कोरोना से ठीक हुए मरीजों को लेकर डब्ल्यूएचओ ने दुनिया को चेताया

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031  
December 5, 2024

हर ख़बर पर हमारी पकड़

कोरोना से ठीक हुए मरीजों को लेकर डब्ल्यूएचओ ने दुनिया को चेताया

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देश-दुनिया/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना से ठीक हुए मरीजो को लेकर दुनिया को चेतावनी देते हुए कहा है कि इस बात का अभी तक कोई सबूत नहीं मिला है कि जो लोग कोरोना संक्रमण से ठीक हुए है उनमें ठीक होने के बाद एंटीबॉडी विकसित हो गया है या नही। उन्हें दोबारा संक्रमण नहीं होगा और वो इससे सुरक्षित हैं इस बात की भी कोई गारंटी नही है।
                                     संगठन ने विश्व को चेताते हुए कहा कि इस तरह के कदम वायरस के संक्रमण को वाकई में बढ़ाने वाले होंगे, जिन लोगों को लगेगा कि वो इम्युन हो गए हैं। वो एहतियात बरतना बंद कर देंगे। कुछ सरकारें ऐसे लोगों के काम पर लौटने की अनुमति देने पर विचार कर चुकी हैं। कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से लगाए गए लॉकडाउन से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचा है। अब तक दुनिया भर में कोरोना के 28 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं और करीब दो लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक संक्षिप्त नोट में कहा है, इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि जिन लोगों में संक्रमण से ठीक होने के बाद एंटीबॉडी विकसित हो गया है, उन्हें  दोबारा संक्रमण नहीं होगा और वो इससे सुरक्षित हैं। ज्यादातर अध्ययन यह बताते हैं कि जो लोग कोरोना के संक्रमण से एक बार ठीक हो गए हैं, उनके खून में एंटीबॉडी मौजूद है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनमें एंटीबॉडी का स्तर कम है। इससे एक निष्कर्ष यह भी निकला है कि शरीर की रोग प्रतिरक्षा-प्रणाली में  मौजूद टी-सेल की भी संक्रमित सेल से लड़ने में अहम भूमिका हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक शुक्रवार तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है जो इस बात की पुष्टि करता हो कि किसी वायरस की एंटीबॉडी की मौजूदगी इम्युन सिस्टम को आगे भी वायरस के संक्रमण से रोकने की क्षमता प्रदान करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है, मौजूदा वक्त में इम्युनिटी पासपोर्ट या फिर जोखिम मुक्त सर्टिफिकेट कितना सटीक होगा इसे पुष्ट करने के लिए एंटीबॉडी से तैयार प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रभावी होने के पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं। संगठन ने कहा है कि एंटीबॉडी के प्रभावी होने को लेकर लैब टेस्ट की आवश्यकता है। लेकिन यह आगे बदल भी सकती है क्योंकि हमें इस वायरस के बारे में हर रोज कुछ नई जानकारी मिल रही है। अभी चूंकि इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि एक बार संक्रमण से बचने के बाद आपको इसका संक्रमण नहीं होगा  इसलिए जिनके अंदर इसकी एंटीबॉडी विकसित हो गई है, उन्हें इम्युनिटी पासपोर्ट के तहत पाबंदियों से रियायत देना जोखिम भरा होगा। जर्मनी, इटली और ब्रिटेन जैसे कई देशों में एंटीबॉडी की टेस्टिंग शुरू हो चुकी है। ब्रिटेन में हर महीने अगले साल तक 25000 लोगों की एंटीबॉडी और संक्रमण दोनों की टेस्टिंग होगी। इससे हमें इस दिशा में ज्यादा और स्पष्ट जानकारी मिलेगी कि एंटीबॉडी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को दोबारा संक्रमण नहीं होने के लिए कितना तैयार कर रहा है और फिर इस पर भविष्य में फैसले लिए जा सकते हैं।

किन देशों में इम्युनिटी पासपोर्ट की बात हो रही है?

पिछले हफ्ते चिली ने कहा है कि जो लोग संक्रमण के बाद ठीक हो गए हैं, उन्हें वो श्हेल्थ पासपोर्टश् जारी करेगी. अधिकारियों ने कहा कि जिनके शरीर में वायरस का एंटीबॉडी पाया जाएगा, वो काम पर लौट सकते हैं। स्वीडन में बहुत कड़ाई से पाबंदियां नहीं लागू की गई है। वहाँ के कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि जो लोग ज्यादा पाबंदियों में रह रहे हैं उनकी तुलना में कम पाबंदियों में रहने वाले लोगों की इम्युनिटी ज्यादा मजबूत होगी। हालांकि स्वीडन की पब्लिक हेल्थ एजेंसी के एंड्रुज वैलेन्सटेन ने न्यूज चैनल से कहा है कि इम्युनिटी को लेकर अभी बहुत कुछ नहीं पता है। उन्होंने कहा, एंटीबॉडी को लेकर ज्यादा टेस्टिंग होने के साथ हमें इसके बारे में और अधिक जानकारी हासिल होगी, लेकिन समय के साथ अगर फिर से संक्रमण की शिकायतें आनी शुरू हुईं तब भी हमें इसके बारे पता चल जाएगा। हालांकि बेल्जियम जहां संक्रमण से होने वाली मृत्यु दर बहुत अधिक है। वहाँ सरकार के सलाहकार ने बीबीसी से बताया कि 11 मई से धीरे-धीरे लॉकडाउन में छूट देने की योजना है।  हालांकि वो इम्युनिटी पासपोर्ट के आइडिया का विरोध करते हैं। बेल्जियम सरकार की कोरोना वायरस की कमिटी में शामिल वायरोलॉजिस्ट प्रोफेसर मार्क वान रैंस्ट कहते हैं, मैं किसी को उसके सीरोलॉजी के आधार पर ग्रीन और किसी को लाल कार्ड देने के विचार से नफरत करता हूँ, यह लोगों को खुद को वायरस से संक्रमित करने के लिए प्रेरित करेगा. यह अच्छा नहीं है. यह एक बहुत ही खराब आइडिया है।

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox