
नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/वाशिंगटन/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने तिब्बत पर बड़ा बयान देते हुए यह साफ कर दिया है कि उनका प्रशासन चीन के साथ चल रहे तनाव व दूसरे मुद्दों को लेकर कोई नरमी नही बरतेगा। जिसके तहत बाईडेन प्रशासन ने चीन में तिब्बत के धर्मगुरू दलाईलामा का वारिस चुनने की जो प्रक्रिया चल रही है उस पर अमेरिकी प्रशासन ने चीन को नसीहत देते हुए कहा कि चीन को इस प्रक्रिया से दूर रहना चाहिए क्योंकि यह हक सिर्फ तिब्बती बोद्ध समुदाय का है। अमेरिका के इस रुख से यह साफ हो गया है कि वह तिब्बत को लेकर काफी सजग है और चीन की जिनपिंग सरकार पर अपना दबाव बनाये रखेगा।
बता दें कि 14वें दलाई लामा 17 मई, 1959 को तिब्बत पर चीन के आक्रमण के बाद ल्हासा से भागे थे और उसके करीब एक साल बाद से अरुणाचल प्रदेश में शरण लेकर रह रहे हैं। जिसका चीन लगातार विरोध करता रहा है और भारत पर दबाव बनाता रहा है। इलाई लामा को शरण देने को लेकर 1962 का भारत-चीन युद्ध भी इसका एक बड़ा कारण माना जाता रहा है।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने रोजाना होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, हमारा मानना है कि चीन की सरकार की तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा का वारिस चुनने की प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। 25 साल से ज्यादा समय पहले पंचेन लामा के उत्तराधिकार की प्रक्रिया में बीजिंग का हस्तक्षेप, जिसमें पंचेन लामा को बचपन में गायब करना और फिर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना सरकार द्वारा चुने गए उत्तराधिकारी को उनकी जगह देने की कोशिश करना धार्मिक स्वतंत्रता के घोर उल्लंघन को दर्शाता है। ऐसे में अब चीन को इस प्रक्रिया से दूर रहना चाहिए।
बता दें कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दिसंबर में एक कानून पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें तिब्बत में वाणिज्य दूतावास स्थापित करने और एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाने की बात की गई है, ताकि यह सुनिश्चत किया जा सके कि अगले दलाई लामा को सिर्फ तिब्बती बौद्ध समुदाय चुने और इसमें चीन का कोई हस्तक्षेप नहीं हो। हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका के बयान के बावजूद चीन 14वें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चुनाव में पूर्ण रूप से हस्तक्षेप करेगा।
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