धारा-313 के तहत दिया जाने वाला अवसर बेहद महत्वपूर्ण- सुप्रीम कोर्ट

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धारा-313 के तहत दिया जाने वाला अवसर बेहद महत्वपूर्ण- सुप्रीम कोर्ट

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक फैसले में कहा है कि ट्रायल कोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा -313 के तहत अभियुक्त द्वारा दिए गए बयान को सावधानीपूर्वक परीक्षण करना चाहिए। कानून के तहत ट्रायल कोर्ट के लिए ऐसा करना जरूरी है।
जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कृष्णा मुरारी की पीठ ने अपने फैसले में कहा हैं कि मुकदमे के अंत में दर्ज किए गए अभियुक्त के बयान को हल्के ढंग से झूठा व अविश्वसनीय बताकर दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि अभियुक्त को धारा-313 के तहत दिया जाना यह अवसर बेहद महत्वपूर्ण होता है। इसके जरिए उसे अपना बचाव करने और न्याय मांगने का अधिकार प्राप्त है। ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्त के बयान को निष्पक्ष तरीके से न लेने व बिना दिमागी कसरत किए उस पर विचार न करने से वह दोषी ठहराया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जहांअभियोजन पक्ष को संदेह से परे अपने मामले को साबित करने की आवश्यकता होती है वहीं इनके ठीक विपरीत अभियुक्तों को केवल उचित संदेह पैदा करने या  वैकल्पिक थ्योरी को साबित करने की आवश्यकता होती है। यह अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी है कि वह कैसे अभियुक्त के बचाव को काटे।
शीर्ष अदालत ने ये बातें ट्रायल कोर्ट और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एक फैसले को दरकिनार करते हुए कही है। सुप्रीम कोर्ट ने महिला परमिंदर कौर को एक नाबालिग को अमीर लड़के (किराएदार) से जबरन यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने व आपराधिक धमकी के आरोप से बरी कर दिया है। यहां बता दें कि महिला की ओर से पेश वकील दुष्यंत परासर ने अभियोजन पक्ष की कहानी को बनावटी बताते हुए कहा था कि महिला के घर कोई भी पुरुष किराएदार नहीं था। महिला अपने बेटे और मां के साथ घर पर रहती थी। साथ ही परासर का यह भी कहना था कि भोला सिंह नामक व्यक्ति ने प्रतिशोध के कारण महिला को झूठा फंसाया था। महिला ने पूर्व में भोला सिंह के खिलाफ बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई थी। पीड़िता का पिता भोला सिंह के यहां काम करता था।

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