बालिग होने पर लिव-इन रहने की आज़ादी: राजस्थान हाईकोर्ट का अहम फैसला

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

December 2025
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031  
December 27, 2025

हर ख़बर पर हमारी पकड़

बालिग होने पर लिव-इन रहने की आज़ादी: राजस्थान हाईकोर्ट का अहम फैसला

-शादी की उम्र नहीं, पर अधिकार पूरे -कोर्ट ने कहा—'व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वोपरि'

राजस्थान/उमा सक्सेना/-   राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए साफ कर दिया कि यदि दो बालिग अपनी इच्छा से साथ रहना चाहते हैं, तो विवाह की कानूनी उम्र पूरी न होने के बावजूद उन्हें लिव-इन रिलेशनशिप में रहने से नहीं रोका जा सकता। अदालत ने कहा कि केवल शादी की निर्धारित उम्र न होने के आधार पर किसी भी व्यक्ति की संवैधानिक स्वतंत्रता को सीमित नहीं किया जा सकता।

यह फैसला कोटा निवासी एक 18 वर्षीय युवती और 19 वर्षीय युवक की सुरक्षा याचिका पर सुनाया गया। युगल ने अदालत को बताया कि वे अपनी मर्जी से एक साथ रह रहे हैं और उन्होंने 27 अक्टूबर 2025 को एक लिव-इन एग्रीमेंट भी साइन किया था। लेकिन युवती के परिवार की ओर से लगातार विरोध और धमकियों के बाद उन्होंने अदालत से सुरक्षा की मांग की।

पुलिस कार्रवाई न होने पर कोर्ट सख्त, सरकारी तर्क खारिज
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उनकी शिकायत के बावजूद कोटा पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया। वहीं सरकारी पक्ष ने तर्क दिया कि युवक की उम्र 21 वर्ष से कम है, जो विवाह की कानूनी उम्र है, इसलिए उसे लिव-इन संबन्ध का अधिकार नहीं मिलना चाहिए।

जस्टिस अनूप धंड ने इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत मिले ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ के अधिकार पर उम्र की पाबंदी का सवाल नहीं उठता, जब बात दो बालिगों की स्वतंत्र सहमति की हो। अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय कानून में लिव-इन न तो अपराध है और न ही प्रतिबंधित संबंध।

पुलिस को निर्देश—खतरे का आकलन कर सुरक्षा सुनिश्चित करें
कोर्ट ने भीलवाड़ा और जोधपुर (ग्रामीण) के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया कि वे याचिका में दर्ज तथ्यों की जांच करें और यदि जोड़े को वास्तविक खतरा हो, तो उन्हें उचित सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए।

अदालत का यह फैसला उन मामलों में खास महत्व रखता है जहाँ परिवार या समाज के दबाव के कारण युवा जोड़ों को अक्सर सुरक्षा और कानूनी संरक्षण के लिए दर-दर भटकना पड़ता है।

About Post Author

आपने शायद इसे नहीं पढ़ा

Subscribe to get news in your inbox