मानवता के लिए मूल आवश्यकता है भगवद्गीता

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मानवता के लिए मूल आवश्यकता है भगवद्गीता

-इस्कॉन द्वारका में गीता जयंती महामहोत्सव का आयोजन -जीवन में उन्नति के लिए यज्ञ में दी जाएगी 700 श्लोकों की आहुति -श्रीकृष्ण और उनकी वाणी (श्रीमद्भगवद्गीता) में कोई भेद नहीं -तुला दान से भी कर सकते हैं गीता का महादान

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- गीता जयंती यानी मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता का दिव्य उपदेश अर्जुन को सुनाया था ताकि अर्जुन के माध्यम से युगों-युगों तक मानवमात्र का कल्याण हो सके। भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली गीता की इस वाणी का पठन, श्रवण, चिंतन एवं वितरण आधुनिक मनुष्य के बौद्धिक तथा नैतिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसीलिए ‘गीता जयंती’ को संपूर्ण विश्व में बेहद उल्लास के साथ मनाते हैं। इसी उपलक्ष्य में श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश इस्कॉन मंदिर में 14 दिसंबर को प्रातः 9.30 बजे से श्रीमद्भगवद्गीता महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। इस यज्ञ में भक्तगणों के द्वारा भगवद्गीता के 700 श्लोकों की आहुति दी जाएगी। माना जाता है कि सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने, उन्नति एवं सर्वांगीण विकास के लिए यज्ञ एक सर्वोच्च साधन है। इस अवसर पर बच्चों द्वारा 108 श्लोकों की गान प्रस्तुति की जाएगी ताकि अन्य बच्चों को भी यह संदेश प्राप्त हो सके कि स्कूली पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ सही मार्गदर्शन के लिए भगवद्गीता का ज्ञान भी आवश्यक है। माता-पिता की प्रेरणा से बच्चे श्लोकों के उच्चारण में अपनी भागीदारी दर्ज कराएँगे।
                मंदिर से जुड़े गीता माहात्म्य का प्रचार करने वाले अमोघ लीला प्रभु कहते हैं कि भगवद्गीता कलियुग में मानवता के लिए वरदान है। चूँकि गीता में कृष्ण स्वयं अपने विषय में बोल रहे हैं तो यह सारे विश्व के लिए मंगलकारी है। मनुष्य को चाहिए कि श्रीमद्भगवद्गीता के प्रति श्रद्धा रखते हुए तथा ज्ञान के साथ कृष्णभावनामृत का अनुशीलन करे। अपने कल्याण के लिए वह कृष्ण विद्या को जाने। भवबंधन से मुक्ति की चरम सिद्धि पाने का एकमात्र यही उपाय है। सबको यह समझना होगा कि जैसे भगवान और उनके नाम में कोई अंतर नहीं है, वैसे ही श्रीकृष्ण और उनकी वाणी (श्रीमद्भगवद्गीता) में कोई भेद नहीं है। इसलिए जीवन में इसे अपनाना जरूरी है। श्रीमद्भगवद्गीता जो सभी वैदिक ग्रंथों– वेद, पुराण, उपनिषद् एवं शास्त्रों का सार है। यह एकमात्र ऐसा दिव्य एवं सार्वभौमिक ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाई जाती है।

श्रीमद्भगवद्गीता के 18वें अध्याय के 68वें श्लोक में लिखा है किः
य इंद परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्याति।
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः।।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो भी भक्त मेरी भगवद्गीता का प्रचार करता है, वह मुझे बहुत ही प्रिय है। वे निश्चित रूप से मेरे धाम को प्राप्त करते हैं, जो मेरी वाणी का प्रचार करते हैंस अतः शुद्ध भक्ति प्राप्त करने के लिए गीता जयंती के दिन श्रीमद्भगवद्गीता को पढ़ें, उसका संग करें और उसका वितरण करें।
इस अवसर पर मंदिर में तुला दान की भी व्यवस्था की गई है। अपने भार के मुताबिक आप गीता का दान भी कर सकते हैं। आध्यात्मिक विकास एवं कर्मबंधन से मुक्ति के लिए इस सुअवसर का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त गीता जयंती की पूर्व संध्या पर शाम 7 बजे मन के संशयों को मिटाने के लिए गीता से संबंधित प्रश्नोत्त्तरी सत्र का भी आयोजन किया जाएगा जिसमें अमोघ लीला प्रभु द्वारा जिज्ञासुओं के सवालों के जवाब दिए जाएँगे। इन दोनों ही दिनों के कार्यक्रम का लाइव प्रसारण मंदिर के यूट्यूब चैनल पर किया जाएगा। इच्छुक व्यक्तियों के लिए विशेष भगवद्गीता कोर्स का आरंभ भी किया जाएगा, जिससे वे योगेश्वर कृष्ण द्वारा प्रदान किए जाने वाले ऐश्वर्य, विजय और अलौकिक शक्ति व नीति को प्राप्त कर सकें। अगर आप हर समस्या से निकलने का आसान रास्ता हासिल करना और स्थायी तौर पर अपने जीवन में खुशियाँ लाना चाहते हैं तो इस्कॉन द्वारा संचालित ‘डिसकवर योर परमानेंट हैप्पीनेस’ कार्यक्रम से भी जुड़ सकते हैं। मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए ‘सेल्फी प्वाइंट’ पर सेल्फी लेना न भूलें ताकि आप अपने दोस्तों की प्रेरणा बन सकें और अगली बार वे आपके साथ आने के लिए उत्साहित हों।

जरूरी है कलियुग में कृष्ण के आदेशानुसार कर्म करना
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिभर्वति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (4.7-8)
हे भरतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूँ। भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ।
                   कलियुग में आज भी हमें श्रीकृष्ण के उपदेशों की आवश्यकता है। अर्जुन के रूप में हर एक व्यक्ति किसी न किसी संकट में है। उसका संकट महाभारत के युद्ध से कम भी नहीं। अतः गीता के 18वें अध्याय के श्लोक 73 में वर्णित है कि जब वीर अर्जुन अंत में श्रीकृष्ण के आदेशानुसार कार्य करने को उद्यत हुआ तो हमें क्यों नहीं उनके आदेशों को जीवन में अपनाना चाहिए! कृष्ण के आदेशानुसार कर्म करना ही कृष्णभावनामृत है।

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