समाजवादी पार्टी गठबंधन बिखरने के कगार पर, ओमप्रकाश राजभर ने दिखाई नाराजगी

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समाजवादी पार्टी गठबंधन बिखरने के कगार पर, ओमप्रकाश राजभर ने दिखाई नाराजगी

-महान दल के बाद अब सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी अलग होने की राह पर

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- समाजवादी पार्टी का गठबंधन धीरे-धीरे बिखरने की कगार पर पंहुच गया है। इसकी शुरूआत तो महान दल पार्टी के केशव देव मौर्य ने कर दी थी लेकिन अब सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव से नाराज दिखाई दे रहे है। चर्चा यह भी चल रही है कि ओमप्रकाश राजभर कभी गठबंधन से अलग होने की घोषणा कर सकते है। वहीं, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख शिवपाल यादव भी चुनाव के बाद से ही अखिलेश पर हमलावर रहे हैं।
              ऐसे में सवाल उठता है कि क्या समाजवादी पार्टी का गठबंधन पूरी तरह बिखर जाएगा? आखिर सपा के साथ चुनाव लड़ने वाली पार्टियां बाद में अलग क्यों हो जाती हैं? क्यों सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर गठबंधन की पार्टियों को तवज्जो न देने के आरोप लगते हैं?
              विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार यशवंत सिन्हा गुरुवार को लखनऊ पहुंचे। यहां समाजवादी पार्टी और रालोद के विधायकों ने उन्हें अपना समर्थन दिया। हालांकि, इस कार्यक्रम में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले ओम प्रकाश राजभर और उनकी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के विधायकों को नहीं बुलाया गया। इस पर मीडिया ने ओम प्रकाश राजभर से सवाल पूछा। तो उन्होंने कहा, ’मुझे बुलाया नहीं गया था। सपा अध्यक्ष को जयंत चौधरी की जरूरत है। अब मेरी जरूरत नहीं है। राष्ट्रपति चुनाव पर कल के बाद फैसला लेंगे।’
              ये पहली बार नहीं था, जब ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव पर निशाना साधा हो। चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही वह सपा प्रमुख पर लगातार हमलावर होते रहे हैं। विधान परिषद (एमएलसी) चुनाव के दौरान भी राजभर ने अखिलेश यादव पर तंज कसा था। ओम प्रकाश राजभर चाहते थे कि विधान परिषद की चार सीटों में कम से कम एक सीट उन्हें मिले, जिससे उनका बेटा सदन में पहुंच सके। लेकिन अखिलेश यादव ने इंकार कर दिया। इससे नाराज राजभर ने तंज कसते हुए कहा था कि 34 सीट पर चुनाव लड़कर आठ जीतने वाले को राज्यसभा का इनाम मिला और 14 सीट लेकर छह जीतने वाले की अनदेखी हुई।

आजमगढ़ और रामपुर में हार के लिए ठहराया था जिम्मेदार
आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव हारने के बाद भी राजभर ने अखिलेश पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था, ’अगर अखिलेश आजमगढ़ गए होते तो चुनाव जीत जाते। हम लोग धूप में प्रचार कर रहे थे और वे एसी में बैठे रहे।’ इस पर बुधवार को अखिलेश ने कहा कि सपा को किसी की सलाह की जरूरत नहीं है। कई बार राजनीति पर्दे के पीछे से चलती है।

तो क्या गठबंधन टूट जाएगा?
हमने ये समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव से बात की। उन्होंने कहा, ’ओम प्रकाश राजभर खुलकर बोलने वाले शख्स हैं। कई बार उन्हें बड़बोला कहा जाता है। चुनाव के बाद ओम प्रकाश राजभर ने बयान दिया था वह जानते थे कि सपा गठबंधन चुनाव हार रहा है। इस बयान के बाद से अखिलेश ने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी। विधान परिषद और फिर राज्यसभा चुनाव में भी उन्हें नहीं पूछा गया। अब राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी ओम प्रकाश राजभर को किनारे कर दिया गया। मतलब साफ है कि समाजवादी पार्टी अब ओपी राजभर के साथ अपना गठबंधन आगे जारी नहीं रखना चाहती है।’
               श्रीवास्तव आगे कहते हैं, ’ओम प्रकाश राजभर भी यह समझ चुके हैं कि अब यहां उनकी दाल नहीं गलने वाली है। यही कारण है कि वह भी अपना राजनीतिक भविष्य तलाशने में जुट गए हैं। इसके लिए पहले उन्होंने बसपा पर डोरे डाले और अब वापस भाजपा की तरफ उनका झुकाव बढ़ने लगा है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में सपा-सुभासपा का गठबंधन टूट सकता है।’

चुनाव के बाद ही क्यों दूर हो जाते हैं सपा गठबंधन के साथी?
विधानसभा चुनाव के ठीक बाद समाजवादी पार्टी गठबंधन में दरार का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले 2017 और फिर 2019 में भी देखने को मिल चुका है। 2017 में सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ था। चुनाव में मिली बुरी हार के बाद दोनों पार्टियों ने अपना अलग-अलग रास्ता पकड़ लिया। 2019 में भी यही हुआ जब समाजवादी पार्टी ने अपनी कट्टर विरोधी बसपा का हाथ पकड़ा। यहां भी हार के बाद दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे और नतीजा आने के कुछ दिन बाद ही मायावती ने गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया।
            राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो ’चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी खुद को नए सिरे से तैयार करने की कोशिश करती है। ऐसा इसलिए क्योंकि वह चाहती है कि अगले चुनाव तक वह अकेले दम पर फिर से लड़ सकें। इसलिए नतीजा आने के बाद ही वह गठबंधन की पार्टियों को इग्नोर करना शुरू कर देते हैं। खासतौर पर उन दलों को जिनके साथ रहने से उन्हें नुकसान पहुंचने का डर होता है। इस बार भी वही हो रहा है। सपा ने रालोद के साथ अच्छे रिश्ते बरकरार रखे हैं। क्योंकि अखिलेश जानते हैं कि पश्चिम यूपी में बगैर रालोद के वह कुछ नहीं कर सकते हैं। वहीं, पूर्वांचल में ओम प्रकाश राजभर की पकड़ को कमजोर मानते हैं। वह जानते हैं कि पूर्वांचल में सपा अकेले दम पर मजबूत हो सकती है। इसलिए उन्होंने ओम प्रकाश राजभर को किनारे कर दिया।’

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