
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देश विदेश/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- कोरोना वायरस महामारी को मात देने के लिए हर कोई अपने तरीके से जुआ हुआ है। यहां तक पूरे विश्व में इसका टीका बनाने के लिए एक होड़ सी मची हुई है। हर देश जल्द से जल्द कोरोना की वैक्सीन बनाना चाहता है। हालांकि कई देशों ने इसका मानवीस ट्रायल भी शुरू कर दिया है। लेकिन कोरोना का टीका बनाने में की गई जल्दी घातक साबित हो सकती है बल्कि इसे भयंकर परिणाम भी हो सकते है। जिसे देखते हुए चिकित्सा विशेषज्ञ इसको लेकर काफी चिंतित हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन से इसमें हस्तक्षेप करने की अपील कर रहे हैं।
कोरोना महामारी की वैैक्सीन को लेकर चिकित्सा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि समय से पहले वैक्सीन जारी करना नुकसान पहुंचा सकता है। उन्होने इसके लिए 1955 में पोलियो की वैक्सीन बनाने में जल्दबाजी के नतीजों को सामने रखते हुए बताया कि जल्दबाजी के कारण इससे बेहतर नतीजे तो नहीं मिले, बल्कि बड़े स्तर पर वैक्सीन निर्माण में गड़बड़ी के कारण 70 हजार बच्चे पोलियो की चपेट में आ गए थे। इस टीके से 10 बच्चों की मौत हो गई थी। न्यूयॉर्क के बेलेव्यू हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक रेजिडेंट डॉक्टर ब्रिट ट्रोजन के मुताबिक, इस वजह से कोरोना वैक्सीन को लेकर लोगों में संदेह बढ़ सकता है। साथ ही डॉक्टरों के प्रति भरोसा भी कम हो सकता है। इसलिए उन्होने विष्व स्वास्थ्य संगठन से इस मामले में हस्तक्षेप करने व एक निगरानी बोर्ड बनाने की अपील की है।
ट्रोजन कहते हैं कि विज्ञान के मानकों के हिसाब से तैयार होने से पहले वैक्सीन रिलीज करने के लिए राजनीतिक और सामाजिक दबाव बनाया गया तो नतीजा खतरनाक हो सकता है। कोई भी वैक्सीन बीमारी को 100 फीसदी ठीक नहीं करती इसीलिए विशेषज्ञ वैक्सीन के प्रभावी होने को लेकर भी चिंतित हैं। गंभीर बीमारियों में 50 फीसदी तक असरदार वैक्सीन स्वीकार की जा सकती है। जब तक वैक्सीन लाखों लोगों पर टेस्ट नहीं की जाती तब तक डॉक्टर यह नहीं कह सकते कि वह कितनी सुरक्षित और असरदार है।
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