नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- एक तरफ पूरा देश कोरोना से जूझ रहा है वहीं दूसरी तरफ दिल्ली अब कोरोना के मामले में लड़ाई जीतती नजर आ रही है। दिल्ली में कोरोना मरीजों की घटती संख्या से यह सिद्ध हो गया है कि सरकार ने कोरोना को लेकर जो भी कदम उठाये वो कारगर रहे और जिस होम आइसोलेशन को लेकर सबसे बड़ा विवाद था वही योजना इस सफलता में सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध हुई। जिसे देखते हुए अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या दिल्ली माॅडल देश को राह दिखा सकता है या फिर सरकार के पास कोई और योजना है जिससे कोरोना से पार पाया जा सके।
जिस समय देश कोरोना के मोर्चे पर कठिन संघर्ष कर रहा है और लगभग 40 हजार नए केस रोज सामने आ रहे हैं, दिल्ली ने कोरोना की लड़ाई में पूरे देश को एक राह दिखाई है। दिल्ली में कोरोना पीड़ितों की कुल संख्या सवा लाख को भी पार कर चुकी है, लेकिन अब सक्रिय मामलों की संख्या केवल 15288 ही रह गई है। यानी 1.06 लाख से ज्यादा लोग ठीक होकर अपने घरों को जा चुके हैं। इसमें भी बेहतर संदेश यह रहा है कि ठीक होने वालों में 80 फीसदी से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिन्होंने किसी अस्पताल में जाकर इलाज कराने की बजाय अपने घर पर होम आइसोलेशन में इलाज कराया है। बेड्स की कमी से जूझ रहे राज्यों को यह आइडिया कुछ राहत दे सकता है। इस समय भी कुल सक्रिय मामलों 15288 में 8126 लोग होम आइसोलेशन में ही स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं।
इस ‘दिल्ली मॉडल’ पर कुछ विशेषज्ञों ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोरोना हम सबके लिए नया था। हम समझ नहीं पा रहे थे कि इससे लड़ाई का सबसे बेहतर तरीका क्या होना चाहिए। लेकिन जल्दी ही अनुभव ने हमें यह सिखा दिया कि कोरोना के 70 से 80 फीसदी मामले बेहद हल्के लक्षण वाले या बिलकुल लक्षण नहीं दिखने वाले थे। दिल्ली माॅडल के अनुसार ऐसे लोगों को अस्पताल में भर्ती रखने का कोई औचित्य नहीं था, इससे गंभीर मरीजों को बेड उपलब्ध कराने में भी समस्या आ सकती थी। लेकिन होम आइसोलेशन का आइडिया बेहद कारगर साबित हुआ। इसे देश के अन्य हिस्सों में भी अपनाया जाना चाहिए।
वहीं कोरोना मरीजों की माने तो लोगों का कहना है कि होम आइसोलेशन में रहकर ईलाज कराना ज्यादा सुकून दायक है और अस्पताल से ज्यादा बेहतर, सुरक्षित व कारगर है। लोगों का यह भी कहना है कि घर पर संक्रमण का कोई खतरा नहीं है, जबकि अस्पताल में उन्हें सबसे ज्यादा डर इसी बात का है कि कहीं उनकी स्थिति इससे ज्यादा गंभीर न हो जाए। लोग घरों में भी प्राइवेट अस्पताल व चिकित्सकों की सलाह लेकर अपना इलाज करा सकते है जो एक अस्पताल के आइसोलशन सेंटर में संभव नही है। इसके साथ-साथ होम आइसोलेशन में मरीजों को सबसे ज्यादा सकून इस बात का है कि उन्हें कुछ होने पर उनके परिवार के लोग उनके साथ हैं, जबकि अस्पताल में बिलकुल अलग-थलग पड़ जाने के बाद उनकी देखभाल कैसे होगी, इसे लेकर लोग आश्वस्त नहीं हैं।
जून महीने में दिल्ली में कोरोना की स्थिति बेकाबू होती हुई दिख रही थी। रोज नये मामलों की संख्या 5-6 हजार तक पहुंच गई थी, तो रोज मौत का आंकड़ा 100 को भी पार कर गया था। यह डरावना था। लेकिन इसके बाद ही दिल्ली ने तेज टेस्टिंग का आइडिया अपनाया। पहले के लगभग चार हजार के मुकाबले टेस्टिंग क्षमता बढ़ाकर 20 हजार और इससे भी अधिक कर दी गई। इसका लाभ यह हुआ कि एक बार तो कोरोना के मामले तेजी से सामने आये, लेकिन जल्दी ही इस पर लगाम लग गई। अब नये मामलों की संख्या 1000-1400 के बीच रह गई है।
दिल्ली देश के दूसरे राज्यों से टेस्टिंग के मामले में सबसे आगे है। यहां प्रति दस लाख की आबादी के आधार पर 44,805 टेस्ट हो रहे हैं। यहां अब तक आठ लाख 51 हजार 311 टेस्ट हो चुके हैं। वहीं दिल्ली ने किसी भी इलाके में तीन केस सामने आने के बाद उसे कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया। इससे इस एरिया को दूसरी जगहों से अलग कर संक्रमित लोगों का सुरक्षित इलाज करना संभव हो गया। इससे दूसरे लोगों तक संक्रमण पहुंचने से रोकने में भी मदद मिली। इस समय दिल्ली में 689 कंटेनमेंट जोन हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पूरे इलाके को एक बार में लॉक करने के खिलाफ थे। वे छोटे-छोटे कंटेनमेंट जोन बनाकर लोगों के इलाज के साथ-साथ बाकी गतिविधियां भी चलाते रहने के पक्ष में थे। लेकिन उपराज्यपाल अनिल बैजल और केंद्र उनके इस रुख से सहमत नहीं था। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को इसे लेकर कई बार एलजी के सामने अपनी बात रखनी पड़ी। अंततः केंद्र उनके इस रुख से सहमत हुआ और छोटे कंटेनमेंट जोन का आइडिया काम कर गया। माना जा रहा है कि दिल्ली के मालों में कमी लाने के पीछे यह तरीका बेहद कारगर साबित हुआ है।
दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल में सबसे पहले प्लाज्मा थेरेपी को आजमाने की अनुमति मिली थी। शुरुआत में इसकी सफलता को लेकर कुछ आशंकाएं जाहिर की जा रहीं थी। लेकिन प्लाज्मा थेरेपी के जरिए कोरोना संक्रमित कई लोगों का बेहतर इलाज हुआ और लोग स्वस्थ होने लगे।
दिल्ली सरकार ने आईएलबीएस अस्पताल में प्लाज्मा बैंक बनाया। शुरूआती झिझक के बाद लोग सामने आये और प्लाज्मा देकर ज्यादा गंभीर लोगों की जान बचाई गई। एक लाख 25 हजार से ज्यादा लोगों के संक्रमित होने के बाद भी यहां मौत का आंकड़ा 3690 तक ही है, जो मात्र 2.94 फीसदी ही है।
दिल्ली में जिस योजना के साथ कोरोना से लड़ाई लड़ी गई अगर वही योजना पूरे देश में लागू की जाये तो संभवतः देश जल्दी ही कोरोना के मामले में सफलता प्राप्त कर सकता है। केंद्र व राज्य सरकार के लिए दिल्ली माॅडल एक उदाहरण बन सकता है और लोगो की भलाई के लिए कें्रद्र को राजनीति छोड़ इसे अपनाने की सलाह देनी चाहिए। क्योंकि दिल्ली के ठीक होने में राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार का भी पूरा सहयोग है।
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