पत्रकारों को लेकर सरकार नही गंभीर, कोरोनावारियर्स पर अब बेरोजगारी की मार

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

January 2025
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031  
January 23, 2025

हर ख़बर पर हमारी पकड़

पत्रकारों को लेकर सरकार नही गंभीर, कोरोनावारियर्स पर अब बेरोजगारी की मार

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच भी देशभर के मीडियाकर्मी लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन मीडिया संस्थानों की संवेदनहीनता का आलम यह है कि जोखिम उठाकर काम रहे इन पत्रकारों को किसी तरह का बीमा या आर्थिक सुरक्षा देना तो दूर, उन्हें बिना कारण बताए नौकरी से निकाला जा रहा है। फिर भी कोरोनावारियर्स के रूप में लगातार काम कर रहे पत्रकारों पर पहले तो सिर्फ कोरोना संक्रमण का ही खतरा था लेकिन अब तो सरकार की उपेक्षा के चलते उनकी रोजी रोटी पर ही खतरा मंडराने लगा है। हालांकि सरकार बार-बार कह रही है कि किसी को भी नौकरी से नही निकाला जायेगा लेकिन उसकी नाक तले ही मीडिया संस्थान धड़ाधड़ पत्रकारों को निकाल रहे है और सरकार तमाशबीन बनी हुई है।
देश में कोरोना संकट के बीच बड़े से लेकर छोटे लगभग हर तरह के मीडिया संस्थानों से पत्रकारों को निकाले जाने के मामले लगातार सामने आए हैं। कई अखबारों ने सर्कुलेशन कम होने का हवाला दिया है, तो कुछ संस्थानों ने विज्ञापन का पैसा कम होने की बात कहकर पत्रकारों पर गाज गिराई है। ऐसे कई अखबार हैं, जिनके कुछ एडिशन बंद कर दिए गए हैं, कई मीडिया संस्थानों में पत्रकारों के वेतन में कटौती की जा रही है तो कुछ संस्थानों ने कर्मचारियों को अवैतनिक छुट्टियों पर भेज दिया है। कुछ दिनों पहले द हिंदू के मुंबई ब्यूरो से लगभग 20 पत्रकारों से इस्तीफा लिए जाने का मामला सामने आया था. अखबार के कर्नाटक और तेलंगाना सहित कई राज्यों के ब्यूरो से भी पत्रकारों को नौकरी छोड़ने को कहा गया था। बीते तीन महीनों में इकोनॉमिक टाइम्स के विभिन्न ब्यूरो में छंटनी की गई. टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने कई संस्करण बंद कर दिए। महाराष्ट्र के सकाल टाइम्स ने अपने प्रिंट एडिशन को बंद कर पचास से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। द टेलीग्राफ ने अपने दो ब्यूरो बंद कर दिए और लगभग पचास कर्मचारियों को नौकरी छोड़ने को कह दिया। हिंदुस्तान टाइम्स मीडिया समूह ने भी लगभग 150 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। वहीं द क्विंट जैसे डिजिटल मीडिया संस्थान ने अपने कई कर्मचारियों को अवैतनिक अवकाश पर भेज दिया।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब पत्रकारों को आर्थिक और सामाजिक तौर पर अधिक मजबूत किए जाने की जरूरत है, उन्हें नौकरियों से लगातार निकाले जाने के मामले सामने आ रहे हैं, उनकी आय का स्रोत छीना जा रहा है। लेकिन हाल यह है कि मीडिया संस्थानों से लेकर सरकारों तक का रवैया उन्हें लेकर उदासीन बना हुआ है। केंद्र सरकार ने कोरोना वॉरियर्स के तौर पर काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पचास लाख रुपये के बीमा कवर का ऐलान किया है लेकिन पत्रकारों को इस तरह की सुविधा नहीं दी गई है जबकि वे भी लगातार इन वॉरियर्स की तरह जोखिम भरे माहौल में काम कर रहे हैं।
एक तरफ उनके सामने कोरोना से संक्रमित होने का खतरा है तो दूसरी तरफ नौकरी जाने का. उनके पास न आर्थिक सुरक्षा है और न ही सामाजिक। अगर काम के दौरान एक पत्रकार कोरोना से जूझते हुए दम तोड़ देता है तो उसके परिवार को सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलेगी, लेकिन इसकी चिंता न उन मीडिया संस्थानों को हैं, जहां ये पत्रकार काम करते हैं और न ही सरकार को। ‘लॉकडाउन के दौरान जब पूरा देश घरों के भीतर सिमटा बैठा था, तब कुछेक पेशों से जुड़े लोग थे, जो जोखिम के बीच बाहर निकलकर कोरोना वारियर्स के रूप में काम कर रहे थे। पत्रकार भी उनमें से एक थे लेकिन सरकार की तरफ से उनके प्रति बिल्कुल उदासीन रवैया देखने को मिला।’
‘प्रधानमंत्री ने हालांकि मार्च महीने मे फ्रंटलाइन वर्कर्स के तौर पर स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिस के साथ-साथ पत्रकारों का भी उल्लेख किया, लेकिन जिस तरह का बीमा कवर स्वास्थ्यकर्मियों को दिया गया, उससे पत्रकारों को महरुम रखा गया जबकि जोखिम पत्रकारों के लिए भी कम नहीं है। लेकिन मीडिया संस्थानों ने लॉकडाउन के दौरान नौकरियों से न निकाले जाने की प्रधानमंत्री मोदी की अपील के कुछ दिनों बाद ही पत्रकारों को नौकरी से निकालना शुरू कर दिया था और इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि प्रधानमंत्री की अपील के बाद न तो मीडिया संस्थान जागे और न ही सरकार ने इस पर कोई संज्ञान लिया।
इस संबंध में पीड़ित पत्रकारों का कहना है कि इस मसले पर सरकार की गंभीरता भी संदेह के घेरे में है। वे बताते हैं, ‘हमने पत्रकारों को आर्थिक सुरक्षा देने की मांग करते हुए अप्रैल से लेकर जून तक चार बार प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखी, जिनमें हमने पत्रकारों को आर्थिक पैकेज देने या एकमुश्त राशि देने की मांग की है. लेकिन आज तक एक भी चिट्ठी का जवाब नहीं आया है। मतलब सरकार इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रही।

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox