नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- द्वारका स्थित एल एंड टी साईट पर करीब 2200 प्रवासी मजदूर मिले है। जो लाॅक डाउन के दौरान दो महीने से सेलरी नही मिलने के कारण पूरी तरह से हताश होकर परेशानी झेल रहे थे। हालांकि प्रशासन ने मजदूरों की सुध लेते हुए उन्हे उनके गृहराज्य भेजने का इंतजाम कर दिया है लेकिन फिर भी उनकी दो महीने की सेलरी कब और कैसे उनको मिलेगी इस पर कौई फैसला नही हो पाया है।
इस संबंध में जिला दक्षिण-पश्चिम डीएप राहुल सिंह ने बताया कि एल एंड टी कंपनी ने निर्माध साईट पर काम करने की इजाजत मांगी थी लेकिन सरकार के निर्देशानुसार उन्हे इजाजत नही दी गई। जिसके बाद प्रशासन को द्वारका की एल एंड टी की निर्माण साईट पर कुछ प्रवासी मजदूरों के फंसे होने की खबर मिली थी जिस पर एसडीएम कापसहेड़ा को यह मामला सौंपा गया था। मामले की जांच करने पर पता चला की इस साईट पर करीब 2200 मजदूर जबरदस्ती रोके हुए है और उन्हे दो महीने से सेलरी भी नही दी गई है जिसकारण वह अपने राज्य भी नही जा पाये हैं। प्रशासन ने मजदूरों से सारा मामला जाना और एल एंड टी से इस बारे में बात की। हालांकि कंपनी का कहना है कि वह ठेकदार को मजदूरों सेलरी व दूसरे खर्चे के लिए 500 करोड़ का भुगतान कर चुकी है। लेकिन मजदूरों को सेलरी नही मिलने से कंपनी के लिए बड़ी मुसिबत खड़ी हो गई है। केंद्र सरकार के निर्देशानुसार अगर किसी कंपनी ने कर्मचारियों की सेलरी रोकी तो उस पर कानूनी कार्यवाही की जायेगी। हालांकि कंपनी कह रही है कि यह मामला ठेकेदार व मजदूरों के बीच का है। कंपनी समय पर सारी पेम्रेन्ट कर रही है। डीएम राहुल सिंह ने बताया कि मजदूरों ने अपनी सेलरी व घर जाने की मांग रखी थी जिसपर प्रशासन ने उन्हे सेलरी दिलाने का आश्वासन दिया है। उन्होने बताया कि कंपनी ने मजदूरों की सेलरी देने की बात मान ली है। उन्होने बताया कि प्रशासन ने मजदूरों की मांग पर उन्हे घर भेजने के लिए सरकार से बात की और सचिव पी के गुप्ता ने रेलवे से बात कर उन्हे घर भेजने का इंतजाम किया। उन्होने बताया कि आज करीब 800 मजदूरों को जिनमें कुछ यूपी व बिहार के है को पूरी जांच के बाद भेजने का काम आरंभ कर दिया है। बाकि मजदूरों को अगले दो दिन में भेज दिया जायेगा। हालांकि प्रशासन ने गरीब व लाचार मजदूरों को भेजने का फैसला तो कर लिया और इसमें वाहावाही भी लूट ली लेकिन एक सवाल अभी भी खड़ा रह गया कि उक्त मजदूर दो महीने से बगैर सेलरी के रह रहे थे उनके पास एक भी पैसा नही था। तो ऐसे में वो घर जाकर क्या खायेंगे और कैसे जीवनयापन कर पायेंगे। घर में भी उनके पास भूखे मरने के अलावा कोई रास्ता नही बचा है। यहां सवाल यह भी खड़ा होता है कि प्रशासनने पहले उनकी सेलरी क्यों नही दिलवाई और उन्हें भेजने में इतनी जल्दी क्यों दिखाई गई। हालांकि डीएम भी मजदूरों की सेलरी दिनाने के बड़े-बड़े दावे कर रहे है फिर भी मजदूरों को बगैर सेलरी दिये ही खाली हाथ घर भेजा जा रहा है। यहां एक सवाल यह भी है कि सरकार अब धीरे-धीरे काम करने की इजाजत दे रही है और 17 मई के बाद हो सकता था कि इस कंपनी को भी निर्माण कार्य करने की हजाजत मिल जाती तो मजदूर यहीं पर काम कर लेते और उनका पिछला पैसा भी उन्हे मिल जाता। दूसरा सरकार का लाॅक डाउन मंे एक और अहम फैसला यह भी था कि मजदूरो को पलायन करने से रोका जाये और उनका रहने व खाने-पीने का प्रबंध संबंधित कंपनी या विभाग करे। और जिन लोगों के पास कुछ नही है उनके खाने का इंतजाम सरकार करेगी। वैसे भी सरकार इॅस्कान मंदिर किचन में पांच लाख लोगों का खाना बनवा रही है तो इन मजदूरों को भी रोका जा सकता था। फिलहाल प्रशासन मजदूरों की मैडिकल जांच कराकर उन्हे कंपनी खर्च पर उनके गृहराज्यों को भेज रहा है। और 800 मजदूर भेज भी दिये गये है। बाकि के मजदूरों को भेंजने की तैयारी की जा रही है।
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