नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- आज डिजिटल क्नेक्टिविटी पूरी दुनिया से जुड़ने का सबसे अहम साधन बन गया है। बीते कुछ साल डिजिटल कनेक्टिविटी के लिहाज से बहुत ही अहम रहे हैं। दुनिया भर में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की इंटरनेट तक पहुंच 20 करोड़ ज्यादा है, साथ ही महिलाओं के पास पुरुषों की तुलना में मोबाइल होने की संभावना 21ः कम है। भारत में पांच साल से अधिक उम्र के कुल 45.1 करोड़ लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा है। इसमें से पुरुषों की संख्या 25.8 करोड़ है, जबकि महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में आधी है।
बीते दशक में दुनिया डिजिटल कनेक्टिविटी के लिहाज से 2जी से 3जी और 3जी से 4जी हुई। यहां तक की कुछ देशों ने तो 5 जी से आगे का सफर शुरू कर दिया है। की-पैड फोन की जगह सेमी-स्मार्टफोन ने ली और फिर स्मार्टफोन आ गया, लेकिन इन सब के बीच अभी भी “इनइक्वालिटी इन कनेक्टिविटी” यानी नेटवर्क कनेक्टिविटी में गैर-बराबरी का एक रूप हमारे सामने आया। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के एक्सपर्ट कहते हैं कि 5जी के आने से कनेक्टिविटी में इनइक्वालिटी या गैर-बराबरी कम होगी। इसके लिए विरजोन और डब्ल्यूईएफ संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं।
दरअसल दुनिया और हमारे समाज में कई तरह की गैरबराबरी है। अलग-अलग जाति, धर्म, समुदाय और जेंडर के लोगों में कुछ लोग तमाम तरह के अधिकारों और सुविधाओं में आगे होते हैं, तो वहीं कुछ लोग पीछे छूट जाते हैं। यानी बराबरी खत्म हो जाती है, इसे ही सोशल इनइक्वालिटी या सामाजिक गैर-बराबरी कहा जाता है। कनेक्टिविटी में इस तरह के अंतर को “इनइक्वालिटी इन कनेक्टिविटी” कहा जाता है।
दुनिया भर में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की इंटरनेट तक पहुंच 20 करोड़ ज्यादा है, साथ ही महिलाओं के पास पुरुषों की तुलना में मोबाइल होने की संभावना 21ः कम है। भारत में पांच साल से अधिक उम्र के कुल 45.1 करोड़ लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा है। इसमें से पुरुषों की संख्या 25.8 करोड़ है, जबकि महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में आधी है।
अच्छी खबर यह है कि दुनिया में डिजिटल एक्सेस को बढ़ावा देकर सोशल इनइक्वालिटी कम करने की पहल ॅम्थ् कर रहा है। यूनाइटेड नेशन (न्छ) की संस्था, इंटरनेशनल टेली-कम्यूनिकेशन यूनियन के मुताबिक सिर्फ 15 साल में दुनिया की आधी आबादी तक कनेक्टिविटी पहुंच चुकी है, लेकिन इसमें भी भारी इनइक्वालिटी है। मसलन, यूरोप में 80ः लोग इंटरनेट एक्सेस करते हैं, जबकि अफ्रीका में 30ः से भी कम। जाहिर है यूरोप के लोग आर्थिक तौर पर जितने ही संपन्न हैं, अफ्रीका के लोग उतने ही गरीब। यानी दुनिया के कुल कनेक्टेड लोगों में गरीबों की संख्या, गैर पढ़े-लिखे लोगों की संख्या और महिलाओं की संख्या कम है। ॅम्थ् इस दूरी को कम करना चाहता है।
डब्ल्यूईएफ के एक्सपर्ट्स के मुताबिक दुनिया के आर्थिक विकास को गति देने में डिजिटल प्लेटफॉर्म अब सबसे अहम हो चला है। ऐसे में अगर दुनिया के किसी समाज में यदि कनेक्टिविटी में गैर-बराबरी रहेगी तो इसका सीधा असर उस समाज के लोगों के आर्थिक विकास पर पड़ेगा। बाद में यह आर्थिक पिछड़ापन दुनिया में आर्थिक गैर-बराबरी को और भी ज्यादा बढ़ा देगा, जिससे दुनिया पहले से ही जूझ रही है। ॅम्थ् इसी बात का ध्यान रखते हुए इस पहल की तैयारी में है। डब्ल्यूईएफ के मुताबिक इस पहल में दुनियाभर की टेक इंडस्ट्री का रोल अहम होगा। टेक कंपनियों की मदद से ही गरीब, पिछड़े, अशिक्षित और महिलाओं को सस्ते में कनेक्टिविटी उपलब्ध कराई जा सकेगी। इस काम में डब्ल्यूईएफ सरकारों की भी मदद लेगा।


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