नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/भावना शर्मा/- कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (कैग) की जिस रिपोर्ट पर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अपनी पीठ थपथपाई और आम आदमी पार्टी सरकार की ’ईमानदारी’ का सबसे बड़ा सबूत बताया, उसी में सरकार की कई खामियों का भी जिक्र किया गया है जिसको लेकर सीएम की बोलती बंद हो गई है। 2018-19 से 2019-20 के बीच दिल्ली के सामाजिक, सामान्य और आर्थिक विभागों के ऑडिट की इस रिपोर्ट को मंगलवार को उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने विधानसभा में पेश किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सरकार की कई परियोजनाएं या तो केवल कागजों तक सिमटी रहीं या फिर आंशिक रूप से लागू किया गया जिसपर सरकार सकते में आ गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सरकार दिसंबर 2018 तक 1,797 अनऑथराइज्ट कॉलोनियों में पाइप से पानी की सप्लाई का वादा पूरा करने में पिछड़ गई, जबकि 1,573 (88 फीसदी) अनऑथराइज्ड कॉलोनियों में मार्च 2018 तक सीवर की सुविधा नहीं पहुंची। घर बनाने के लक्ष्य में भी सरकार का प्रदर्शन खराब रहा और कई नीतिगत पहलों पर अमल नहीं हुआ या आंशिक रूप से काम हुआ।
अनऑथराइज्ड कॉलोनियों में पानी और सीवर
सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी 1797 अनऑथराइज्ड कॉलोनियों में पाइप से पानी की आपूर्ति करने के लिए रणनीतिक प्लान के अभाव में 2013 से 2018 के बीच केवल 353 कॉलोनियों में यह सुविधा दी जा सकी, जिसका वादा केजरीवाल सरकार ने किया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मार्च 2018 तक 567 अनऑथराइज्ड कॉलोनियों के लोग पानी की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ट्यूबवेल/हैंडपंप और दिल्ली जल बोर्ड के टैंकर्स पर निभर हैं। इस तरह की 88 फीसदी कॉलोनियों में मार्च 2018 तक सीवर की व्यवस्था नहीं हो पाई। इस वजह से इन कॉलोनियों की गंदगी नालों से होते हुए सीधे यमुना में चली जाती है।
घर बनाने में भी पिछड़ी केजरीवाल सरकार
सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार की योजना जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) 2005 में लॉन्च किए जाने के 10 साल बाद इसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया। रिपोर्ट में कहा गया है, ’’ऐसा मुख्य तौर पर प्रॉजेक्ट्स की प्लानिंग, उसे लागू करने में कमी और लाभार्थियों की पहचान की धीमी गति की वजह से हुआ। दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रीयल एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन (डीएसआईआईडीसी) लिमिटेड और दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड (डीयूएसआईबी) के पास 52,344 आवासीय इकाइयों वाले 14 हाउजिंग प्रॉजेक्ट्स की जिम्मेदारी थी, लेकिन इन 14 में 4 प्रॉजेक्ट्स (24000 इकाइयां) अधूरे रह गए और 755.26 करोड़ रुपए खर्च हुए। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार केवल 5,483 लाभार्थियों का ही पता लगा पाई और 2018 तक महज 1864 को ही इन आवासीय इकाइयों में शिफ्ट किया जा सका। रिपोर्ट में कहा गया है, ’’लाभार्थियों की पहचान में देरी की वजह से 90 फीसदी से अधिक (28,344) आवासीय इकाइयां, जो जून 2018 में बनकर तैयार हो गईं थीं, खाली रह गईं और इसकी वजह से खराब होने की आशंका बढ़ गई।’’
निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूर लाभ से वंचित
