किसान आंदोलनः एससी की समिति पर कांग्रेस व किसानों ने उठाई उंगली

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किसान आंदोलनः एससी की समिति पर कांग्रेस व किसानों ने उठाई उंगली

नजफगढ़ मेट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र की केंद्र सरकार को झटका देते हुए तीनों कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी। इसके साथ ही अदालत ने एक उच्च स्तरीय समिति भी गठित की जो इन कानूनों को लेकर किसानों की शंकाओं और शिकायतों पर विचार करेगी। लेकिन, एससी की इस समिति पर किसानों व कांग्रेस ने उंगली उठा दी है। उनका कहना है कि समिति के सदस्य पहले ही कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके है तो किसानों को न्याय कैसे दिला पायेंगे। जिससे समिमि के काम करने से पहले ही किसानों के मन में शंका घर कर गई है।
बता दें कि बीकेयू के महासचिव राकेश टिकैत ने कहा कि इस समिति में जो लोग शामिल किए गए हैं उनमें से कई लोग पहले की नए कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। ऐसे में यह समिति निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ कैसे काम करेगी, यह बड़ा सवाल बन गया है। देश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भी इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे किसानों को न्याय नहीं मिल सकता है।
समिति में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घन्वत, दक्षिण एशिया के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. प्रमोद जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं।

इन्होंने किया है कृषि कानूनों का समर्थन
इस समिति के सदस्य और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर मान सिंह ने पहले कृषि कानूनों का समर्थन किया था। हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु के किसानों ने कानूनों के समर्थन में 14 दिसंबर को कृषि मंत्री से मुलाकात की थी। ये किसान, ऑल इंडिया किसान को-ऑर्डिनेशन कमेटी के बैनर तले कृषि मंत्री से मिले थे।
इसके वर्तमान चेयरमैन भूपिंदर सिंह मान ही हैं। तब मान ने कृषि क्षेत्र की बेहतरी के लिए सुधारों को जरूरी बताया था। इसके साथ ही उन्होंने कृषि मंत्री तोमर को एक पत्र लिखकर कहा था कि हम कृषि कानूनों के समर्थन में हैं। किसान आंदोलन में शामिल कुछ अराजक तत्व किसानों के बीच गलतफहमियां पैदा करने के प्रयास कर रहे हैं।
समिति के एक अन्य सदस्य हैं अनिल धनवट। धनवट ने पिथ्छले महीने कहा था कि केंद्र सरकार को कृषि कानून वापस नहीं लेने चाहिए। हालांकि, उन्होंने किसानों की मांग के अनुसार कानूनों में संशोधन किए जाने से इनकार नहीं किया था। उन्होंने कहा था कि कानून वापस लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि इनसे किसानों के लिए अवसर बढ़े हैं।

समिति के चारों सदस्य काले कृषि कानूनों के पक्षधर हैं- कांग्रेस
उधर, कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित की गई समिति के चारों सदस्य काले कृषि कानूनों के पक्षधर हैं। पार्टी ने दावा किया कि इस समिति से किसानों को न्याय नहीं मिल सकता है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह भी कहा कि इस मामले का एकमात्र समाधान तीनों कृषि कानूनों का रद्द करना है।
सुरजेवाला ने दावा किया कि समिति के इन चारों सदस्यों ने इन कृषि कानूनों का अलग अलग मौकों पर खुलकर समर्थन किया है। उन्होंने सवाल किया, जब समिति के चारों सदस्य पहले से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खेत-खलिहान को बेचने की उनकी साजिश के साथ खड़े हैं तो फिर ऐसी समिति किसानों के साथ कैसे न्याय करेगी? उन्होंने कहा, हमें नहीं मालूम कि अदालत को इन लोगों के बारे में पहले बताया गया था या नहीं? वैसे, किसान इन कानूनों को लेकर उच्चतम न्यायालय नहीं गए थे। इनमें से एक सदस्य भूपिंदर सिंह उच्चतम न्यायालय गए थे। मामला दायर करने वाला ही समिति में कैसे हो सकता है? इन चारों व्यक्तियों की पृष्ठभूमि की जांच क्यों नहीं की गई?

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