धरती के साथ अब सूरज भी लाॅक डाउन में

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August 10, 2025

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धरती के साथ अब सूरज भी लाॅक डाउन में

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देश-दुनिया/न्यूयाॅर्क/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- धरती पर तो एक कोरोना वायरस के आतंक के चलते पूरी धरती लाॅक डाउन हो गई है। लेकिन अब सूरज भी लाॅक डाउन में चला गया है क्योंकि अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने सूर्य की सतह पर होने वाली घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से कमी दर्ज की है। वैज्ञानिक भाषा में इसे सोलर मिनिमम का नाम दिया गया है। सूर्य पर इस तरह की घटनाओं का पृथ्वी पर सीधा असर पड़ता है और सूरज के लॉकडाउन में जाने से धरती पर भीषण ठंड, सूखा और भूकंप की संभावना बढ़ जाती है। जिसकारण वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ गई है।
                           माना जा रहा है कि सोलर मिनिमम का असर धरती पर भी देखने को मिल सकता है। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि इससे धरती के मौसम पर गंभीर असर पड़ सकता है। सूरज की किरणों में कमी होने से कई तरह के परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं। इसके अलावा सूर्य का मैग्नेटिक फील्ड भी पहले से कमजोर हुआ है। इसके कारण ही सूर्य के सतह पर कास्मिक रेज होती है और गर्म हवाएं चलती हैं। सूरज की सतह पर सोलर स्पॉट में वृद्धि देखी जा रही है। हालांकि पृथ्वी पर कोरोना वायरस के कारण अधिकतर देशों में घोषित किए गए लॉकडाउन से न केवल पर्यावरण को फायदा पहुंचा है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार गैसों का उत्सर्जन भी घटा है। लेकिन सूरज के लॉकडाउन में जाने से अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ गई है।    
                         नासा के वैज्ञानिकों में भी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इससे डाल्टन मिनिमम जैसी घटना फिर से हो सकती है। बता दें कि डाल्टन मिनिमम के कारण 1790 से 1830 के दौरान धरती पर भारी तबाही देखने को मिली थी। इस कारण भयंकर ठंड से यूरोप में कई नदियां जम गईं थीं। किसानों की फसलें खराब हो गई थी। जबकि साल 1816 की जुलाई में यूरोप में भारी बर्फबारी देखने को मिली थी। धरती के कई हिस्सों में भूकंप-सूखा जैसी स्थिति भी बनी थी। वैज्ञानिकों ने कहा है कि इस बार सोलर मिनिमम पहले की अपेक्षा ज्यादा प्रभावकारी होगा। सोलर स्पॉट के बढने से सूरज की मैग्नेटिक फील्ड कमजोर पड़ जाएंगी जिससे कास्मिर रेज में बढोत्तरी होगी। ये कास्मिक रेज अंतरिक्ष में मौजूद एक्ट्रोनॉट्स के अलावा धरती के वायुमंडल के लिए भी खतरनाक होगी। वहीं रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के वैज्ञानिकों ने बताया कि सूर्य की सतह पर प्रत्येक 11 साल में ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं। यह प्रकृति का चक्र है, इससे घबराने की जरूरत नहीं है। कुछ दिनों में सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र अपने पुराने रूप में लौटा आएगा।

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