• DENTOTO
  • ध्यान से पूर्व प्राणायाम का है खास महत्व

    स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

    शिव कुमार यादव

    वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

    संपादक

    भावना शर्मा

    पत्रकार एवं समाजसेवी

    प्रबन्धक

    Birendra Kumar

    बिरेन्द्र कुमार

    सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

    Categories

    June 2025
    M T W T F S S
     1
    2345678
    9101112131415
    16171819202122
    23242526272829
    30  
    June 11, 2025

    हर ख़बर पर हमारी पकड़

    ध्यान से पूर्व प्राणायाम का है खास महत्व

    -शरीर एवं मस्तिष्क के बीच सेतू का काम करता है प्राणायाम -अस्थिर मस्तिष्क नही माना जाता ध्यान के लिए उपयुक्त

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/सेहत/शिव कुमार यादव/- श्वास लेने और श्वास छोड़ने की क्रिया से प्राण हमारे शरीर में प्रवाहित होता। यही श्वास शरीर एवं मस्तिष्क के बीच का सेतु का काम करता है। महर्षि पतंजलि ने श्वसन को शारीरिक स्वास्थ्य का वर्धक दर्शाया है और उन्होने ध्यान से पहले प्राणायाम करना जरूरी बताया है। ध्यान के साधक बैठने की मुद्रा पर अधिकार प्राप्त करने के अगले चरण में श्वसन पर ही अधिकार का अभ्यास करते हैं। श्वास के प्रति जागरूकता हमारी दृष्टि को स्थिर एवं शांत बनाती है, ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलती है। सतत श्वांस अभ्यास से मनुष्य ध्यान के गहन स्तरों तक जा सकता है। जबकि अस्थिर मस्तिष्क ध्यान के लिये उपयुक्त नहीं माना जाता।

    अस्थिर मस्तिष्क
    योगाभ्यासी कहते हैं-ध्यान लगाना और अपनी श्वासों पर ध्यान केंद्रित करने से साधक में सर्वप्रथम श्वास लेने एवं छोड़ने के बीच लगने वाले समय में सुधार लाता है। इसका प्रभाव व्यक्ति के शरीर एवं मस्तिष्क दोनों पर स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। इसीलिए प्राणायाम महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह समस्याओं के निवारण में सहयोग करता है।

    प्राणमय कोष
    जीवन क्रिया विज्ञान भी यही बताता है। शरीर में स्थित विभिन्न ऊर्जाएं जेसे तंत्रिका ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा, जैव रासायनिक ऊर्जा आदि। शरीर के विभिन्न भागों में भिन्न – भिन्न कार्य करती हैं। ये ऊर्जाएं विभिन्न अंगों और मांसपेशियों को कार्य करने, मस्तिष्क के साथ संवाद एवं सामंजस्य स्थापित करने की शक्ति देती हैं। जबकि योग अनुसार शरीर के भीतर और उसके चारों ओर प्राण ऊर्जा के विविध स्वरूप कार्य करते हैं, ये सभी एक योगी के जीवन पर विशेष प्रभाव डालते हैं। प्राण का समुच्चय प्राणमय कोष कहलाता है।
                        एक विशेष ऊर्जा कोष है, जो भौतिक शरीर को घेरे रहता है। अपनी शारीरिक क्षमताओं को जागृत करने वाले लोग इसे शरीर के सदृश मानते हैं। इन प्राणमय शरीरों में प्राण तत्व मुक्त रूप से एक नियत पथ पर प्रवाहित होता रहता है। येग में इसके लिये नाड़ी शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। यद्यपि मेडिकल में इन नाड़ियों को मानव शरीर की तंत्रिकाओं के रूप में देखा गया है। ये स्थूल तंत्रिकाएं रक्त के प्रवाह का माध्यम होती हैं, पर योग विधा में नाड़ियां सूक्ष्म प्राण प्रवाह का पथ माना जाता है। इसीलिए प्राणायाम का अभ्यास प्राण के प्रवाह प्रबंधन में सहायता करता है और शरीर को कहीं बेहतर ढंग से रखता है।

