नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देश-विदेश/शिव कुमार यादव/– इमरान खान 5 अगस्त से जेल में हैं और उनके खिलाफ करीब 140 केस दर्ज हैं। हालांकि तोशखाना मामले में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को जमानत मिल चुकी है लेकिन फिर भी उन्हे सीक्रेट लेटर चोरी (साइफर गेट केस) मामले में 14 दिन की रिमांड पर भेज दिया गया है। वो 13 सितंबर तक जेल में ही रहेंगे। ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत बनी स्पेशल कोर्ट ने बुधवार को ये फैसला सुनाया।
इससे पहले मंगलवार को इमरान को सरकारी खजाने (तोशाखाना) के तोहफे बेचने के मामले में बेल मिल गई थी। हालांकि, फिर भी वो जेल से रिहा नहीं हो सके थे। इसकी वजह ये थी कि उनके खिलाफ सीक्रेट लेटर चोरी (साइफर गेट केस) मामले में वारंट जारी थे। लिहाजा उन्हें ज्यूडिशियल रिमांड पर माना गया था। इसके अलावा खान के खिलाफ तीन केस ऐसे हैं, जिनमें जांच एजेंसियां उन्हें गिरफ्तार कर सकती हैं। ये हैं- अल-कादिर ट्रस्ट स्कैम, महिला जज को धमकी देने और हलफनामे में बेटी (टायरिन व्हाइट) का नाम छिपाना।
मंगलवार को क्यों रिहा नहीं हो सके इमरान
इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने खान को तोशाखाना केस में बेल दी और तीन साल की सजा पर भी रोक लगा दी। रिहाई के ऑर्डर भी जारी कर दिए। इसके बाद सरकारी वकील ने हाईकोर्ट को बताया कि खान के खिलाफ दो हफ्ते पहले साइफर गेट केस में वारंट जारी किया गया था। वो इस मामले में ज्यूडिशियल रिमांड पर हैं।
तोशाखाना केस में इमरान की पत्नी बुशरा भी आरोपी हैं। वो अब तक जांच एजेंसियों के सामने पेश होने से बचती रही हैं। कुछ दिन पहले बुशरा को पूछताछ के लिए समन जारी किए गए थे। वो जब पेश नहीं हुईं तो जांच एजेंसियों ने यह समन अखबार में पब्लिश करा दिए थे। पाकिस्तान के टीवी चैनल ‘दुनिया न्यूज’ के मुताबिक- इमरान के बाद बुशरा को भी गिरफ्तार किया जा सकता है।
इमरान पर तीन केस ऐसे हैं, जिनमें उनके खिलाफ पुख्ता सबूत हैं। यही वजह है कि फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एफआईए) और नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (नैब) की टीमें उनका इंतजार कर रही हैं। लिहाजा बुधवार को उन्हें जमानत मिल भी जाती है तो बहुत मुमकिन है कि उन्हें इन दोनों में से कोई जांच एजेंसी जेल के बाहर ही गिरफ्तार कर ले। इमरान पर चार केस ऐसे हैं, जिनमें पुख्ता सबूत हैं। यही वजह है कि फेडरल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी और नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो उनका इंतजार कर रही हैं।
90 दिन जांच एजेंसी की कस्टडी में रहेंगे खान
एफआईए को सीक्रेट लेटर चोरी (साइफर गेट स्कैंडल) और नैब को 9 मई को हुई हिंसा मामले में खान से पूछताछ करनी है। खास बात ये है कि नैब खान को 90 दिन तक पूछताछ के लिए अपनी हिरासत में रख सकती है। इस दौरान उन्हें सुप्रीम कोर्ट समेत कोई अदालत जमानत भी नहीं दे सकेगी। राहत सिर्फ ये रहेगी कि खान को जेल के बजाय जांच एजेंसी के हेडक्वार्टर के कमरे में रखा जाएगा। इस मामले में खास बात यह भी है कि जांच एजेंसी और खास तौर पर नैब चीफ चाहे तो खान की कस्टडी बढ़ा भी सकता है और इसके लिए उसे किसी कोर्ट से मंजूरी नहीं लेनी होगी। शाहबाज शरीफ ने जुलाई में नैब कानून में बदलाव किया था। इसके तहत एजेंसी के चीफ को यह ताकत दी गई है कि वो अपनी मर्जी से कस्टडी पीरिएड बढ़ा सकता है।
इमरान को सत्ता तक लाने वाली फौज ही थी। बाद में जब वो फौज को ही चुनौती देने लगे तो उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी। अब फौज की जो नई लीडरशिप है, वो खान को कतई पसंद नहीं करती। माना जा रहा है कि 16 सितंबर के बाद खान की मुश्किलें काफी बढ़ जाएंगी। इसकी वजह ये है कि 6 सितंबर को उनके दोस्त और प्रेसिडेंट आरिफ अल्वी का टेन्योर खत्म हो रहा है और इसके बाद 16 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल भी रिटायर हो जाएंगे। ये दोनों ही अपनी-अपनी ताकत का इस्तेमाल करके अब तक इमरान को बचाते आए हैं।
