यूपी चुनाव में दम दिखाने को तैयार आम आदमी पार्टी

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यूपी चुनाव में दम दिखाने को तैयार आम आदमी पार्टी

-तिरंगा संकल्प यात्रा के माध्यम सें आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया यूपी में चला रहे अभियान

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/उत्तर प्रदेश/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी अब पूरी तरह से अपना दम दिखाने को तैयार है। पार्टी ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के नोएडा और आगरा में ’तिरंगा संकल्प यात्रा’ निकालकर पार्टी के चुनावी अभियान को तेज़ी दी है। राज्यसभा सांसद संजय सिंह और दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया दोनों शहरों में आयोजित तिरंगा यात्रा में न केवल शामिल हुए बल्कि नोएडा में मनीष सिसोदिया ने यूपी की सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान भी किया। इससे पहले लखनऊ में पार्टी ’तिरंगा संकल्प यात्रा’ निकाल चुकी है और आगामी 14 सितंबर में इस यात्रा के अयोध्या में भी निकाले जाने की तैयारी हो रही है।
                         लेकिन सबसे अहम सवाल यही है कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचंड बहुमत वाली भारतीय जनता पार्टी के अलावा राज्य में तीन बड़ी पार्टियां समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पहले से ही मौजूद हैं। इसके अलावा राज्य के अलग-अलग हिस्सों में तमाम छोटी पार्टियां भी हैं। लेकिन अब आम आदमी पार्टी भी यूपी के चुनावों में कूद चुकी है। आप नेता संजय सिंह की माने तो पार्टी आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इन दिनों यूपी के सभी 75 ज़िलों से लोगों को पार्टी का सदस्य बनाने का अभियान चलाया जा रहा हैं और 23 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में पार्टी ने एक महीने में एक करोड़ कार्यकर्ताओं की औपचारिक भर्ती का अपना लक्ष्य बनाया है।
                       आम आदमी पार्टी प्रदेश में लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रही है। पार्टी के सदस्यता अभियान में भी दिखा कि पार्टी के कार्यकर्ता लोगों से सदस्यता फॉर्म भरवा रहे हैं। इसमें कोई भी अपना नाम, पिता का नाम, वोटर आईडी, फोन नंबर, इत्यादि की जानकारी देकर सदस्यता ले सकता है। एक करोड़ सदस्यों के लक्ष्य वाले अभियान का पहला पड़ाव लखनऊ में घनी मुसलमान आबादी वाला अमीनाबाद इलाक़ा था।
                  उन्होंने कहा, “लोग लगातार आ रहे हैं, पार्टी का सदस्य बनना चाह रहे हैं. वो पार्टी की नीतियों से प्रभावित हैं। उनका भी दिल चाहता कि हमारे यहाँ फ्री में बिजली मिले. वो भी चाहते हैं की हमारे यहाँ शिक्षा फ्री हो और स्टैंडर्ड वाली हो. वो दिल्ली की तरह यहां भी फ्री मेडिकल सुविधा चाहते हैं। अगर दिल्ली में ये सब संभव है तो यूपी में क्यों नहीं है? हमें जाति, धर्म, मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों में उलझाया जाता है लेकिन पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, भ्रष्टाचार जैसे हमारे मूल मुद्दे हैं ग़ायब हैं।
                    मुसलमान वोट को साधने की राणनीति भाजपा को छोड़ कर सारी विपक्षी पार्टियां खुलेआम करती हैं. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही बनता है की कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने पर केंद्र का समर्थन करने के फ़ैसले के बाद, एनआरसी और सीएए जैसे मुद्दों पर परहेज करने वाली और 2020 के दिल्ली दंगों में हुई हिंसा के बाद क्या उत्तर प्रदेश का मुसलमान केजरीवाल पर भरोसा करेगा?
                     यहां बता दें कि पिछले दिनों ही उत्तर प्रदेश में ज़िला पंचायत सदस्य के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 3,000 से ज़्यादा उम्मीदवार उतारने का एलान किया था। पार्टी ने बाकायदा उम्मीदवारों की सूची जारी की और नेतृत्व ने दावा किया कि 85 से ज़्यादा आम आदमी पार्टी समर्थित प्रत्याशी ज़िला पंचायत सदस्य चुन कर आए हैं और पार्टी के नाम पर कुल 40 लाख वोट मिले हैं।
