नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/भावना शर्मा/- प्रस्तावित राष्ट्रीय सहकारिता नीति की जल्दी घोषणा के लिए सहकारिता मंत्रलाय सहकारी क्षेत्र का डाटाबेस तैयार करने में जुट गया है। इसमें सहकारी यूनियनों, फेडरेशन, राज्य सरकार समेत इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों से चर्चा के बाद इसके प्रस्ताव को मंजूरी दी जाएगी। केंद्रीय सहकारिता सचिव डीके सिह ने कहा कि सहकारी क्षेत्र की संस्थाओं के आंकड़े तो हैं लेकिन इन्हें बहुत वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है।
श्री िंसह गुरुवार को यहां रुरल वायस के तहत आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि लोग सहकारी क्षेत्र की संस्थाओं के बारे में क्षेत्रवार जानकारी चाहते हैं। किस सेक्टर में कितनी सहकारी संस्थाएं सक्रिय हैं। कुछ आंकड़े हमारे पास हैं, लेकिन वे वैज्ञानिक नहीं कहे जा सकते हैं। सहकारी संस्थाओं के मौजूदा आंकड़े नेशनल को आपरेटिव यूनियन आफ इंडिया (एसीयूआई) ने तैयार किये हैं। लेकिन मंत्रालय के पास अपने कोई तथ्यात्मक आंकड़े नहीं हैं। सरकार अपने स्तर पर वैज्ञानिक तरीके डाटाबेस तैयार करे, जिससे प्रस्तावित राष्ट्रीय सहकारी नीतियों के अमल में सहूलियत हो सके। इसके लिए कंसलटेशन प्रोसेस चालू है। एनसीयूआई के आंकड़े के मुताबिक देश में फिलहाल कुल 8.6 लाख सहकारी संस्थाएं हैं। इनमे सक्रिय प्राथमिक कृषि सहकारी संस्थाओं की संख्या कुल 63 हजार ही है। जबकि आंकड़ों में इसकी संख्या 90 हजार से भी अधिक है। आंकड़ों के सही होने के बाद स्थितियों में सुधार आएगा। सहकारिता सचिव ोसह ने कहा ’राष्ट्रीय सहकारी नीति की घोषणा में थोड़ा समय जरूर लगेगा। इसके लिए कई स्तरों पर विचार-विमर्श शुरु कर दिया गया है। इसमें सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों के साथ राज्य सरकारों से गहन विचार किया जाएगा।
इसमें सहकारी यूनियनों, फेडरेशन, राज्य सरकार समेत इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों से चर्चा के बाद इसके प्रस्ताव को मंजूरी दी जाएगी।’ उन्होंने कहा कि सरकारी कार्यक्रमों पर अमल करने के लिए सहकारी आंकड़ों का वैज्ञानिक व तथ्यपूर्ण होना बहुत जरूरी होता है। उन्होंने कहा कि इस पूरी कवायद में सालभर का समय लग सकता है। ोसह ने कहा कि सहकारिता मंत्रालय पहले चरण में तीन प्रमुख क्षेत्र में ध्यान केंद्रित कर रहा है। प्राथमिक सहकारी समितियों का कंप्युटरीकरण, राष्ट्रीय सहकारी नीति और सहकारी क्षेत्र में सुधार के लिए विभिन्न मंत्रालय को कार्यक्रमों को सही तरीके से लागू करने पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए मंत्रालय ने सभी का सहयोग मांगा है। मंत्रालय ने आईआईएम, आईआईटी और आईआईआईटी को पत्र लिखकर उनका सुझाव मांगा है ताकि सहकारी क्षेत्र में टेक्नोलॉजी के माध्यम से उसमें कैसे सुधार लाया जा सकता है।
कुछ संस्थानों से सुझाव मिलने भी लगे हैं, बाकी के सुझावों का इंतजार है।इसके पूर्व रुरल वायस के कार्यक्रम में नेशनल कोआपरेटिव डवलपमेंट कारपोरेशन (एनसीडीसी) के प्रबंध निदेशक संदीप नायक ने कहा कि उनका पूरा जोर ग्रामीण ऋण वितरण पर रहता है। पिछले कुछ वर्षों में यह बढ़ा है। पिछले वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान एनसीडीसी ने जहां 25 हजार करोड़ रुपए का ऋण वितरित किया गया वह चालू वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 35 हजार करोड़ रुपए पहुंच गया है।नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने सहकारिता क्षेत्र की हालत पर ोचता जताने के अंदाज में कहा कि अमूल और ईफको को छोड़ दिया जाए तो बाकी के हालत ऐसी ही है। किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि फिलहाल किसान सरकार पर निर्भर होते जा रहे हैं, जो अच्छी बात नहीं है। सहकारिता क्षेत्र को कर्ज बांटने वाली संस्था से अलग हटकर उसका कार्य का दायरा बढाना चाहिए, जिसके लिए सरकार को पहल करनी चाहिए। ईफको के प्रबंध निदेशक यूएस अवस्थी ने कहा कि लंबे समय से दुनिया की सबसे बड़ी सहकारी संस्थाओं की सूची में पहला नंबर ईफको और दूसरे नंबर पर अमूल बना हुआ है।
-किसानों का आत्मनिर्भर होना जरूरीः नीति आयोग, सहकारी आंकड़े किये जा रहे
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