    प्राणायाम के बिना ध्यान की गहन अवस्था में पहुंचना कठिन है
    प्राणायाम के अभ्यास के बिना मन की गहराई तक पहुंचना लगभग असंभव है। जो लोग प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहते उनका ध्यान की गहन अवस्था में पहुंचना कठिन कार्य है। विज्ञान है कि श्वास और मन का समन्वय एक साथ चलता है, यदि दोनों में से कोई एक भी व्यथित है तो दूसरा भी व्यथित होगा। आसन में स्थिरता पा लेने पर, अगला चरण श्वसन के प्रति जागरुकता का है। यह प्रक्रिया मस्तिष्क को सुदृढ़ बनाती है और हमें अपना ध्यान अंदर की ओर केंद्रित करने में सहज करती है। इसीलिए प्रक्रिया को प्रारंभ कर रहे लोगों को अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करते हुए आगे बढ़ना होता है, इससे तन-मन दोनों में चेतना की वृद्धि होती है। जब मन श्वास के प्रवाह के प्रति जागरुक होता है, तो अभ्यासकर्त्ता अपने भीतर गहन वास्तविकता के एक स्तर पर सहज पहुंच जाता है।

    चेतना के स्तर को बढ़ाता है, मन को असामान करता है
    श्वसन जागरुकता चेतना के स्तर को बढ़ाता है, मन को असामान करता है। सामान्यः धीरे-धीरे गहरी सांस लेनी चाहिये, इससे ऑक्सीजन को फेफड़ों में रक्त पहुंचाने और कार्बन डॉऑक्साइड के पर्याप्त विनिमय को संतुलित करता है। धीरे सांस व गहरी सांस की गति दोनों में परस्पर अत्यंत महत्वपूर्ण संबंध है। ध्यान दिया होगा कि प्रायः मुंह को हल्का सा खोलकर सांस लेते हैं, जब आपकी श्वसन प्रक्रिया अनियमित एवं तीव्र हो। गहन श्वसन प्रक्रिया में सांस लेने और छोड़ने का काम मुंह की बजाय नथुनों से होता है। इसीप्रकार सांस सतही और तीव्र है, तो छाती से सांस लेते हैं, जिसे पूर्ण श्वास नहीं माना जाता।

    प्राणायाम व ध्यान के समय इन बातों का ध्यान रखना जरूरी
    जब गहन ढंग से श्वास लेते हैं, तो अधिक धीमे श्वास लेंगे, इससे प्रत्येक श्वास में अधिक बल एवं जीवन होगा। हालांकि जब तक सिर, गर्दन और शरीर का तना सही तरह से संरेखित नहीं है।, तब तक गहन श्वसन संभव नहीं है।
                       इसी प्रकार यदि सही ढंग से नहीं बैठे हैं और रीढ़ मुड़ी हुई है, तो सरलता से श्वसन नहीं कर पाएंगे। यह श्वसन प्रक्रिया बाधित हो जाने पर ही मन आक्रोशित होता है और एकाग्रता खोती है अतः सीधे बैठें और अपने सिर, गर्दन एवं धड़ को एक सीध में रखें। गहन श्वांस लें, जिससे शरीर को हानि न पहुंचे।

    सतत अभ्यास करें
    श्वसन के समतापूर्ण विधि के तहत मन में ही ली जाने वाली श्वास की लंबाई को गिना जाए और उन्हें बराबर होने दिया जाये। वैसे श्वसन सीखने की सरल विधि यह है कि सांस इस प्रकार छोड़ें जैसे आप अपने पैर के अंगूठों तक सांस बाहर निकाल रहे हों, वहीं सांस इस प्रकार खींचिए कि वह आपके सिर के ताज तक आ जाए। यह पूरी प्रक्रिया धीमी और निर्बाध होनी चाहिये और इसमें कोई झटके नहीं होने चाहिये। इस तरह निर्बाध रूप से सांस छोड़ने के बाद आप दूसरी बार सांस खींचना प्रारंभ करें।
                     इस प्रक्रिया का अभ्यास महीनों तक करना चाहिये, श्वसन तकनीक ध्यान के साथ भी प्रारंभ हो तो दिनचर्या में सहज शामिल हो जाती है। श्वसन सही ढंग पा सके इसके लिए प्राणायाम अभ्यास बताये गये हैं।

    ध्यान का मार्ग खुलता है।
    सामान्य प्राणायाम की प्रणालियों में पूरक (सांस लेना), रेचक (सांस छोड़ना), अंतर या अंतरंग कुंभक (सांस लेने के पश्चात उसे रोककर रखना), बहिर या बहिरंग कुंभक (सांस छोड़ने के बाद उसे रोककर रखना) प्राणायाम के विभिन्न अभ्यासों में ये विभिन्न तकनीकें प्रयुक्त होती हैं और प्राणायाम सघता है और ध्यान का मार्ग खुलता है।

    About Post Author

    Subscribe to get news in your inbox