                    आम आदमी पार्टी भले ही उत्तर प्रदेश में अभी पहुंची है, लेकिन यहां अरविन्द केजरीवाल की लोकप्रियता को यासीन क़बूल करते हैं. वह कहते हैं, “केजरीवाल जो बोलते हैं वो करते भी हैं. यह बात अच्छी लगी. दिल्ली में बिजली और पानी की व्यवस्था की और भी वादे पूरे किए। जातिवाद से पूर्णतः प्रभावित उत्तर प्रदेश के चुनावों में इस बार वोट क्या जाति के नाम पर ही पड़ेगा? इसके जवाब में प्रेम प्रकाश कहते हैं कि इस बार वोट “केजरीवाल के नाम पर वोट गिरेगा। लेकिन 403 विधानसभा और 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के विशाल राजनीतिक क्षेत्र में कुछ ’समर्थित’ ज़िला पंचायत सदस्यों की जीत का दावा और गिने चुने ग्राम प्रधानों की जीत को कितनी बड़ी राजनीतिक उपलब्धि माना जा सकता है और इसके आधार पर कितनी उम्मीद की जा सकती है? वैसे आम आदमी पार्टी ने जून महीने में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण से जुड़ी ज़मीन ख़रीद में मंदिर ट्रस्ट के घोटाले की बात उठाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में दस्तक दी थी। ये मुद्दा गरमाया और इसके साथ आम आदमी पार्टी भी सुर्ख़यिं में कई दिनों तक दिखी। ऐसा लगने लगा कि राम मंदिर के निर्माण में भ्रष्टाचार आम आदमी पार्टी के लिए आस्था से जुड़े आंदोलन का रूप लेगा. लेकिन यह आंदोलन सड़कों पर नहीं उतरा और सिर्फ़ मीडिया और सोशल मीडिया पर दिखा.। इस घोटाले का मुद्दा समाजवादी पार्टी ने भी उठाया लेकिन कुछ दिनों के बाद पार्टी ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली।
                  अगर गठबंधन की बात करे तो तीन जुलाई को सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सांसद संजय सिंह के साथ हुई ’शिष्टाचार भेंट’ की यह तस्वीर ट्वीट की. तब अटकलें लगने लगीं कि सपा-आप का गठबंधन होने जा रहा है। इस मुलाक़ात के ठीक दो दिन बाद सीबीआई ने प्रदेश के 13 ज़िलों में 40 ठिकानों पर व्यापक छापेमारी की। 1,600 करोड़ के गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट में अखिलेश यादव के कार्यकाल के दौरान धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप हैं।
                   मनीष सिसोदिया ने कह तो दिया कि उनकी पार्टी राज्य की सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, लेकिन राजनीति संभावानाओं का खेल है और हो सकता है कि चुनाव आने तक पार्टी किसी से गठबंधन कर ले। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील कुमार साजन कहते हैं। “हमारे पार्टी अध्यक्ष ने यह तय किया कि जो दल भाजपा को हराना चाहते हैं और छोटे दल हैं, उन सभी छोटे दलों से बातचीत चल रही है।
                   2022 में उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में भी विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. उत्तराखंड और पंजाब में अरविन्द केजरीवाल खुद सामने आ रहे हैं. कद्दावर नेताओं को वो खुद पार्टी में शामिल कर रहे हैं और मुफ़्त 300 यूनिट बिजली जैसे वादे कर रहे हैं। लेकिन अब तक केजरीवाल उत्तर प्रदेश नहीं आए हैं. ये भी है कि पंजाब, उत्तराखंड और गोवा जैसे छोटे राज्यों में पार्टी को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है तो केजरीवाल उन राज्यों के चुनावी दौरे पर हैं। केजरीवाल पार्टी का ’तुरुप का पत्ता’ हैं तो हो सकता है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी उनका नपे-तुले तरीके से इस्तेमाल करे ताकि अगर पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक़ न हुआ तो असर केजरीवाल की लोकप्रियता पर न पड़े। लेकिन यह भी सही है कि पार्टी केजरीवाल को सामने रख कर ही उत्तर प्रदेश में क़दम बढ़ा रही है। पार्टी अपने अभियान में बार-बार केजरीवाल की दिल्ली सरकार को मॉडल सरकार के तौर पर पेश कर रही है।
                    अप्रैल, 2020 में जब कोविड महामारी की पहली लहर की मार झेल रहे सैकड़ों लोग शहरों से गांवों की तरफ रवाना हुए तो केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में काम कर रहे मज़दूरों की पांच हज़ार रूपये की मदद की थी। जिससे पार्टी को प्रचार मिला था और यूपी में पार्टी का नाम चल पड़ा था। इन सबके साथ जातिगत समीकरणों के आधार पर भी बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के पास एक तरह से फिक्स वोट बैंक है। ऐसे किसी वोट बैंक का नहीं होना अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए सबसे बड़ी कमज़ोरी है, हालांकि, यह पार्टी की सबसे बड़ी ताक़त भी बन सकती है।

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