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  • गरीबों पर भारी पड़ रहा कोरोना, कहीं कोरोना की आड़ में अंग निकालने का धंधा तो नही चल रहा

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    गरीबों पर भारी पड़ रहा कोरोना, कहीं कोरोना की आड़ में अंग निकालने का धंधा तो नही चल रहा

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- कोरोना काल में जिस तरह से लोग सिर्फ कोरोना से ही मर रहे है और बाकि बिमारियां जैसे उड़न छू हो गई है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि कोरोना की आड़ मे कोई गहरी साजिश तो नही चल रही है। ऐसा क्या हो रहा है कि मामूली खांसी जुकाम को भी कोरोना का नाम दिया जा रहा है और लोगों की मौत भी हो रही है जिसमे अधिकतर गरीब लोग ही कोरोना के शिकार हो रहे है। पहले लोग कैंसर, टीबी, डेंगू, वायरल, जैसी बिमारियों से मर रहे थे लेकिन क्या कोरोना काल में ये बिमारियां अपने आप ठीक हो गई या अब इन बिमारियों के रोगियों से अस्पतालों की आमदनी खत्म हो गई और कोरोना के मरीजों से उन्हे अच्छी कमाई हो रही है। कहीं ऐसा तो नही की कोरोना की आड़ में लोगों के शरीर के महंगे अंग निकालने का धंधा चल रहा हो और सरकार को इसकी भनक भी ना हो। विशेषज्ञों की माने तो कोरोना काल की थोड़ी सी लापरवाही भी इस तरह के घिनौने कृत्य को जन्म दे सकती है जिसके लिए आम जन व सरकार को काफी सावधान रहने की जरूरत होगी। जिस तरह से हम कोरोना का ईलाज प्राइवेट अस्पतालों को सौंप रहे है उससे यह संभावना और भी बढ़ जाती है कि गरीबों के साथ ऐसा हो सकता है और उनकी असामयिक मौत के हम सब जिम्मेदार बन सकते हैं।
    कुछ सामाजिक संस्थाओं ने इस ज्वलंत मुद्दे पर सवाल भी उठाये है कि क्या अस्पतालों में ऐसा नही हो सकता जिसका जवाब अधिकतर लोगों हां में ही दिया है। लोगों का कहना है कि जब अस्पताल एक मरे हुए आदमी को चार दिन तक वेंटिलेटर पर रख कर उसका लाखों का बिल बना सकता है तो एक गरीब को कोरोना बताकर उसके शरीर के साथ क्या नही कर सकता। क्योंकि कोरोना से होने वाली मौत को ताबूत में बंद रखा जाता है और उस शव को किसी को देखने की इजाजत नही होती। वहीं उस शव का अंतिम संस्कार भी अस्पताल द्वारा की कराया जाता है तो क्या ऐसा संभव नही है कि अस्पताल के लालची पिशाच उसके शरीर के अंग नही निकाल सकते है। जबकि अस्पतालों में मरीजों के शोषण के रोजाना अनेको मामले सामने आते है। इस संबंध में माता मूर्तिदेवी महिला मंडल की अध्यक्षा भावना शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की है कि सरकार गरीबों की रक्षा के लिए कोरोना मामले मे कड़े कदम उठाये और अस्पतालों की जवाबदेही घोषित की जाये ताकि कोरोना की आड़ में गरीबों की असामयिक मौत रोकी जा सके। हालांकि सरकार भी मान रही है कि अब कोरोना इतना घातक नही रहा और देश में इससे रिकवर होने की दर काफी अच्छी है लेकिन फिर भी एक गरीब जब कोरोना के कारण अस्पताल जाता है तो अगले पांच दिन में उसकी मौत की ही खबर आती है। उसकी लाश फिर भी उसके परिजनों को नही मिलती जिससे यह आशंका प्रबल हो जाती है कि कहीं उसके शरीर के साथ कुछ गलत तो नही हुआ। या कहीं लालची चिकित्सकों ने उसके अंगों के लिए तो उसे नही मार डाला और फिर उसके अंग निकाल कर बेच दिये गये है। उन्होने कहा कि ऐसे अनेको सवाल है जिन पर सरकार को ध्यान देना चाहिए और आम जन की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। हालांकि दिल्ली सरकार ने कंटेनमेंट के आइसोलेशन सैंटरों में सीसीटीवी लगाने की घोषणा की है ताकि मरीज के परिजन अपने मरीज को देख सके और उससे बात भी कर सके। इससे यह साफ हो जाता है कि सरकार के मन में ऐसा जरूर आया है तभी यह कदम उठाया गया है। हालांकि यह अभी कम जगहों पर ही हुआ लेकिन सरकार को चाहिए की जहां भी कोरोना के मरीजों का ईलाज हो रहा है वहां इस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि लोगों की जान की रक्षा हो सके।

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