नई दिल्ली/उमा सक्सेना/- आज दिनांक 05 दिसंबर 2025 को कृषि विज्ञान केंद्र, उजवा, नई दिल्ली में विश्व मृदा दिवस के अवसर पर एक विशेष जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को मिट्टी के संरक्षण, उसके वैज्ञानिक प्रबंधन और कृषि उत्पादन में मृदा स्वास्थ्य की अहम भूमिका से अवगत कराना रहा। वर्ष 2002 में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सॉइल साइंस द्वारा 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा गया था, ताकि मिट्टी को प्राकृतिक व्यवस्था का एक मूल तत्व और मानव जीवन के लिए आवश्यक संसाधन के रूप में महत्व दिया जा सके। हर वर्ष की तरह इस बार भी यह दिवस विश्वभर में उत्साहपूर्वक मनाया गया, जिसकी 2025 की थीम रही — “स्वस्थ शहरों के लिए स्वस्थ मिट्टी”।

किसानों को वैज्ञानिक खेती के तरीकों से किया गया अवगत
कार्यक्रम की शुरुआत वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं केंद्र के अध्यक्ष डॉ. डी. के. राणा द्वारा की गई, जिन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित किसानों का स्वागत करते हुए विश्व मृदा दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन की जानकारी देते हुए बताया कि मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कीटनाशकों का संतुलित और सुरक्षित उपयोग बेहद जरूरी है। उनका कहना था कि स्वस्थ मिट्टी ही टिकाऊ कृषि और सुरक्षित खाद्य उत्पादों की नींव है।
मृदा एवं जल परीक्षण पर विशेष चर्चा
कार्यक्रम के दौरान मृदा विशेषज्ञ श्री बृजेश यादव ने किसानों को मिट्टी और जल के नमूने लेने की सही विधि, प्रयोगशाला परीक्षण की प्रक्रिया और रिपोर्ट के आधार पर खाद व उर्वरकों के वैज्ञानिक इस्तेमाल के बारे में विस्तार से समझाया। उन्होंने फसल चक्र में दलहनी फसलों को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। साथ ही भोजन, चारा, ईंधन, फाइबर उत्पादन और पर्यावरण संतुलन में मृदा स्वास्थ्य की भूमिका को भी उन्होंने रेखांकित किया।

सब्जी उत्पादन में पोषक तत्व प्रबंधन पर मार्गदर्शन
केंद्र के बागवानी विशेषज्ञ श्री राकेश कुमार ने सब्जी फसलों में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पर जानकारी देते हुए बताया कि फल और सब्जियों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से उत्पादन में भारी नुकसान हो सकता है। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि मृदा परीक्षण के आधार पर ही पोषक तत्वों का प्रबंध करें, ताकि उत्पादन बढ़े और लागत कम हो।
उर्वरता बढ़ाने और लागत घटाने पर जोर
इस अवसर पर डॉ. समर पाल सिंह, एसएमएस (सस्य विज्ञान) ने फसलों में एकीकृत पोषक प्रबंधन पर विस्तृत व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि संतुलित पोषण और रासायनिक उर्वरकों के सीमित उपयोग से मिट्टी की सेहत सुधरती है, फसल उत्पादन में स्थिरता आती है और किसानों की लागत में भी कमी आती है।
जैविक व प्राकृतिक खेती को अपनाने की अपील
कार्यक्रम के अंतिम चरण में कृषि प्रसार विशेषज्ञ श्री कैलाश ने किसानों से अपील की कि वे खेती में रासायनिक पदार्थों का उपयोग कम करें और जैविक व प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाएं। इसके बाद डॉ. बाबूलाल, विशेषज्ञ (पादप संरक्षण) ने सरसों की फसल में रोग प्रबंधन से जुड़े महत्वपूर्ण उपाय साझा किए और सभी उपस्थित किसानों का आभार व्यक्त किया।
किसानों की सक्रिय भागीदारी और मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरण
कार्यक्रम में दिल्ली क्षेत्र के बड़ी संख्या में किसान और महिला किसान शामिल हुए। कार्यक्रम के समापन पर किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए गए, जिससे वे अपनी मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार कृषि कार्य कर सकें।


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