टीएमसी का विस्तारीकरण कांग्रेस पर पड़ रहा भारी

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October 3, 2024

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टीएमसी का विस्तारीकरण कांग्रेस पर पड़ रहा भारी

-2024 मे देशभर में खेला होबे -तीसरे मोर्चे के नेतृत्व के लिए देश में पकड़ बना रही टीएमसी, बंगाल के बाद यूपी, गोवा, बिहार व हरियाणा में बड़े नेता टीएमसी से जुड़े

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/– 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए पश्चिम बंगाल की सीएम व टीएमसी की नेता ममता बैनर्जी ने देशभर में अपने पार्टी के विस्तारीकरण की गति तेज कर दी है। लेकिन जिस तरह से भाजपा ने कांग्रेस के खात्में के लिए अभी तक काम किया है ठीक उसी तरह अब टीएमसी भी कांग्रेस पर भारी पड़ रही है और उसके विस्तारीकरण में पहले निशाने पर कांग्रेस के बड़े नेता है जो कांग्रेस छोड़ टीएमसी का रूख कर रहे है।                 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को धूल चटाने के बाद ममता बनर्जी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में अभी से जुट गई हैं। बंगाल में खेला होबे का नारा देने के बाद दीदी अब लोकसभा चुनाव में भी खेला होबे के तहत खुद को तीसरे विकल्प के रूप में खड़ा करने की तैयारी कर रही है। दीदी ने इसके लिए देशभर में पार्टी संगठन को मजबूत करने की कवायद भी शुरू कर दी है।               यहां बता दें कि यूपी, गोवा, उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं। ममता बनर्जी अगले साल होने वाले इन राज्यों के विधानसभा चुनाव के बहाने पार्टी की जमीनी तैयारी शुरू कर चुकी हैं। वे फिलहाल यहां पार्टी की उपस्थिति चाहती हैं। उन्होंने यहां पार्टी संगठन को विस्तार देने का काम शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में इन राज्यों से भाजपा और कांग्रेस समेत स्थानीय पार्टियों के कई दिग्गज नेता तृणमूल कांग्रेस में शामिल भी हो चुके हैं।               ं ममता ने गोवा मे पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरियो को साधा है।जो गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री व सात बार के कांग्रेस विधायक रहे चुके है। लुइजिन्हो फलेरियो 29 सितंबर को पूर्व आईपीएस अधिकारी लवू ममलेदार, साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता एन शिवदास और पर्यावरणविद राजेंद्र शिवाजी काकोडकर के साथ टीएमसी में शामिल हुए। इसके बाद ममता ने उन्हें बंगाल से राज्यसभा भी भेज दिया है। लुइजिन्हो फलेरियो ईसाई समुदाय से आते हैं, जो गोवा में हिन्दुओं के बाद सबसे बड़ी आबादी है। ममता यहां ईसाई समुदाय को साधने के साथ उन हिन्दू वोटर्स को भी अपने पाले में करना चाहती हैं जो कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ किसी तीसरे दल को विकल्प के तौर पर देखना चाहते हैं।                बंगाल जीतने के बाद ममता ने असम और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाया। ममता ने असम की सिलचर से कांग्रेस की सांसद रह चुकीं सुष्मिता देव को पार्टी में शामिल कराया। वे कांग्रेस के दिग्गज नेता और केंद्रीय मंत्री रहे संतोष मेहन देव की बेटी भी हैं। टीएमसी ने उन्हें भी बंगाल से ही राज्यसभा का सांसद बनाकर भेजा है। वहीं उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल में ब्राह्मण चेहरा बने ललितेश पति त्रिपाठी ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। ललितेश यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री पं. कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र हैं। वे 2012 में नक्सल प्रभावित मड़िहान सीट से विधायक भी रह चुके हैं। ललितेश का परिवार चार पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ रहा।                