नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/टिकरी बार्डर/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- पिछले एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत किसान अभी भी आंदोलन खत्म करने के मूड में नही दिखाई दे रहे है। किसानों की माने तो उन्हे पीएम मोदी पर भरोसा नही है। जिसे देखकर लगता है कि अब दिल्ली की सीमाओं पर एक नया मोर्चा शुरू होने जा रहा है जिसकी बिसात ऐलान व भरोसे की सियासत पर बिछ गई है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अचानक तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने से विपक्ष व तथाकथित किसान नेताओ की राजनीति पूरी तरह से खत्म हो गई हैं। इन बिलों के निरस्त होने से किसान नेताओं को कुछ भी हाथ नही लगा। वो यहां पैसे व जन नेता बनने आये थे लेकिन अब खाली हाथ जाना उन्हे रास नही आ रहा है जिसकारण अब उक्त किसान नेता किसान आंदोलन की नई बिसात बिछाने के लिए नये सिरे से मंथन कर रहे है। जिसे देखते हुए अब किसान नेता कह रहे हैं कि संसद में कृषि कानून रद्द होने के बाद भी किसानों का आंदोलन जारी रह सकता है। दरअसल, राकेश टिकैत ने साफ-साफ कहा कि सरकार अब एमएसपी पर भी बातचीत करे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गुरू नानक देव जी के जन्मदिन को विशेष और खास दिन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने सालभर से चली आ रही किसानों की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की और अन्नदाताओं को हुई दिक्कतों पर क्षमा मांगते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान कर दिया। किसान संगठनों व किसानों ने इस फैसले का स्वागत किया, लेकिन किसान नेताओं ने अलग ही राग अलापते हुए कहा कि उन्हे मोदी पर भरोसा नही है जब तक केंद्र सरकार संसद में इन बिलों को निरस्त करने का बिल पास नही करती तब तक किसानों का आंदोलन खत्म नही होगा। किसान नेता राकेश टिकैत ने तो इसके बाद एमएसपी समेत किसानों की अन्य मांगों का मसला भी उठा दिया। अब सवाल यह उठता है कि पीएम मोदी के एलान के बाद भी क्या किसान आंदोलन खत्म नहीं होगा? क्या यह पीएम मोदी का मास्टरस्ट्रोक साबित होगा? क्या पीएम के एलान और किसानों के भरोसे के बीच अब सियासी दांव-पेच चले जाएंगे?
सुबह आठ बजे पीएमओ के ट्वीट ने भले ही किसी की नींद में खलल न डाला हो, लेकिन नौ बजे शुरू हुए पीएम मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन ने हर किसी की नींद जरूर उड़ा दी। पीएम मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान करते हुए राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी। एकबारगी तो किसी को समझ ही नहीं आया कि किसान आंदोलन को लेकर हो रही राजनीति का अब क्या होगा? क्या पीएम के इस एलान ने एक बार में ही विपक्ष व किसान नेताओं के आंदोलन को जड़ से उखाड़ दिया? हालांकि अब बात हार-जीत तक खिच गई है। विपक्ष किसान आंदोलन पर खाली हो गया है और किसान नेता शुन्य। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ऐलान से सबके मुंह बंद कर दिये है लेकिन फिर भी उन्होने किसानों से क्षमा मांगी और आंदोलन खत्म कर अपने धर जाने की अपील की। वहीं किसानों से ज्यादा मोदी के इस निर्णय से उन विपक्षी पार्टियों को सबसे ज्यादा झटका लगा है जो किसान आंदोलन के सहारे पांच राज्यों में चुनाव जीतने की बिसात बिछा रहे थे। मोदी का यह फैसला न विपक्ष को रास आ रहा है और न ही किसान नेताओं को जो आंदोलन के सहारे अपनी नैयया पार लगाने की जुगत में लगे हुए थे।
किसी ने भी नही सोचा था कि मोदी एकदम से इस तरह से सभी को चौंका देंगे। अब वही नेता अपनी राजनीति बचाने के लिए सरकार पर आरोप लगा रहे है कि पांच राज्यों में अपनी पतली हालत को देखते हुए भाजपा ने यह निर्णय लिया है। क्योंकि बंगाल चुनाव में भाजपा अपनी पराजय देख चुकी है और भाजपा किसी भी सूरत में यूपी में चुनावों में अपनी सत्ता खोना नही चाहती। हालांकि, किसान व विपक्षी नेताओं का पहला रिएक्शन यह रहा कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव देखकर सरकार डर गई। इस वजह से ही सरकार को मजबूरी में यह कदम उठाना पड़ गया। उन्होंने कहा कि किसानों के प्रदर्शन के सामने आखिरकार सरकार ने हार मान ली।
पीएम मोदी के एलान के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि संयुक्त मोर्चा प्रधानमंत्री की घोषणा को लेकर बातचीत कर रहा है। जल्द ही आगे की रणनीति बनाई जाएगी, लेकिन आंदोलन तब तक वापस नहीं होगा, जब तक तीनों कृषि कानून संसद में रद्द नहीं होते। हम उस दिन का इंतजार करेंगे।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो संसद में कृषि कानून रद्द होने के बाद भी किसानों का आंदोलन जारी रह सकता है। दरअसल, राकेश टिकैत ने साफ-साफ कहा कि सरकार अब एमएसपी पर भी बातचीत करे। इसके अलावा किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी चर्चा करने का आह्वान किया। इससे स्पष्ट है कि राकेश टिकैत कृषि कानून रद्द होने के बाद भी किसान आंदोलन जारी रख सकते हैं।
पीएम मोदी के एलान के पीछे किसान नेता और विपक्षी दल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों का असर बता रहे हैं, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की राय इससे एकदम इतर है। उनका कहना है कि कमजोर विपक्ष के चलते उत्तर प्रदेश में भाजपा की स्थिति काफी हद तक मजबूत मानी जा रही है। ऐसे में भाजपा का निशाना पंजाब पर काफी ज्यादा है। इसे करतारपुर कॉरिडोर खोलने से लेकर गुरु नानक जयंती पर कृषि कानून वापस लेने के एलान तक से जोड़कर देखा जाना चाहिए। इसे चन्नी को सीएम बनाने के कांग्रेस के दलित वाले दांव और बसपा-अकाली के गठबंधन की काट माना जा रहा है। वहीं, पीएम मोदी के एलान के बाद कैप्टन अमरिंदर द्वारा भाजपा के साथ काम करने को उत्सुक होना इस तस्वीर को काफी हद तक साफ कर रहा है।
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