
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- राजधानी में कोरोना से हालात बिगड़ते गए और रोकथाम के तत्काल कदम उठाने की बजाय दिल्ली सरकार कछुआ चाल में चलती रही। हाईकोर्ट ने सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए पूछा कि जब संक्रमितों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई तो तत्काल इसकी रोकथाम के लिए कदम क्यों नहीं उठाए। अदालत को क्यों 11 नवंबर को इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए सरकार को नींद से जगाना पड़ा। एक से 11 नवंबर तक सरकार क्या कर रही थी, क्यों नहीं कोई फैसला लिया। क्या सरकार को इस बात का अंदाजा नहीं कि इस दौरान कितनी मौतें हुईं।
पीठ ने नोट किया कि दिल्ली सरकार की ओर से कोविड मामलों पर प्रेस और अदालत में दिए गए बयान अलग-अलग प्रतीत होते हैं। सरकार के मंत्री की ओर से प्रेस में बयान दिया गया कि कोविड संक्रमण की तीसरी लहर चरम पर पहुंच गई है, लेकिन संक्रमितों की संख्या घट रही है, लेकिन दैनिक आंकड़े और अदालत में पेश की गई रिपोर्ट में अंतर है। पीठ ने कहा कि श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए चिताएं रात भर जलती रहती हैं। दिल्ली सरकार से यह भी सवाल पूछा कि कोविड-19 के मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए क्या पर्याप्त इंतजाम हैं?
आरटीपीसीआर टेस्ट पर ध्यान केंद्रित करें
पीठ ने कहा कि रैपिड एंटीजन परीक्षण (आरएटी) पर निर्भरता कम कर आरटीपीआरसी टेस्ट की तरफ ध्यान केंद्रित करना चाहिए। क्योंकि बगैर लक्षण वाले मामले अधिक आ रहे हैं, जिससे कोविड संक्रमण की रफ्तार और तेज हुई है। दिल्ली सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि रैपिड एंटीजन टेस्ट अधिक प्रभावी नहीं है।
न्यूयार्क को भी दिल्ली ने पछाड़ा, निगरानी में कमी
पीठ ने मानकों के पालन के लिए मार्शल की ओर से की जा रही निगरानी को नाकाफी बताते हुए कहा कि मौजूदा हालात को गंभीरता से देखते हुए जिम्मेवारी निभाएं। दिल्ली ने न्यूयॉर्क और साओ पाउलो जैसे शहरों को भी कोरोना संक्रमण में पछाड़ दिया है।
ढील दिए जाने पर भी सरकार की हुई थी खिंचाई
11 नवंबर को अदालत ने सार्वजनिक सभाएं और विरोध प्रदर्शन के लिए तय मानदंडों में ढील दिए जाने पर दिल्ली सरकार की खिंचाई की थी। क्योंकि बगैर लक्षण वाले संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे थे। अदालत ने यह पूछा था कि क्या इस खतरनाक स्थिति से लड़ने के लिए कोई रणनीति है।
क्या-क्या कहा
सामाजिक सुरक्षा मानदंडों को लागू करने के लिए दिल्ली सरकार के कुछ जिलों में प्रशासन की ओर से की जा रही निगरानी संतोषजनक नहीं थी। खासकर उन इलाकों में जहां कोविड के मामले बढ़ रहे थे। सार्वजनिक जगहों पर थूकने, मास्क सहित मानकों का पालन न करने वालों पर सख्ती नहीं की गई। पहली बार उल्लंघन करने पर 500 रुपये जबकि इसके बाद प्रत्येक बार 1000 रुपये का जुर्माना लागू करने में भी ढिलाई और असमानता बरती गई।
सरकार ने बचाव में यह दी दलील
अदालत ने पिछली सुनवाई में कोविड-19 मामलों में खतरनाक रूप से हो रही बढ़ोतरी को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के संबंध में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। अपनी रिपोर्ट में दिल्ली सरकार ने कहा है कि वह सभी गतिविधियों की अनुमति नहीं दे रही है। स्कूलों और उच्च शैक्षणिक संस्थानो व स्विमिंग पूल को अब तक नहीं खोला गया, जबकि केंद्र सरकार इनकी अनुमति दे चुकी है। वायु प्रदूषण में वृद्धि और लोगों की भीड़ को रोकने के लिए दिवाली पर पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर छठ पूजा मनाने पर भी रोक लगा दी। केंद्र से राजधानी के कुछ बाजारों को सप्ताह में कुछ दिनों या घंटों के लिए बंद रखने की मंजूरी मांगी गई है। कोविड प्रसार को रोकने के लिए सरकार की ओर से हरसंभव प्रयास किए जा रहे थे। पीठ ने इन्हें नाकाफी बताते हुए अगली सुनवाई पर स्टेटस रिपोर्ट सौंपने को कहा।
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