मानसून सत्र बना मात्र औपचारिकता, नही हुई कोरोना पर चर्चा

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मानसून सत्र बना मात्र औपचारिकता, नही हुई कोरोना पर चर्चा

नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/चंडीगढ़/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- प्रदेश में दिनो दिन बढ़ता कोरोना वायरस का खौफ अब विधानसभा तक भी जा पंहुचा है जिसे देखते हुए हरियाणा विधानसभा का मानसून सत्र कोरोना के चलते मात्र औपचारिकता पूर्ण ही रह गया लेकिन आश्चर्यचकित करने वाली बात उस समय सामने आई जब जिस कोरोना के साया मानसून सत्र पर छाया है उसी कोरोना को लेकर सत्र में कोई चर्चा नही हुई जिसकारण पूरे प्रदेश में लोग सरकार की कार्यशैली पर सकते में दिखाई दे रहे है और सवाल पर सवाल कर रहे है कि यह कैसी सरकार है जिसे लोगों की सुरक्षा पर बात करने की बजाये शराब बेचने में ज्यादा दिलचस्पी है।
बता देें कि गत 26 अगस्त को आयोजित हरियाणा विधानसभा का सत्र शायद हरियाणा के इतिहास का सबसे छोटा सत्र होगा। इस सत्र को बुलाया भी तब गया जब बाध्यता हो गई नियमानुसार बुलाने की। पहले तीन दिन के सत्र की बात की गई फिर दो दिन का हुआ और सत्र की परिणिति चंद घंटों में ही हो गई। कोरोना से मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष तो संक्रमित हैं। इस कारण सदन के नेता की जिम्मेदारी उप मुख्यमंत्री और अध्यक्ष की जिम्मेदारी उपाध्यक्ष ने निभाई। कहने को तो यह प्रचारित किया गया कि सदन बहुत अच्छी तरह चला लेकिन वास्तविकता में चंद घंटों के अंतराल में ही विपक्ष ने कई बार सदन का बहिष्कार किया। इस सत्र में सदन में भाषा की मर्यादाएं भी टूटीं, छोटे-बड़े का नेता व मंत्री भेद भी भूले। यहां तक कि जिस कोरोना के कारण सत्र की अवधि घटाई गईं, उसी कोरोना पर दो मिनट की भी चर्चा नही हुई। सरकार ने वीकेंड लाॅक डाउन की तो घोषणा की लेकिन इसके साथ ही शराब के ठेके खुले रखने की भी घोषणा कर दी। और जब विपक्ष व व्यापारियों ने इसका विरोध किया तो सरकार ने राजस्व व आबकारी विभाग से एक आदेश जारी करने में तो दिलचस्पी दिखाई लेकिन आम आदमी की परेशानियों पर कोई ध्यान नही दिया गया। पूरे प्रदेश में आज सरकार की कार्यशैली को लेकर लोग तरह-तरह से सवाल कर रहे है। फिर भी सरकार इस ओर कोई ध्यान नही दे रही है। लोगों का कहना है कि विधानसभा सत्र इसलिए बुलाया जाता है कि विपक्ष जनता की समस्याएं सरकार के सामने रखे, उन पर चर्चा हो और उन पर बहस हो तथा उनका समाधान निकालने का प्रयास हो। लेकिन इस सत्र में जनता के हित की तो कोई बात हुई नहीं। इतने कम समय में 12 विधेयक पारित कर दिए। इसे सरकार अपनी उपलब्धि बता रही है लेकिन जनता में चर्चा है कि इतने समय में 12 विधेयक तो पढ़े भी नहीं जा सकते तो उन पर चर्चा होने का कोई प्रश्न ही नहीं। अर्थात सरकार ने यह पहले ही तय कर रखा था कि ये विधेयक पारित करने हैं।
वर्तमान में प्रदेश की जनता सबसे अधिक कोरोना से पीडित है। प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि कोरोना कितना घातक है, कितने लोगों के टैस्ट हुए हैं, टैस्ट कितने प्रकार के हो रहे हैं और सरकार की आगामी योजना क्या है? परंतु सदन में सत्ता पक्ष ने और न ही विपक्ष में इसकी कोई चर्चा की। इससे जनता को यह लग रहा है कि यह सदन केवल राजनीति करने के लिए रह गया है या जनता की भी सोचनी है। वहीं इस सत्र वर्तमान में इस सदन के लिए बड़ी जिज्ञासा थी कि पिछले दिनों से राज्य में सरकार के विरोध और घोटालों की चर्चा रही है, जिनमें प्रमुख रजिस्ट्री घोटाला, शराब घोटाला, धान घोटाला प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त भी भ्रष्टाचार की अनेक चर्चाएं हैं और विपक्षी दल तथा जनता यह मानकर चल रही थी कि सदन की कार्यवाही में उन सभी का उत्तर मिलेगा और कुछ सच्चाई जनता के सामने आएगी। ज्ञात होगा कि जीरो टोलरेंस का दावा करने वाली सरकार उपरोक्त घोटालों के गुनाहगारों को सजा देने के लिए कितनी संकल्पशील है।
इसके अतिरिक्त लंबे समय से कोविड वॉरियर आशा वर्कर धरने पर बैठी हैं, हरियाणा रोडवेज वाले निजीकरण को लेकर संघर्ष की राह पर हैं, सफाईकर्मी भी अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं, पीटीआइ टीचरों का मसला सरकार के गले की फांस बनता जा रहा है, सरकार इन सभी बातों पर कुछ बोलती तो इन कर्मचारियों को भी ज्ञात होता कि सरकार उनके बारे में आखिर सोच क्या रही है। इन सभी बातों से प्रश्न यही उठता है कि प्रजातंत्र में प्रजा कहां खड़ी है? आज सबसे बड़ी समस्या कोरोना है और कोरोना के बारे में ही जनता अंधेरे में है।

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