- AAC के नेतृत्व में उग्र प्रदर्शन
मानसी शर्मा/- नेपाल में हाल ही में उभरे Gen-Z आंदोलन की गूंज अब पड़ोसी मुल्कों तक पहुंचने लगी है। इसकी क्रांति की चिंगारी अब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में जा पहुंची है, जहां जनता शहबाज शरीफ सरकार की नीतियों और सेना के दमन के खिलाफ खुलकर सड़कों पर उतर आई है।
मुजफ्फराबाद, रावलकोट, नीलम घाटी, कोटली और कई अन्य क्षेत्रों में उग्र विरोध प्रदर्शन जारी हैं। भीड़ अब महज़ नाराज नहीं, बल्कि विद्रोह के मूड में नजर आ रही है।
सरकार से टकराव: गोलीबारी में 12 प्रदर्शनकारियों की मौत
बुधवार को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा की गई गोलीबारी में कम से कम 12 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। जानकारी के अनुसार, यह प्रदर्शन तब उग्र हुआ जब सरकार जनता की 38 मांगों को पूरा करने में विफल रही। शुरुआत में शांतिपूर्ण रहे इस आंदोलन ने अब सुरक्षाबलों के अत्याचारों के खिलाफ बड़ा जनआंदोलन का रूप ले लिया है।
धीरकोट में 5, मुजफ्फराबाद में 5 और दादयाल में 2 प्रदर्शनकारियों की मौत गोली लगने से हुई। हिंसा में तीन पुलिसकर्मियों की भी जान चली गई।
AAC के नेतृत्व में आंदोलन: रोजमर्रा की ज़िंदगी ठप
इस जनआंदोलन का नेतृत्व जॉइंट अवामी एक्शन कमेटी (AAC) कर रही है, जिसने POK की आम ज़िंदगी को ठहराव में ला दिया है। AAC और प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगों में शामिल हैं:
पीओके विधानसभा में पाकिस्तानी कश्मीरी शरणार्थियों के लिए आरक्षित 12 सीटों को समाप्त करना
टैक्स में राहत
आटा और बिजली पर सब्सिडी
अधूरे विकास कार्यों को पूरा करना
प्रदर्शनकारी “नारा-ए-कश्मीर”, “इंकलाब आयेगा”, “हम तुम्हारी मौत हैं” जैसे तीखे नारे लगा रहे हैं। उनका कहना है कि कश्मीर उनकी पहचान है और अब वे अपनी तक़दीर खुद तय करेंगे।
शौकत नवाज़ मीर का हमला: ‘सरकार अपने ही लोगों की दुश्मन बन गई है’
AAC के प्रमुख नेता शौकत नवाज़ मीर ने सरकार और सेना पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह सरकार अब खुद अपने लोगों के खिलाफ खड़ी हो गई है। उन्होंने इसे ‘डायन’ की संज्ञा दी — जो अपने ही बच्चों को नुकसान पहुंचा रही है।
मीर ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की नीतियों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “भारत पर कठोर होने का दिखावा किया जा रहा है, जबकि अपने ही नागरिकों की आवाज़ को दबाया जा रहा है। ‘आज़ादी’ सिर्फ एक तमाशा बन गई है।”
वर्तमान स्थिति: हाल के वर्षों की सबसे गंभीर अशांति
POK इस वक्त हाल के वर्षों की सबसे गंभीर अशांति से गुजर रहा है। तीन दिनों से चल रहे लगातार प्रदर्शनों ने सरकार की नींव हिला दी है। सेना ने भीड़ को काबू में करने के लिए न सिर्फ आंसू गैस का सहारा लिया, बल्कि सीधे फायरिंग भी की, जिससे तनाव और बढ़ गया।
यह स्पष्ट हो चुका है कि यह आंदोलन अब सिर्फ आर्थिक या प्रशासनिक मुद्दों तक सीमित नहीं रहा — यह अब पहचान, आत्मनिर्णय और अधिकारों की लड़ाई बन चुका है।


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