तोशाखाना केस में इमरान की पत्नी बुशरा भी आरोपी हैं। वो अब तक जांच एजेंसियों के सामने पेश होने से बचती रही हैं। कुछ दिन पहले बुशरा को पूछताछ के लिए समन जारी किए गए थे।
क्या है साइफर गेट स्कैंडल या सीक्रेट लेटर चोरी केस
पिछले साल अप्रैल में सरकार गिरने के बाद इमरान की तरफ से लगातार दावा किया गया कि यह लेटर (डिप्लोमैटिक टर्म में साइफर) अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट यानी फॉरेन मिनिस्ट्री की तरफ से पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को भेजा गया। इमरान का दावा रहा कि बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन उनको प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं देखना चाहता था और अमेरिका के इशारे पर ही उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था।
‘साइफर गेट या केबल गेट या नेशनल सीक्रेट गेट’ केस में इमरान का फंसना तय माना जा रहा है। इसकी वजह यह है कि जब वो प्रधानमंत्री थे, तब आजम खान उनके चीफ सेक्रेटरी थे। आजम से जॉइंट इन्वेस्टिगेशन टीम (जेआईटी) दो बार पूछताछ कर चुकी है। आजम ने बिल्कुल साफ कहा है कि उन्होंने यह साइफर इमरान को दिया था। बाद में आजम ने जब इसे खान से वापस मांगा तो उन्होंने कहा कि यह तो कहीं गुम हो गया है।
हैरानी की बात है कि खान ने बाद में यही साइफर कई रैलियों में खुलेआम लहराया। खान ने कहा- ये वो सबूत है जो यह साबित करता है कि मेरी सरकार अमेरिका के इशारे पर फौज ने गिराई। आजम के इकबालिया बयान ने यह तय कर दिया है कि इमरान चाहकर भी इसे झुठला नहीं सकेंगे। खास बात यह भी है कि आजम ने अपना बयान जांच एजेंसी और मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया है। इसकी कॉपी पर सिग्नेचर भी किए हैं।
इसके अलावा खान का एक ऑडियो टेप भी वायरल हुआ था। इसमें इमरान, उस वक्त के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और आजम खान की आवाजें थीं। फोरेंसिक जांच में यह साबित हो चुका है कि यह ऑडियो सही है, इससे कोई छेड़छाड़ नहीं की गई थी। टेप में खान कुरैशी और आजम से कहते हैं- अब हम इस साइफर को रैलियों में दिखाकर इससे खेलेंगे।
दोस्त को मोहरा बनाया
सबसे जरूरी यह जानना है कि इमरान जो कागज दिखा रहे थे, वो वास्तव में है क्या। पाकिस्तान के सीनियर जर्नलिस्ट रिजवान रजी के मुताबिक यह कागज झूठ के सिवाए कुछ नहीं था। कुछ महीनों पहले तक अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत थे असद मजीद। वो इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के सदस्य और इमरान के खास दोस्त थे।
रजी आगे कहते हैं- इमरान ने मजीद को एक मिशन सौंपा कि किसी तरह जो बाइडेन एक फोन इमरान को कर लें। यह हो न सका। फिर खान ने मजीद से कहा कि वो ये बताएं कि बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन इमरान सरकार और पाकिस्तान को लेकर क्या सोच रखती है। जवाब में मजीद ने एक बढ़ाचढ़ाकर इंटरनल मेमो लिखा। इसमें बताया कि व्हाइट हाउस को लगता है कि इमरान सरकार के रहते पाकिस्तान से रिश्ते बेहतर नहीं हो सकते।
पाकिस्तान पर भरोसा नहीं करेगी दुनिया
पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी वकील और पॉलिटिकल एनालिस्ट साजिद तराड़ के मुताबिक पहली बात तो यह कि यह ऑफिशियल कम्युनिकेशन नहीं था। यह एक ऐम्बेसेडर का अपने विदेश मंत्रालय को लिखा इंटरनल मेमो है, जिसकी कोई कानूनी या डिप्लोमैटिक हैसियत नहीं। हां, इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह नेशनल सीक्रेट होता है और इसका पब्लिक प्लेस पर न तो जिक्र किया जा सकता है और न दिखाया जा सकता।
तराड़ आगे कहते हैं- अमेरिका को अब पाकिस्तान की कोई जरूरत नहीं है। अगर होगी भी तो वो इमरान से मंजूरी क्यों मांगता? वो फौज से बात करता है और करता रहेगा। इसे आप इंटरनल मेमो, इंटरनल केबल, वायर या बहुत हुआ तो डिप्लोमैटिक नोट कह सकते हैं। ये तो बेहद आम चीज है। इमरान की गलती की वजह से अब दूसरे देश भी पाकिस्तान पर आसानी से भरोसा नहीं करेंगे।
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