
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/-सरकारें जनसेवा की बजाये पार्टी सेवा पर ज्यादा ध्यान दे रही है। यह इसका ही नतीजा है कि जिस शिक्षा के नाम पर आज तक दिल्ली सरकार एक आदर्श प्रस्तूत करती आई है उसी शिक्षा के लिए दिल्ली के गरीब बच्चे दिल्ली सरकार की मनमानी के चलते महरूम रह जायेगे या फिर उस शिक्षा को पाने के लिए छात्रों व उनके परिवारों को अतिरिक्त बोझ सहना पड़ेगा। इसपर भी हो सकता है कुछ बच्चे यह फीस न भर पाये और वो 10वी और 12वीं की बोर्ड परीक्षा ना दे पाये। छात्रों व परिजनों ने सरकार से इस आदेश के वापिस लेने की अपील भी की है ताकि गरीब बच्चे कोरोना काल में शिक्षा से वंचित न रह सके।
बीते शुक्रवार को इस संबंध में शिक्षा निदेशालय की ओर से आदेश जारी किया गया। जिसमें कहा गया है कि सरकारी, सहायता प्राप्त पत्राचार विद्यालय, एनडीएमसी व दिल्ली छावनी बोर्ड के स्कूल 2018-19 की स्थिति के अनुसार ही भुगतान करें। आदेश में स्पष्ट न लिखते हुए पिछली स्थिति ही अपनाने का निर्देश दिया गया है। यानी, छात्रों से ही शुल्क वसूलकर आगे दिया जाए।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने बीते साल परीक्षा शुल्क में बढ़ोतरी की थी। इस कारण परीक्षा शुल्क के तहत प्रति विषय 300 रुपये व प्रति विषय प्रयोगात्मक परीक्षा के लिए 150 रुपये का शुल्क चुकाना होता है। इसलिए 10वीं व 12वीं के छात्रों को 2000 से 2500 रुपये तक का भुगतान करना होगा।
बीते साल दिल्ली सरकार ने अपने स्कूलों में बोर्ड परीक्षा देने वाले सभी छात्रों के परीक्षा शुल्क का भुगतान करने की घोषणा की थी। सरकार ने 3.14 लाख छात्रों की फीस का भुगतान किया था। कोरोना संकट के कारण इस बार इतनी बड़ी राशि बोर्ड को देना सरकार को मंहगा पड़ेगा।
वहीं, गरीब परिवारों को एक बच्चे के हिसाब से लगभग 2500 रुपये का भुगतान करना पड़ेगा। यदि किसी के दो बच्चे हैं तो यह राशि लगभग दोगुना हो जाएगी। इसलिए कई बच्चों ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से गुहार लगाई है कि सरकार इस बार भी उनकी फीस का भुगतान करे। इसके लिए लगभग 150 बच्चों की ओर से पोस्टकार्ड के माध्यम से उनसे अपील की गई है। यदि छात्र इस राशि का भुगतान नहीं कर पाते हैं तो वह परीक्षा देने से वंचित हो जाएंगे। ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने बताया कि मंगलवार को फीस में राहत के लिए कोर्ट में याचिका डाली जाएगी।
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