
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/हेल्थ डेस्क/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- कोरोना महामारी ने दुनियाभर में चिकित्सकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। कोरोना से विश्व में बनी प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते अब एक नई बहस छिड़ गई हैं। जिसमें विशेषज्ञ यह कहने को मजबूर हो गये है कि हम एलोपैथ के साथ-साथ्ज्ञ आयुर्वेद के महत्व को इस बिमारी में कमतर नही आक सकते। अच्छा होगा कि इस बिमारी से लडने में एलोपैथी व आयुर्वेद मिलकर काम करे तभी हम अच्छे परिणामों की आशा कर सकते है। फिलहाल एलोपैथी का इलाज मंहगा और जटील होने के चलते लोगों के लिए परेशानी बना हुआ है। कोरोना महामारी के ऐसे अंधाकर में आयुर्वेद एक उजाले की तरह दिखाई दे रहा है। आयुर्वेद ने हजारों वर्षों तक एक सुनहरा अतीत देखा है। बहुत सारे अनुसंधानों के साथ इस परंपरा को तैयार किया गया है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मची हाहाकार में इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति ने लोगों को एक नई उम्मीद दी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में कई सारी ऐसी दिव्य औषधियां हैं जिनके उपयोग से कोरोना जैसी गंभीर महामारी से निजात पाया जा सकता है।
कोरोना की दूसरी महामारी के दौरान वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में सामने आए आयुर्वेद को लेकर लोगों के मन में तमाम तरह के सवाल हैं। कई आयुर्वेद विशेषज्ञ यह दावा कर रहे हैं कि इस चिकित्सा पद्धति से कोरोना के रोगियों का सफल इलाज किया गया है, तमाम ऐसे अध्ययन हुए हैं जो कोरोना में आयुर्वेद को काफी प्रभावी साबित करते हैं। ऐसे में क्या यह माना जा सकता है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा, ऐलोपैथ से बेहतर साबित हो सकती है? आइए इस विषय पर विशेषज्ञों की राय जानते हैं।
आयुर्वेद की प्रभाविकता व प्रमाणिकता
सेंटर फॉर रोमैटिज डिजीज , पुणे के निदेशक डॉ अरविंद चोपड़ा कहते हैं कि कोरोना के डेढ़ साल से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी अभी हम यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि जिन लोगों को शुरुआती दिनों में हल्के लक्षण हैं, क्या उनमें बीमारी गंभीर रूप ले सकती है? ऐसे में कोरोना के हर मरीज का ध्यान रखना बेहद जरूरी हो जाता है। आयुर्वेद के संदर्भ में देखें तो निश्चित ही इसमें कई ऐसी औषधियां हैं जो संक्रमण और कोरोना के लक्षणों को ठीक करने में काफी अच्छी तरह से काम कर सकती हैं।
आयुष-64 दवा पर अध्ययन और उपयोग
डॉ अरविंद बताते हैं कि कोरोना के समय में आयुर्वेदिक दवाओं के प्रोटोकॉल को सेट करते समय यह ध्यान रखना था कि हम ऐसी दवाइयां और औषधियां लोगों तक पहुंचाएं जो हर स्तर पर अधिक से अधिक लोगों को लाभ दे सकें। आयुर्वेद ने इस दिशा में भी बेहतर काम किया है। आयुष-64 को लेकर किए गए अध्ययन में हमें इसके सुखद परिणाम देखने को मिले। कोरोना के 140 रोगी जिनको माइल्ड-मॉडरेट लक्षण थे, उनपर किए गए अध्ययन में इसके लाभ देखे गए। वैज्ञानिकों ने पाया कि यह दवा न सिर्फ रोग को ठीक करती है साथ ही शरीर को इस तरह से भी मजबूती देती है, जिससे रोगी में पोस्ट कोविड समस्याओं के खतरे को भी कम किया जा सके।
आयुर्वेद और एलोपैथिक दवाइयों के लाभ और साइड-इफेक्ट्स
आयुर्वेद हॉस्पिटल्स के प्रमुख और प्रबंध निदेशक डॉ राजीव वासुदेवन बताते हैं कि साल 2015 में नेचर जर्नल में छपे एक रिपोर्ट में यूएस में सबसे ज्यादा बिकने वाली 10 दवाइयों का सूची दी गई थी। इस अध्ययन में बताया गया कि इन दवाइयों से जितना लाभ होता है, वहीं 10-24 लोगों में इसके दुष्प्रभाव भी देखे जाते हैं।
आयुर्वेद के संदर्भ में बात करें तो इसमें रोगी के सिर्फ एक रोग को ठीक नहीं किया जाता बल्कि उसे पूरी तरह से ठीक करने पर जोर दिया जाता है। यहीं पर अनुसंधान की विस्तृत आवश्यकता महसूस होती है, जिससे इस साबित किया जा सके कि आयुर्वेदिक चिकित्सा में रोग को ठीक करने के साथ आगे की सुरक्षा का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
आयुर्वेद के प्रमाण आधारित तथ्यों की जरूरत
डॉ अरविंद चोपड़ा बताते हैं आयुर्वेद का जमीनी स्तर पर लोगों के इलाज में महत्वपूर्ण योगदान है। वहीं मौजूदा समय में ऐलोपैथ को ही लोग चिकित्सा का आधार मानते हैं। अगर यह दोनों मिलकर काम करें तो इसके लाभ कहीं अधिक देखने को मिल सकते हैं। कोरोना जैसी महामारी और विपरीत परिस्थितियों में आयुर्वेद ने बेहतर परिणाम प्रस्तुत किए हैं। अगर हम लोगों के सामने प्रमाण आधारित तथ्यों के साथ आते हैं तो निश्चित है वर्षों पुरानी यह चिकित्सा पद्धित अपनी विश्वसनीयता सिद्ध करने में सफल रहेगी।


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