नई दिल्ली/उमा सक्सेना/- संवाद के मंच पर विश्व जागृति मिशन के संस्थापक और प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु सुधांशु जी महाराज ने शांति, संस्कृति और सार्थक जीवन पर गहन विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि किसी भी देश, समाज या व्यक्ति की प्रगति का मूल आधार शांति है। जहां शांति होती है, वहीं विकास संभव होता है। अशांति के माहौल में न तो व्यक्ति आगे बढ़ सकता है और न ही समाज समृद्ध हो सकता है।
स्वर्णिम यात्रा की सराहना
सुधांशु जी महाराज ने अमर उजाला की लंबी और गौरवशाली यात्रा की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह समाचार पत्र जिस स्वर्णिम शताब्दी की ओर अग्रसर है, वह गर्व का विषय है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आज तक समाज को दिशा देने का कार्य किया है। जिन महान लोगों ने देश की आज़ादी में योगदान दिया, उनकी वैचारिक सुगंध आज भी इस अखबार के मूल्यों और विचारधारा में महसूस की जा सकती है।
शांति के बिना सुख और विकास असंभव
अपने संबोधन में सुधांशु जी महाराज ने कहा कि शांति के बिना कोई भी सुख स्थायी नहीं हो सकता। यदि व्यक्ति के मन में शांति है तो उसका जीवन सहज, मुस्कुराता और प्रगतिशील होता है। वहीं, यदि समाज में अशांति फैली हो तो वह समाज कभी विकसित नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि अध्यात्म में शांति पाठ को विशेष महत्व इसलिए दिया गया है क्योंकि शांति ही जीवन का आधार है।
भारत शांति का वैश्विक संदेशवाहक
उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति और वैदिक परंपरा विश्व को शांति का संदेश देने में सक्षम है। वैदिक मंत्रों में जल, औषधि और प्रकृति से शांति की कामना की गई है। सुधांशु महाराज ने कहा कि हरियाणा की भूमि भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है, जहां से भगवद गीता का संदेश पूरी मानवता को मिला। गीता के अनुसार शांत मन, प्रसन्न चेहरा, आत्मसंयम और शुद्ध भावनाएं ही सच्चे तप की पहचान हैं।
व्यवहार और वाणी में शांति का महत्व
हरियाणा के मंच से बोलते हुए सुधांशु जी महाराज ने कहा कि हमारा व्यवहार, हमारी वाणी और हमारे कर्म ऐसे होने चाहिए जो दूसरों को शांति दें, न कि अशांति। उन्होंने कहा कि उद्वेग पैदा करने वाली भाषा से बचना चाहिए और हर कार्य में आनंद झलकना चाहिए। उन्होंने वैदिक सूत्रों का उल्लेख करते हुए बताया कि मौन, सौम्यता और आत्मसंयम जीवन को सुंदर बनाते हैं।
गांव के बाबा का जीवन मंत्र
उन्होंने 35 वर्ष पुराने एक अनुभव को साझा करते हुए बताया कि हरियाणा के एक गांव में साधुओं के सम्मेलन में एक साधारण से बाबा ने जीवन का सरल लेकिन गहरा संदेश दिया था। बाबा ने कहा था—“खाओ-पियो लेकिन अति मत करो, चलो-फिरो लेकिन थको मत, बोलो लेकिन बको मत।” यह संदेश आज के जीवन के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है।
भीतर और बाहर की एकरूपता ही असली सुंदरता
सुधांशु जी महाराज ने कहा कि मनुष्य को मनुष्य बने रहने का प्रयास करना चाहिए। भीतर जो हैं, बाहर भी वही दिखाई देना चाहिए। उन्होंने जिब्रान की कहानी का उल्लेख करते हुए कहा कि जब मुखौटे उतर जाते हैं, तभी असली सुंदरता सामने आती है। हमारी संस्कृति भी यही सिखाती है कि सत्य और सद्भाव की ओर बढ़ो।
अशांति के दौर में भी मुस्कान बनाए रखने का संदेश
अपने वक्तव्य के अंत में उन्होंने कहा कि जब चारों ओर अशांति और निराशा का माहौल हो, तब भी मुस्कुराहट बनाए रखना ही सच्चा अध्यात्म है। किसी की मुस्कान छीनना नहीं, बल्कि मुस्कान बांटना ही मानवता का धर्म है। यही भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का मूल संदेश है।


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