
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/देश विदेश/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- आगामी जी-7 की बैठक में अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो डोनाल्ड ट्रंप और नरेन्द्र मोदी की केमिस्ट्री एक नया इतिहास बनाते हुए विश्व को नया रास्ता दे सकती है। दर असल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ताकतवर जी-7 में भारत को सदस्य बनाने की पुरजोर पैरवी की ही जिसकारण यह बात अब विश्व में चर्चा का विषय बनती जा रही है और अटकले लगाई जा रही है कि क्या अमेरिका के चाहने से भारत को ताकतवर जी-7 क्लब में प्रवेश मिल जायेगा या फिर अभी कुछ और इंतजार करना होगा। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने रूस, दक्षिण कोरिया व ऑस्ट्रेलिया को भी इसमें शामिल करने की इच्छा जाहिर की है।
अगर अमेरिकी राष्ट्रपति की यह योजना सिरे चढ़ जाती है तो इससे भारत की विश्व साख व ताकत बढ़ जायेगी लेकिन अब सवाल ये है कि विश्व दूसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था वाले देश चीन को इसमें शामिल क्यों नही किया जा रहा। क्या चीन कोरोना की महामारी के बाद अब विश्व में विश्वास लायक नही रहा या अमेरिका चीन के खिलाफ जी-7 में भी एक मजबूत विरोध खड़ा करना चाहता है। फिल हाल विश्व के सबसे ताकतवर कहलाने वाले जी-7 समूह में अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन और इटली इसके सदस्य है।
विश्व में जी-7 की अहमियत
-जी-7 दुनिया के सात विकसित देशों का एलीट क्लब है
-ये समूह विश्व की अर्थव्यवस्था की दिशा तय करता है
-इन देशों का दुनिया की 40 प्रतिशत जीडीपी पर कब्जा है
जाहिर है अगर ट्रंप की कोशिश कामयाब हुई तो फिर जी-7 का नाम जी-11 हो जाएगा और भारत के साथ ही रूस, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया भी इसके सदस्य बन जाएंगे। दिलचस्प बात ये है कि जीडीपी के हिसाब से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद चीन जी-7 का हिस्सा नहीं है, क्योंकि चीन में सबसे ज्यादा आबादी है और उसकी प्रति व्यक्ति आमदनी जी-7 देशों के मुकाबले काफी कम है। ऐसे में अगर भारत को इस क्लब की सदस्यता मिलती है तो न सिर्फ भारत की धाक बढ़ेगी, बल्कि चीन की चैधराहट भी कम हो जाएगी। हालांकि डोनल्ड ट्रंप चुनाव का सामना करने वाले हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या ट्रंप सिर्फ भारतीय वोटरों को साधने की चाल रहे हैं या फिर अपने प्रतिद्वंदी चीन को घरेने के लिए भारत का सहारा ले रहे हैं।
यहां यह भी बता दें कि 70 के दशक में कई देश गंभीर आर्थिक संकट में घिर गए थे। पहला तेल संकट था तो दूसरा फिक्स्ड करेंसी एक्सचेंज रेट्स के सिस्टम का ब्रेक डाउन। 1975 में जी 7 की पहली बैठक हुई थी, जिसमें इन इसके समाधान पर चर्चा हुई थी। लेकिन अब चार दशक से ज्यादा समय बीत चुका है और दुनिया की आर्थिक चुनौतियां भी बदल चुकी है। ऐसे में भारत और ट्रंप की केमिस्ट्री दुनिया को नया रास्ता दे सकती है। मोदी ट्रंप का याराना चीन और पाकिस्तान की नापाक चालों को भी नाकाम कर सकती है।
ह्यूस्टन में पिछले साल सितंबर में हुए ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम और इस साल फरवरी में अहमदाबाद में हुए ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम के बाद ट्रंप ने मोदी की तारीफ करने का कोई मौका नहीं गंवाया है, लेकिन दोनों नेताओं की दोस्ती की बुनियाद बहुत पुरानी है।
कब-कब मिले मोदी-ट्रंप?
27 जून 2017 वाइट हाउस में दोनों नेताओं के बीच पहली मुलाकात हुई थी
जुलाई 2017 में जर्मनी में जी 20 देशों की बैठक में दोनों नेता मिले थे
12 नवंबर 2017 को मनीला में आसियान सम्मेलन में भी दोनों नेता मिले थे
नवंबर 2018 में अर्जेंटीना में जी 20 बैठक में दोनों की मुलाकात हुई
जून 2019 में जापान के ओसाका में जी 20 में फिर से मुलाकात हुई
26 अगस्त 2019 फ्रांस के बिआरिट्ज में जी-7 सम्मेलन में मीटिंग हुई
22 सितंबर 2019 को ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ में दोनों नेताओं की मुलाकात हुई
24-25 फरवरी 2020 को अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ के दौरान दोनों नेता मिले
मोदी और ट्रंप का याराना अब विश्व में चर्चा का विषय बन चुका है जिसे लेकर यही अंदाजा लगाया जा रहा है कि दोनो केमिस्ट्री विश्व में जरूर कुछ नया करने वाली है और ट्रंप के इस सुझाव से अब यह सबके सामने आ भी गया है।
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