नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/राज्यसभा/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- आज प्रधानमंत्री मोदी इतना भावुक हुए कि फफक-फफक कर रो पड़े। बाएं हाथ के अंगूठे से चश्मे के कोर तक आंसू पोंछते रहे। कई दफा पानी पिया। बोल तक नहीं पा रहे थे, रूंधते और थरथराते लफ्जों में कहानी सुनाई। फिर सैल्यूट किया। जगह थी राज्यसभा और मौका था कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद के कार्यकाल पूरा होने का।
प्रधानमंत्री मोदी सोमवार को जब राज्यसभा में बोल रहे थे, तब उनका अंदाज अलग था। उन्होंने कुछ नए शब्दों का जिक्र किया। जैसे- आंदोलनजीवी, फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी और जी-23। यह भी बताया कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त आज होते तो कविता किस तरह लिखते। किसानों के मुद्दे पर विपक्ष को घेरते हुए मोदी ने चार पूर्व प्रधानमंत्रियों का जिक्र किया।मोदी ने गुलाम नबी से अपनी दोस्ती का जिक्र किया और कश्मीर में हुई एक आतंकी घटना की कहानी सुनाई।
‘‘…जब आप मुख्यमंत्री थे, मैं भी एक राज्य का मुख्यमंत्री था। हमारी बहुत गहरी निकटता रही है। शायद ही ऐसी कोई घटना हो, जब हम दोनों के बीच में कोई संपर्क सेतु न रहा हो। एक बार जम्मू-कश्मीर गए टूरिस्टों में गुजरात के भी यात्री थे। वहां जाने वाले गुजराती यात्रियों की काफी संख्या रहती है। आतंकवादियों ने उन पर हमला कर दिया। शायद 8 लोग मारे गए। सबसे पहले मेरे पास गुलाम नबी जी का फोन आया। और वो फोन सिर्फ सूचना देने के लिए नहीं था (मोदी के आंसू छलक आए)। फोन पर उनके आंसू रुक नहीं रहे थे। उस समय प्रणब मुखर्जी साहब डिफेंस मिनिस्टर थे। मैंने उन्हें फोन किया कि अगर फोर्स का हवाई जहाज मिल जाए तो डेड बॉडीज आ सकती हैं। देर रात हो गई थी, प्रणब मुखर्जी साहब ने कहा कि आप चिंता मत कीजिए, मैं करता हूं व्यवस्था। लेकिन रात में फिर गुलाम नबी जी का फोन आया। वो एयरपोर्ट पर थे। (मोदी का गला रूंध गया और रुककर पानी पिया) उन्होंने फोन किया और जैसे कोई अपने परिवार के सदस्य की चिंता करे, वैसी चिंता… (उंगली से गुलाम नबी की ओर इशारा किया)।
पद, सत्ता जीवन में आते रहते हैं, लेकिन उसे कैसे पचाना… (फिर नहीं बोल पाए और सैल्यूट किया। गुलाम नबी ने हाथ जोड़ लिए)। मेरे लिए वो बड़ा भावुक पल था। दूसरे दिन सुबह फोन आया कि मोदी जी शव पहुंच गए। इसलिए एक मित्र के रूप में मैं गुलाम नबी जी का घटनाओं और अनुभवों के आधार पर आदर करता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि उनकी सौम्यता, उनकी नम्रता, इस देश के लिए कुछ कर गुजरने की कामना, वो कभी उन्हें चैन से बैठने नहीं देगी। मुझे विश्वास है जो भी दायित्व वो संभालेंगे, वो जरूर वैल्यू एडिशन करेंगे, कंट्रिब्यूशन करेंगे और देश उनसे लाभान्वित होगा, ऐसा मेरा पक्का विश्वास है।
मैं फिर एक बार उनकी सेवाओं के लिए आदरपूर्वक धन्यवाद करता हूं और व्यक्तिगत रूप से भी मेरा उनसे आग्रह रहेगा कि मन से मत मानो कि आप इस सदन में नहीं हो। आपके लिए मेरे द्वार हमेशा खुले रहेंगे। सारे माननीय सदस्यों के लिए खुले हैं। आपके विचार-आपके सुझाव, क्योंकि देश के लिए ये सब बहुत जरूरी होता है, ये अनुभव बहुत काम आता है और ये मुझे मिलता रहेगा। ये अपेक्षा मैं रखता ही रहूंगा। आपको मैं निवृत्त होने नहीं दूंगा। फिर एक बार बहुत शुभकामनाएं, धन्यवाद।
गुजराती टूरिस्टों पर हमले की घटना याद कर गुलाम नबी आजाद भी भावुक हुए
इस स्पीच के बाद बारी आई गुलाम नबी आजाद की। उन्होंने भी जब गुजराती टूरिस्टों पर हमले का जिक्र किया तो आंसू छलक आए। गुलाम नबी ने कहा, ‘नवंबर 2005 में जब सीएम बना। मई में जब दरबार कश्मीर में खुला तो मेरा स्वागत गुजरात के मेरे भाई-बहनों की कुर्बानी से हुआ। वहां मिलिटेंट्स का स्वागत करने का यही तरीका था। वे बताना चाहते थे कि हम हैं, गलतफहमी में न रहना। निशात बाग में एक बस पर लिखा था कि वो गुजरात से है। उसमें 40-50 गुजराती टूरिस्ट सवार थे। उसमें ग्रेनेड से हमला हुआ। एक दर्जन से ज्यादा लोग वहीं हताहत हुए। मैं फौरन वहां पहुंचा। मोदीजी ने डिफेंस मिनिस्टर से बात की, मैंने प्रधानमंत्रीजी से बात की।’
‘जब मैं एयरपोर्ट पर पहुंचा तो किसी की मां, किसी का पिता मर गया था। वे बच्चे रोते-रोते मेरी टांगों से लिपट गए, तो जोर से मेरी चीख निकल गई। या खुदा, ये तुमने क्या किया। मैं कैसे जवाब दूं उन बच्चों को, उन बहनों को, जो यहां सैर-तफरीह के लिए आए थे और आज मैं उनके माता-पिता की लाशें लेकर उनके हवाले कर रहा हूं। (आजाद भावुक हो गए) आज हम अल्लाह से, भगवान से यही दुआ करते हैं कि इस देश से मिलिटेंसी खत्म हो जाए, आतंकवाद खत्म हो जाए। सिक्युरिटी फोर्सेस, पैरामिलिट्री, पुलिस के कई जवान मारे गए। क्रॉस फायरिंग में कई सिविलियंस मारे गए। हजारों माएं और बेटियां बेवा हैं। कश्मीर के हालात ठीक हो जाएं।’
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