
बीजिंग/शिव कुमार यादव/- चीन-पाकिस्तान की दोस्ती की मिसाल देने वाला चीन अब पाकिस्तान से मुंह मोड़ने लगा है। दरअसल भारत को घेरने के लिए जिस चीन ने पाकिस्तान में अपनी सबसे महत्वकांक्षी योजना सीपीईसी के तहत 60 अरब डॉल के चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर के प्रोजेक्ट को शुरू किया था उसे अब रोक दिया गया है। चीन का कहना है कि इस प्रोजेक्ट विस्तार तब तक नही किया जायेगा जब तक पाकिस्तान में आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता कायम नही हो जाती है।
इतना ही नहीं, चीन ने पाकिस्तान नें ऊर्जा, जल प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन के प्रोजेक्ट में निवेश करने से भी मना कर दिया है। चीन गिलगित-बाल्टिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा और पोक सहित समुद्र तटीय हिस्सों में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए निवेश करने से भी पीछे हट गया है। चीन ने सीपीईसी को लेकर दो टूक कहा है कि पाकिस्तान के आंतरिक हालात, सुरक्षा व्यवस्था और आर्थिक व राजनीतिक स्थिरता से संतुष्ट होने के बाद ही वह नए प्रोजेक्ट में निवेश करेगा।

पाक पर चीन, सऊदी, यूएई का कर्ज
पाकिस्तान की अस्थिरता और तंगहाली के साथ यह भी माना जाता है कि चीन का उस पर भारी कर्ज है। ऐसे में चीनी निवेशकों में इस बात के प्रति भी भरोसा डगमगा गया है कि उनका कर्ज लौटेगा भी या नहीं। पाकिस्तान ने चीन के अलावा सऊदी अरब और यूएई से भी कर्ज ले रखा है और उसे लगता है कि सीपेक ही उसकी सभी समस्याओं का हल है। हालांकि, पाकिस्तान में मौजूदा कामकाज चालू रहें, इसके लिए चीन खर्च करता रहेगा। सीपेक को लेकर दूसरी समस्या यह है कि यह कॉरिडोर पाकिस्तान के जिन हिस्सों से गुजरता है, वहां सुरक्षा व्यवस्था काफी कमजोर हैं। कॉरिडोर का अधिकांश हिस्सा बलूचिस्तान से होकर गुजरता है, लेकिन वहां सुरक्षा के साथ साथ राजनीतिक अस्थिरता भी परेशानी बनी हुई है। चीन बलूच लिबरेशन आर्मी को पाकिस्तान में अपने लिए बड़ा खतरा मानता है।

आतंक और राजनीतिक उथल-पुथल का चीनी प्रोजेक्ट पर असर
वहीं, अल कायदा और प्ैप्ै ने भी चीन के कॉरिडोर प्रोजेक्ट को निशाना बनाया है। पाकिस्तान के सियासी दलों और सेना के बीच में होने वाली तकरार भी प्रोजेक्ट को संकट में डाल रही है। कई छोटे क्षेत्रीय दलों ने प्रोजेक्ट की राह में रोड़े खड़े किए हैं।
चीन का मानना है कि राज्य सरकारें और पाकिस्तान की सरकार दोनों खुद ही प्रोजेक्ट को लेकर सहमत नहीं है। उनके बीच तालमेल की कमी से प्रोजेक्ट पर काम करने वाले चीनी इंजीनियरों और कर्मचारियों के साथ आम नागरिकों को भी खतरा है।
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के लौटते ही पाक का महत्व घटा
कुछ साल पहले तक चीन, पाकिस्तान को तवज्जो देता था, क्योंकि अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाएं थीं। उनसे चीन को खतरा था। दोनों की खींचतान से पाक को तवज्जो मिलती थी। जैसे ही अमेरिकी सेनाएं लौटीं, चीन के लिए पाक की अहमियत घट गई।
अमेरिका को भी पाकिस्तान से दो चीजें चाहिए थीं। पहली-अफगानिस्तान को लेकर मदद और चीन के खिलाफ साथ। अब अमेरिका की वापसी के साथ पाकिस्तान अकेला पड़ गया है। ग्वादर समेत अन्य जगह चीन के प्रोजेक्ट का विरोध हुआ है।

चीन के फैसले की आलोचना शुरू
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ने अपना फैसला पाकिस्तान के फैसलों को देखकर लिया है। इसकी एक वजह ये है कि वित्तीय मदद के बाद भी पाक अर्थतंत्र को क्यों संभाल नहीं पा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि सीपेक प्रोजेक्ट को लेकर चीन की मंशा तभी समझ में आ गई थी, जब चीन ने 2022 में सीपेक के बजट को 56 फीसदी से ज्यादा कम कर दिया था।
क्या है सीपीईसी
चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना है। इसकी शुरुआत 2013 में की गई थी। इसमें पाकिस्तान के ग्वादर से चीन के काशगर तक 50 बिलियन डॉलर (करीब 3 लाख करोड़ रुपए) की लागत से आर्थिक गलियारा बनाया जा रहा है। इसके जरिए चीन की अरब सागर तक पहुंच हो जाएगी। ब्च्म्ब् के तहत चीन सड़क, बंदरगाह, रेलवे और ऊर्जा प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है।

भारत को सीपीईसी से इसलिए एतराज
-50 बिलियन डॉलर की लागत वाला सीपीईसी पाकिस्तान के बलूचिस्तान में मौजूद ग्वादर पोर्ट और चीन के शिनजियांग को जोड़ेगा।
-सीपीईसी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के गिलगित-बाल्तिस्तान इलाके से भी गुजरता है, जिस पर भारत का दावा है।
-भारत का मानना है कि सीपीईसी के जरिए चीन विस्तारवाद की नीति पर चल रहा है औऱ भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है।
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