिया जाएगा। वास्तविकता यह है कि यह पुरानी योजना है। तीसरी घोषणा समय पर कर्ज चुकाने पर तीन प्रतिशत सब्सिडी देने की है। इसका सच भी यह है कि यह छूट पहले से मिलती आ रही है। चैथी घोषणा यह है कि किसानों के लिए ब्याज में छूट 31 अगस्त तक बढ़ा दी गई है। सच यह है कि किसानों को ब्याज से छूट नहीं है बल्कि पटाने के समय में छूट मिली है। ऐसे समय में जब किसान दबाव और तनाव में है मोदी सरकार ने किसानों का भला करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं।
चैबे ने कहा कि 20 जून, 2018 को नमो ऐप पर किसानों से बातचीत करते हुए खुद मोदी जी ने ‘लागत़50 प्रतिशत’ का आंकलन ‘सी 2’ के आधार पर देने का वादा किया था। उन्होंने स्पष्ट तौर पर था कहा कि फसल की लागत मूल्य में किसान के मजदूरी व परिश्रम, बीज , खाद, मशीन, सिंचाई, जमीन का किराया आदि शामिल किया जाएगा। लेकिन लागत का आकलन करते हुए इस फॉर्मूले को दरकिनार कर दिया गया। केंद्र सरकार कह रही है कि धान की प्रति क्विंटल लागत 1245 रुपए है। अगर इसमें सारे खर्च जोड़ दिए जाएं तो किसी भी सूरत में धान की लागत इससे बहुत अधिक पड़ती है। यानी मोदी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के वादे पर खरी नहीं उतरी है। चैबे ने कहा कि भाजपा की अटल बिहारी बाजपेयी सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 6 वर्षों में 490 रू. से 550 रू. किया था। यानी मात्र 60 रू. की वृद्धि की थी। अब मोदी सरकार ने शुरुआत के चार वर्षों में मात्र 200 रु.की वृद्धि की थी।
उन्होने बताया कि चूंकि 2018-19 चुनावी साल था तो उस साल 200 रू. की वृद्धि हुई और चुनाव खत्म होते ही वृद्धि 85 रू. पर सिमट गई। इस वर्ष सिर्फ 53 रू. प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है। जबकि कांग्रेस ने अपने 10 वर्षों के शासनकाल में समर्थन मूल्य में 890 रू. की वृद्धि की थी। यूपीए-1 शासनकाल में धान का समर्थन मूल्य 5 वर्षों में 2004 से 2009 तक 450 रूपए बढ़ाया गया। तब धान का मूल्य 550 रू. प्रति क्ंिवटल से 900 रू. प्रति क्ंिवटल हो गया था। यूपीए-2 शासनकाल में 2009 से 2014 तक 5 वर्षों में धान का समर्थन मूल्य 440 रूपए बढ़ाया गया था। चैबे ने कहा कि खेती की लागत बढ़ रही है तो धान का दाम उसी अनुपात में क्यों नहीं बढ़े? लगातार कृषि आदानों खाद कीटनाशक दवा कृषि उपकरणों में जीएसटी लगने से दाम बढ़े हैं। एक और षड़यंत्र किसानों के खिलाफ चल रहा है। वो यह कि किसानों को मिलने वाली सारी सब्सिडी को खत्म करके उसे नकद के रूप में किसान के खातों में डाल दिया जाए। यह किसानों को ठगने का एक और षडयंत्र है। सब्सिडी की राशि आज के मूल्य पर गिनकर खातों में डाल दी जाएगी और किसानों को बाजार मूल्य पर खाद आदि खरीदने को कहा जाएगा। बाजार की कीमतें बढ़ती जाएंगी और सब्सिडी स्थिर रहेगी। अगर मोदी सरकार इतनी ही उदार है तो किसानों के लिए यह योजना लागू करने के साथ उद्योगों में भी लागू करे। कम से कम अपने चहेते उद्योगपतियों पर लागू करे और उन उद्योगों से कहा जाए कि जमीन, बिजली, पानी और टैक्स की छूट खत्म करके नकद दे देंगे और वे भुगतान बाजार दर पर करें। क्या उद्योग ऐसा कर पायेंगे? अगर उद्योग ऐसा नहीं सकते तो किसानों के साथ सब्सिडी का यह षड़यंत्र क्यों?
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