मधुमेह के मरीजों को कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा

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मधुमेह के मरीजों को कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- कोरोना महामारी के चलते कम आय, इंसुलिन की कमी, ग्लूकोज स्ट्रिप्स और ज्यादा वजन बढ़ जाने से दवाई लेने या देने जैसी प्रक्रिया का अनुपालन नहीं हो पा रहा है जिसके चलते मधुमेह के रोगियों की हालत काफी खराब होती जा रही है। जिसे देखते हुए प्रमुख भारतीय मधुमेह और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट संघ ने शोध पत्र में पांच संभावित परिदृश्यों की रूपरेखा बताई है। इसमें कोरोना संक्रमित मरीजों में हाई शुगर लेवल, जटिलताओं और मृत्यु दर कम करने जैसी प्रक्रियाओं के बारे में एक कार्ययोजना के बारे में सिफारिश है। उनका मानना है कि कोरोना वायरस की वजह से मधुमेह के रोगी ज्यादा खतरे में हैं। डायबिटीज के मरीजों के शरीर में ब्लड ग्लूकोज पर असर पड़ा है। इसके पीछे कारण यह है कि वो चिकित्सकों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं और संक्रमण के डर से ना ही अस्पताल जा पा रहे हैं।
संघ के प्रमुख अनूप मिश्रा का कहना है कि डायबिटीज से कोरोना होने का डर नहीं है लेकिन अगर किसी को डायबिटीज है और वो कोरोना वायरस की चपेट में आ जाता है तो उसके लिए खतरा बढ़ जाता है। डायबिटीज के साथ कोविड-19 से मरने वाले मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण टी सेल्स इम्यूनिटी का खत्म होना है। फॉर्टिस सेंटर ऑफ एक्सलेंस फॉर डायबिटीज के चैयरमेन मिश्रा का कहना है कि हाल ही में अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों में हाई ब्लड ग्लूकोज वजन बढ़ने या अनपेक्षित मधुमेह की वजह से हो सकता है। कई मामलों में ऐसा देखा गया है कि जिन लोगों को मधुमेह नहीं है, उनको कोरोना होने के बाद डायबिटीज की शिकायत हो जाती है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे – अस्वस्थ खानपान, कोई व्यायाम नहीं करना, स्टेरॉयड का इस्तेमाल और मानसिक परेशानी।
दिल्ली में किया गया हमारा शोध बताता है कि लॉकडाउन के दौरान 40 फीसदी लोगों का वजन बढ़ा है, जिसमें से 49 दिनों के लॉकडाउन में 16 फीसदी लोगों ने दो से पांच किलो वजन बढ़ाया है। एम्स के एंडोक्रिनोलॉजी के प्रोफेसर निखिल टंडन का कहना है कि अस्पताल में भर्ती होने के दौरान मरीज में मधुमेह रोग के होने का पता चलना असामान्य नहीं है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड-19 संक्रमण और अन्य मौसमी फ्लू में डेक्सामेथासोन का अनुचित इस्तेमाल हाइपरग्लेसेमिया के खतरे को बढ़ाता है। इसके अलावा गर्भधारण के दौरान हाइपरग्लेसेमिया का होना भी एक कारण समझा जा सकता है। इस पर मिश्रा कहते हैं कि हम गर्भवती महिलाओं को टेली कंसल्टेशन के जरिए सलाह देते हैं कि वह टेस्ट के लिए प्रयोगशालाओं में जाने से बचें और मधुमेह को नियंत्रण में रखें। चैथा परिदृश्य है मधुमेह के वह रोगी जो अस्पताल में भर्ती हैं और इनमें से 90 फीसदी के लिए जटिलताओं का बढ़ जाना। पांचवा परिदृश्य डायबिटीज की शुरुआत है, कोरोना की वजह से ऐसे मामले ज्यादा रिपोर्ट किए जा रहे हैं। क्योंकि अब एस-2 रिसेप्टर्स मानव कोशिकाओं में प्रवेश कर रहे हैं।

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