कांग्रेस के साथ ही ममता बनर्जी ने त्रिपुरा में भाजपा को भी जोरदार झटका दिया है। दरअसल भाजपा विधायक आशीष दास यहां टिएमसी का दामन थाम चुके हैं। टीएमसी प्रदेश में भाजपा को पछाड़ने की तैयारी कर रही है। पार्टी की नजर भाजपा के असंतुष्टों पर दिख रही है। विधायक आशीष दास को टीएमसी में शामिल कराना इसी अभियान का हिस्सा माना जा रहा है। यहां बांग्ला भाषी वोटर्स के अलावा मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बड़ा उलटफेर करने का मादा रखती है। बंगाल में जिस तरह पार्टी ने महिलाओं और खासकर मुस्लिम मतदाताओं को खुद से जोड़े रखा, उसी तरह त्रिपुरा में भी टीएमसी इन्हें अपना कोर वोटर बनाने की तैयारी में है। अब तक ये वाम दलों के वोटर्स रहे हैं।                  ममता बनर्जी 22 से 25 नवंबर तक दिल्ली दौरे पर हैं। वे यहां सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलने वाली हैं। इस मुलाकात से पहले ही उन्होंने कई बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल कराया। सबसे पहले जेडीयू के सांसद रह चुके पवन वर्मा ने पार्टी की सदस्यता ली। इसके बाद कांग्रेस नेता और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद पत्नी पूनम आजाद के साथ ममता के सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी के घर पहुंचे। यहां पहले से मौजूद ममता बनर्जी ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। इसके चंद घंटे बाद ही हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद रह चुके अशोक तंवर भी ममता से मिले और टीएमसी में शामिल हो गए। तंवर कभी राहुल के करीबियों में गिने जाते थे। ममता कीर्ति आजाद और अशोक तंवर के सहारे बिहार और हरियाणा में पार्टी संगठन को मजबूत करने का प्लान बना रही हैं।                 मशहूर लेखक जावेद अख्तर और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के करीबी रहे सुधींद्र कुलकर्णी ने भी मंगलवार को दिल्ली में ममता बनर्जी से मुलाकात की। ये मुलाकात करीब 1 घंटे तक चली। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इनके बीच क्या चर्चा हुई। सूत्रों के अनुसार, उन्होंने वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की। कुलकर्णी कभी अटल बिहारी वाजपेयी के सलाहकार हुआ करते थे। वाजपेयी की तबीयत खराब होने के बाद वे लालकृष्ण आडवाणी के सलाहकार बन गए। कुलकर्णी ने ही 2009 लोकसभा चुनाव से पहले आडवाणी फॉर च्ड कैंपने शुरू किया था राजनीतिक क्षेत्र में सुधींद्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी के रूप में जाना जाता था।                   कुलकर्णी 13 साल तक भाजपा में सक्रिय रहे। 2009 में लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया था। हालांकि उन्होंने उस दौरान कहा था कि वे पार्टी के शुभ चिंतक बने रहेंगे। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वे लगातार उन पर टिप्पणी करते रहे। बाद में वे राहुल गांधी के समर्थन में भी बयान देते रहे। 2019 में मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद कुलकर्णी पूरी तरह से हाशिए पर चले गए। हालांकि, इसके बाद आडवाणी से भी वे दूर ही रहे।                  बंगाल विधानसभा में भारी जीत के बाद भाजपा के दिग्गज नेता रहे और पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ज्डब् में शामिल हो गए। सिन्हा अभी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे और कांग्रेस नेता अभिजीत मुखर्जी भी इसी साल जुलाई में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद 2012 और 2014 के चुनाव में अभिजीत बंगाल की जंगीपुर लोकसभा सीट से दो बार सांसद रहे। हालांकि, 2019 के चुनाव में वे तीसरे नंबर पर पहुंच गए।                     जिस तरह से टीएमसी अभी तक यूपी, त्रिपुरा, बिहार, दिल्ली, हरियाणा व गोवा में अपना विस्तार करने की चाल मे ंकामयाब रही है। उसे देखकर यही लगता है कि अभी तक टीएमसी में वही अवसरवादी नेता गये है जो कांग्रेस और बीजेपी में हाशिये पर बने हुए थे। राजनीति विशेषज्ञों की माने तो इस तरह के नेताओं से टीएमसी को कोई ज्यादा फायदा मिलने वाला नही है। अगर टीएमसी दूसरे राज्यों में अपनी पहचान बनाना चाहती है तो उसे सक्रिय कार्यकर्ताओं को साधना होगा। कांग्रेस तो वैसे भी डूबता जहाज बनी हुई है और भाजपा इतनी विशाल पार्टी बन गई है कि उसमें सबको खुश नही किया जा सकता इसलिए कुछ असंतुष्ट का पलायन कोई बड़ी बात नही है। हां बंगाल में टीएमसी ने भाजपा को जो शिकस्त दी है उसका टीएमसी को दुसरे राज्यों में फायदा मिल सकता है।

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