
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देहरादून/नई दिल्ली/मनोजीत सिंह/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- केदानाथ धाम के कपाट पहले की तिथि के अनुसार ही अब 29 अप्रैल को ही खुलेंगे। हालांकि सोमवार को फिर ऐलान हुआ था की 29 अप्रैल को नहीं 14 मई को खुलेंगे। मंगलवार को एक बार फिर ऐलान हुआ की नहीं केदारनाथ के कपाट 29 अप्रैल के तय तिथि के अनुसार ही खुलेंगे। जबकि बद्रीनाथ धाम के कपाट 15 मई को खुलेंगे। केदारनाथ के रावल क्वारैंटाइन में हैं, उनके कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट तीन दिन में आएगी। उनका 14 दिन का क्वारैंटाइन 3 मई को खत्म होना है। वहीँ अब बद्रीनाथ धाम के कपाट बदली हुई तारीख पर ही खुलेंगे, लॉकडाउन का पालन किया जाएगा, वहीँ अब केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुलने को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। यह पहला मौका है। तीन बार कपाट खुलने की तिथि बदल चुकी है।
पहले से शिवरात्री पर पारंपरिक तरीके से 29 अप्रैल की तारीख ही केदारनाथ के कपाट खुलने के लिए तय की गई थी. लेकिन समस्या रावल की थी. रावल महाराष्ट्र में फंसे थे और लॉकडाउन के चलते समय पर पहुंचना मुश्किल था. केदारनाथ का मुकुट भी उन्हीं रावल भीमा शंकर लिंग के पास था, इसके बिना पूजा संभव नहीं थी,वहीँ रावल का क्वारैटाइन 3 मई को खत्म हो रहा है. मंगलवार को ऊखीमठ में केदारनाथ के मंदिर समिति के अधिकारी, वेदपाठी, पंचगांव के लोगों की बैठक में तारीख 29 अप्रैल ही रखने का फैसला किया गया. इस बैठक में ऊखीमठ में मौजूद रावल नहीं आए. क्योँकि वह क्वारैंटाइन में हैं. उनसे लिखित में संदेश भेजकर सहमति मांगी गई थी. प्रशासन ने रावल को क्वारैंटाइन में रहने को कहा था. वह किस तरह कपाट खुलने की पूजा में शामिल होंगे, इसका फैसला शासन प्रशासन को करना है. रावल 19 मई को ऊखीमठ पहुंचे हैं. रावल की जांच हो चुकी है. रिपोर्ट 3 दिन में आएगी. वह महाराष्ट्र के नांदेड़ से आए हैं जो कि कोरोना का ग्रीन जोन है. बद्रीनाथ के रावल जो 20 मई को उत्तराखंड पहुंचे हैं वो भी कोरोना के ग्रीन जोन घोषित केरल के कन्नूर से आए हैं. बद्रीनाथ के कपाट खुलने को लेकर टिहरी महाराज ने सोमवार को तारीख बदलने का फैसला लिया था. पहले 30 अप्रैल को कपाट खुलने थे, सोमवार को तारीख बदलकर 15 मई कर दी गई थी. सोमवार को सतपाल महाराज ने तारीख बदलने का जो बयान दिया था वह देर शाम बदल दिया और कहा था कि तारीख मंदिर समिति और रावल जी तय करेंगे. बद्रीनाथ की तारीख इसलिए भी जल्दी नहीं रखी जा सकती क्योंकि, वहां गाडू घड़ा की जो रस्म निभाई जानी है वह 30-40 महिलाएं मिलकर करती हैं और अलग-अलग सोशल डिस्टेंसिंग में यह फिलहाल संभव नहीं है. ऐसे में अब इस पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी प्रतिक्रिया दी है. अपने फेसबुक पेज पर लिखते हुए उन्होंने कहा है ष् स्थान, घटनाओं, पूजा स्थलों व धार्मिक यात्राओं का महात्म्य, उनसे जुड़ी ऐतिहासिक आध्यात्मिक परंपराओं से है, ये परंपराएं असंभव सी चुनौतियों के आने पर ही बदली या संशोधित की जानी चाहिये.क्या कोरोना संक्रमण, ऐसी चुनौती है कि, भगवान बद्रीनाथ जी के कपाट खुलने की तिथि बदली जाय जबकि, भगवान केदारनाथ जी के कपाट यथा तिथि खोले जा रहे हैं, बात समझ में नहीं आ रही है. परंपराओं को शिथिल करना कपाट खुलने से जुड़ी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक महत्व का शरण तो नहीं करेगा और यदि क्वारंटाइन का प्रश्न है, तो फिर आदरणीय रावल जी को हमने पहले आमंत्रित क्यों नहीं किया ? खैर लॉकडाउन तक मैं, सरकार के निर्णयों से बधां हुआ हूँ, मगर इस निर्णय ने मुझे उलझन में डाल दिया है।
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