• DENTOTO
  • श्री कृष्ण जन्माष्टमी और कवि दिनेश रघुवंशी के जन्मोत्सव पर काव्य गोष्ठी का आयोजन

    स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

    शिव कुमार यादव

    वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

    संपादक

    भावना शर्मा

    पत्रकार एवं समाजसेवी

    प्रबन्धक

    Birendra Kumar

    बिरेन्द्र कुमार

    सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

    Categories

    June 2025
    M T W T F S S
     1
    2345678
    9101112131415
    16171819202122
    23242526272829
    30  
    June 23, 2025

    हर ख़बर पर हमारी पकड़

    श्री कृष्ण जन्माष्टमी और कवि दिनेश रघुवंशी के जन्मोत्सव पर काव्य गोष्ठी का आयोजन

    बहादुरगढ़/-  अखिल भारतीय साहित्य परिषद की जिला इकाई द्वारा स्थानीय आत्म शुद्धि आश्रम में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि दिनेश रघुवंशी जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। संस्था के जिलाध्यक्ष विरेन्द्र कौशिक द्वारा आयोजित व हरियाणा की सुचर्चित साहित्यकार डॉ. मंजु दलाल के सानिध्य में हुए इस काव्योत्सव की अध्यक्षता आश्रम के अधिष्ठाता आचार्य विक्रम देव ने की व संचालन गीतकार कृष्ण गोपाल विद्यार्थी ने किया।

    उत्तराखंड के युवा कवि वेद भारती द्वारा संस्कृत में प्रस्तुत सरस्वती वंदना से शुरू हुए इस कार्यक्रम में गीतकार कृष्ण गोपाल विद्यार्थी व किशोर मनु ने दिनेश रघुवंशी के कुछ मुक्तक व एक ग़ज़ल के कुछ शेर भी सुनाए। रघुवंशी की इन पंक्तियों को बेहद सराहा गया…..
    बैठते ही बुराई करते हैं।
    लोग कैसी कमाई करते हैं।
    पीठ पर वार करने वाले ही,
    रात-दिन भाई-भाई करते हैं।
      इस अवसर पर उपस्थित सभी लोगों ने श्री रघुवंशी की दीर्घायु व स्वस्थ-सुखी जीवन की कामना भी की। कार्यक्रम में उक्त सभी कलमवीरों सहित कुमार राघव, सुनीता सिंह व अनिल भारतीय ने भी काव्य पाठ किया। आचार्य विक्रमदेव जी के आशीर्वचनों के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

    काव्य गोष्ठी में पढ़ी गई कुछ रचनाओं की बानगी देखिए…

    आया मैं भी आया तेरे द्वार कन्हैया।
    तू भी वैसा, जैसा संसार कन्हैया।
           – विरेन्द्र कौशिक

    हम तरक्की खूब करते जा रहे हैं।
    नीड़ के तिनके बिखरते जा रहे हैं।
    मंजिलें आंखों से ओझल हो गई हैं,
    और अपने लोग मरते जा रहे हैं।
       – कृष्ण गोपाल विद्यार्थी

    चोटिल दिखता ना हो फिर भी घायल सा हो जाता है।
    जिस पर भी वो बरस पड़े वो बादल सा हो जाता है।
    यूँ ही नहीं लगाए उस पर दोष समूची दुनिया ने,
    जो उसकी आँखों में  झाँके पागल सा हो जाता है।
            – कुमार राघव

    आंधियां अब सियासत की चलने लगी।
    लोकतंत्री इमारत हिलने लगी।
    दिल में तूफ़ान हो या हो आकाश में,
    ज़िन्दगी की तो सूरत बदलने लगी।
          -डॉ. मंजु दलाल

    मेरे मन को करो निर्मल,संवरे आज और कल,
    सिर्फ अवगुण ना मेरे गिनाया करो।
     हे देवकी के नंदन,मैं तेरा करूं वंदन,
    कभी मुझसे भी मिलने आ जाया करो।
       -अनिल भारतीय “गुमनाम”

    पिता बरगद की छाया हैं,
    तो माँ शीतल हवा जैसी।
    पिता मंदिर की सीढ़ी है,
    तो माँ पावन दुआ जैसी।
        – सुनीता सिंह

    न युग त्रेता ना द्वापर है,संभलकर है तुम्हें चलना।
    अहिल्या द्रौपदी का रूप भी अब तुम नहीं धरना।
    जहां पर नोंचने को खल खड़े हर हाल पग पग पर,
    है ये कलिकाल,दुर्गति नाशिनी दुर्गा तुम्हें बनना।
           -वेद भारती

    About Post Author

    Subscribe to get news in your inbox