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    भारत बना दुनिया की कैंसर की राजधानी, वैज्ञानिक चिंतित

    -दो दशकों में और बिगड़ सकती है स्थिति

    नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- वैश्विक स्तर मृत्यु के सबसे बड़े कारणों में कैंसर एक प्रमुख कारण है। हर साल लाखों लोगों में कैंसर के नए मामलों का निदान और मौतें हो जाती हैं। अध्ययनों में साल 2050 तक आंकड़ों के और तेजी से बढ़ने की आशंका जताई गई है। कैंसर डेटा के मुताबिक साल 2022 में दुनियाभर में अनुमानित 20 मिलियन (दो करोड़) कैंसर के नए मामलों का निदान किया गया और 9.7 मिलियन (97 लाख) से अधिक लोगों की मौत हो गई। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं का अनुमान है कि साल 2050 तक कैंसर के रोगियों संख्या 35 मिलियन (3.5 करोड़) प्रतिवर्ष तक पहुंच सकती है।  भारत में कैंसर की घटनाएं वैश्विक दरों की तुलना में तेजी से बढ़ रही हैं। इसी को लेकर हालिया अध्ययन की रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा, देश में जिस गति से कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं अब ये दुनिया की नई ’कैंसर राजधानी’ बन गया है।
    तकनीक और चिकित्सा में नवाचार के चलते भले ही अब कैंसर लाइलाज रोग नहीं रह गया है, पर चिकित्सा लागतों के कारण अब भी आम लोगों तक कैंसर के इलाज की पहुंच कठिन बनी हुई है।  

    भारत “विश्व की कैंसर राजधानी“
    नॉन कम्युनिकेबल डिजीज (एनसीडी) को लेकर हाल ही में जारी डेटा से पता चलता है कि देश में कैंसर के मामलों में जिस स्तर पर बढ़ोतरी हो रही है, वो निश्चित ही चिंताजनक है। कैंसर के मामलों में वैश्विक दरों को पार करते हुए भारत “विश्व की कैंसर राजधानी“ बन गया है।
    द लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में साल 2020 में लगभग 12 लाख नए कैंसर के मामले और 9.3 लाख मौतें दर्ज की गई, उस वर्ष एशिया में कैंसर की बीमारी के बोझ वाला ये दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इस दशक के अंत तक देश में कैंसर के  मामलों में 12 प्रतिशत तक की वृद्धि की आशंका है, जिससे कैंसर का बोझ और अधिक बढ़ सकता है।

    भारत में चीन-जापान से अधिक कैंसर के मामले
    शोधकर्ताओं ने बताया भारत, चीन और जापान के साथ, कैंसर के नए मामलों और मौतों की संख्या के मामले में एशिया के तीन अग्रणी देशों में से एक है।
     भारत में महिलाओं में स्तन और सर्वाइकल कैंसर के मामले सबसे आम हैं, जबकि पुरुषों में फेफड़े, मुंह और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा सबसे अधिक देखा जाता रहा है। हालांकि विज्ञप्ति के अनुसार, अन्य देशों की तुलना में भारत में कैंसर निदान के लिए औसत आयु कम होने के बावजूद, कैंसर के जांच दर काफी कम है। ज्यादातर रोगियों में कैंसर का पता ही आखिरी के चरणों में चल पाता है जहां से रोग का उपचार काफी कठिन हो जाता है।

    कैंसर के साथ कई अन्य एनसीडी बीमारियों का खतरा
    शोधकर्ताओं ने बताया, कैंसर के अलावा भारत में कई और भी प्रकार की एनसीडी बीमारियों का खतरा देखा जा रहा है। रिपोर्ट में प्री-डायबिटीज, प्री-हाइपरटेंशन और कम उम्र में होने वाले मानसिक स्वास्थ्य विकारों जैसी समस्याओं में संभावित वृद्धि को लेकर भी लोगों को अलर्ट किया गया है।
     नियमित स्वास्थ्य जांच के महत्व पर जोर देते हुए शोधकर्ताओं ने कहा, अगर रक्तचाप (बीपी) और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के स्तर को कम करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए जाएं तो इससे कई अन्य प्रकार की क्रोनिक स्वास्थ्य समस्याओं के खतरे को भी कम किया जा सकता है। इससे कैंसर के मामलों में भी कमी लाने में मदद मिल सकती है।

    ’टीबीएल’ कैंसर बड़ा जोखिम
    कैंसर के बढ़ते खतरे को लेकर शोधकर्ता कहते हैं, हमने ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज, इंजरीजज एंड रिस्क फैक्टर्स 2019 स्टडी (जीबीडी 2019) के अनुमानों का उपयोग करके 1990 से 2019 के बीच 49 एशियाई देशों में 29 कैंसर के पैटर्न की जांच की गई। इसमें पाया गया कि एशिया में, प्रमुख रूप से श्वासनली, ब्रोन्कस और फेफड़े (टीबीएल) के कैंसर सबसे ज्यादा देखे जा रहे हैं। महिलाओं में, सर्वाइकल कैंसर कई एशियाई देशों में दूसरे या शीर्ष पांच कैंसरों में से एक है। वहीं पुरुषों में प्रोस्टेट और लंग्स कैंसर के मामले और इसके कारण होने वाली मौतों का जोखिम सबसे अधिक बना हुआ है।

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