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नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- राज्यसभा उपचुनाव में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से सभी 11 प्रत्याशियों के निर्विरोध निर्वाचित होने से उच्च सदन में समीकरण बदल गए हैं। हालांकि राज्यसभा के इतिहास में भाजपा अपने शिखर पहुंच गई है तो कांग्रेस सबसे निचले स्तर पर। लेकिन फिर भी राज्यसभा में पूर्ण बहुमत से भाजपा अभी भी 10 सीट दूर है। यूपी से आठ और उत्तराखंड की एक सीट मिलाकर भाजपा की सदन में कुल सीटें 92 हो गई है जबकि कांग्रेस की केवल 38 सीटें ही बची हैं।
राज्यसभा में कुल सीटें 245 हैं। इनमें से 12 सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। सदन में अब एनडीए की कुल सीटें 112 हो गई है। सदन की तीन सीटें खाली हैं। एक-एक सीट केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार से भरी जानी है। इस तरह सदन में एनडीए बहुमत से मात्र 10 सीट दूर रह गया है, लेकिन नामांकित और निर्दलीय सांसदों के समर्थन से वह बहुमत के आंकड़े के बहुत करीब पहुंच जाएगा। 2014 में मोदी सरकार के गठन के समय राज्यसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के महज 65 सांसद थे जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के 102 सांसद।
पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल में उच्च सदन में बहुमत न होने के बावजूद कश्मीर से अनुच्छेद-370 के खात्मे समेत अन्य विधेयकों को पारित कराने में सत्तारूढ़ गठबंधन को कोई मुश्किल नहीं हुई। उसे अन्नाद्रमुक के नौ, वाईएसआर कांग्रेस के छह, बीजू जनता दल के नौ और तेलंगाना राष्ट्र समिति के सात सांसदों का समर्थन मुद्दों के आधार पर मिलता रहता है। हालांकि इस दौरान शिवसेना और अकाली दल के गठबंधन से निकलने से एनडीए के छह सांसद कम हो गए।
इस तरह संसद के शीत सत्र के दौरान मोदी सरकार को राज्यसभा में करीब 150 सांसदों का समर्थन होगा। ऐसे में वह दो तिहाई बहुमत 164 सांसद के बहुत करीब होगी। तब वह संविधान संशोधन विधेयकों को भी लाने पर विचार कर सकती है।
उत्तर प्रदेश से सेवानिवृत्त होने वाले 10 सांसदों में से केवल तीन भाजपा के थे यानी उसे पांच सीटों का फायदा हुआ है। चार सपा के सांसद सेवानिवृत्त हुए थे जिनमें से केवल एक ही वापस लौट पाया। यानी उसे तीन सांसदों का नुकसान हुआ है। अब सपा के उच्च सदन में केवल पांच सदस्य रह गए हैं। वहीं बसपा के दो सांसद सेवानिवृत्त हुए, लेकिन एक ही चुना गया। सदन में उसके महज तीन सांसद रह गए हैं।
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