मार्च 2019 में खत्म हुए वित्त वर्ष की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में श्रम विभाग के बील्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड ने निर्माण कार्यों में जुटे श्रमिकों की पहचान और उनको रजिस्टर करने के लिए कोई सर्वे नहीं किया। रिपोर्ट में कहा गया है, ’’कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए निर्माण कार्यों में जुटे मजदूरों के रजिस्ट्रेशन की जरूरत होती है। हालांकि बोर्ड ने कोई रजिस्ट्रेशन में इजाफे के लिए निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूरों की पहचान के उद्देश्य से कोई सर्वे नहीं किया। 10 लाख अनुमानित कंस्ट्रक्शन वर्कर्स में से महज 17,339 (1.7 फीसदी) ही बोर्ड के साथ जुड़े हुए हैं। इस वजह से 98 फीसदी मजदूर कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रह गए।
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सरकार की कई पहल पर या तो आंशिक रूप से काम हुआ या उन पर अमल ही नहीं हुआ। ऐसा स्कीम की गाइडलाइंस/प्रक्रिया को मंजूरी ना मिलने, प्रशासनिक स्वीकृति नहीं मिलने या बजट रिलीज नहीं किए जाने की वजह से हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है, ’’यह लाभार्थियों को इच्छित लाभों से वंचित करता है। ऐसी योजनाओं में बचत अन्य विभागों को उस फंड से वंचित कर देती है, जिसका वे उपयोग कर सकते थे’’ जिन योजनाओं पर अमल नहीं हो सका वे हैं, चीफ मिनिस्टर अडवोकेट वेलफेयर स्कीम (25 करोड़), डीएनए टेस्ट लैब- निर्भया फंड (सीएसएस) (3.30 करोड़), प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम फॉर माइनॉरिटी स्टूडेंट्स (सीएसएस) (6.50 करोड़), स्वच्छ भारत मिशन (सीएसएस) (24 करोड़), और रीजनल रेपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) कॉरिडोर (47 करोड़)।
कैग ने यह भी पाया कि दिल्ली सरकार वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में खर्च में तेजी लाई। ब्।ळ रिपोर्ट में कहा गया है, ’’यह पाया गया है कि 2019-20 के कुल 51,186 करोड़ रुपए के खर्च में से 16,2017.83 करोड़ (31.66 फीसदी) रुपए का खर्च अंतिम तिमाही में किया गया, जबकि अंतिम तिमाही के 2,355.21 करोड़ (14.53 फीसदी) खर्च मार्च 2020 में किया गया। अंतिम तिमाही में इस तरह तेजी से खर्च खासतौर पर मार्च में, बताता है कि वित्तीय नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।’’
दिल्ली का रेवेन्यू सरप्लस
कैग रिपोर्ट में कहा गया है, ’’दिल्ली एनसीटी का 2019-20 में 7,499 करोड़ रुपए का रेवेन्यू सरप्लस दिखाता है कि सरकार के पास राजस्व खर्च के लिए पर्याप्त राजस्व प्राप्तियां हैं। रेवेन्यू सरप्लस 2019-20 में जीएसडीपी के 0.88 फीसदी रहा, जबकि 2018-19 में यह 0.81 फीसदी रहा था। एनसीटी दिल्ली रेवेन्यू के सरप्लस की मुख्य वजह जीएनसीटीडी कर्मचारियों के पेंशन का बोझ केंद्र सरकार की ओर से वहन करना है। इसके अलावा दिल्ली पुलिस का खर्च भी भारत सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से उठाया जाता है।’’
डीटीसी को सबसे ज्यादा घाटा
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-20 में राज्य सरकार के 7 सार्वजनिक उद्यम (एसपीएसई) को कुल 5,294.16 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। इसमें से 5,280.55 करोड़ रुपए (99.74 फीसदी) हिस्सा अकेले दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (डीटीसी) का है। सीएजी ने कहा है, ’’डीटीसी को घाटे की वजह है कि नवंबर 2009 से किरायों में बदलाव नहीं किया गया है, वार्षिक रखरखाव खर्च बढ़ गया है और डीटीसी कर्मचारियों की सैलरी में वृद्धि हो चुकी है।’’ दिल्ली सरकार के प्रवक्ता ने सीएजी की फाइंडिंग्स पर कॉमेंट से इनकार किया।
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