स्तंभ/शिव कुमार यादव/- जैसे-जैसे राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का समय नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे देश में इसमें शामिल होने या न होने का मुद्दा गरमाता जा रहा है। पहले विपक्ष पीएम को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण मिलने को लेकर काफी हंगामा कर रहा था लेकिन जब से विपक्ष को निमंत्रण मिला है तब से दूसरी तरह की राजनीति शुरू हो गई है। जिसे देखकर यही लगता है कि विपक्ष के मुंह में राम है और बगल में छुरी भी है क्योंकि अब राम मंदिर सिर्फ राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह नही रह गया है इसके साथ अब हिन्दू और मुस्लिम शब्द भी जुड़ गया है जिसकारण अब कांग्रेस समेत कई पार्टियों के सामने श्रद्धा व राजनीति को लेकर मुश्किल खड़ी हो गई है कि वह राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाये या ना जायें। हालांकि वामपंथी पार्टियों ने पहले ही अयोध्या न जाने का एलान कर दिया है।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर विपक्ष शुरू से राजनीति कर रहा था। निमंत्रण नही मिला था तब हल्ला मचा रहा था और अब जब निमंत्रण मिल गया तो भाजपा पर राजनीति करने का आरोप लगा रहा है। यह तो स्पष्ट था कि राम मंदिर पर राजनीति तो होनी ही थी। बीजेपी ने फिलहाल विपक्ष को आमंत्रण देकर गुगली फेंक दिया है। इंडिया गठबंधन की कई पार्टियों के लिए धर्म संकट खड़ा हो गया है। स्थिति यह है कि सारी राजनीति हिन्दू और मुस्लिम पर आकर रूक गई है और यह भी तय हो गया है कि इस बार हिन्दू या मुस्लिम की मोहर लगना तय है। फिलहाल बीजेपी भी यही चाहती थी। इंडिया गठबंधन की 19 दिसंबर वाली बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी कि राम मंदिर का श्रेय लेने से किस तरह बीजेपी को रोका जाए, परन्तु राममंदिर को लेकर बीजेपी की आक्रामक रणनीति में विपक्ष बुरी तरह फंस गया है। कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़कर अन्य दल अभी भी समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें क्या कदम उठाना है। इस समय सभी दल राम मंदिर जाने में श्रद्धा नही राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन कर रहे है ताकि सांप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे।
विपक्ष पर श्रद्धा से बड़ा धर्मसंकट
राम मंदिर मुद्दे पर अब विपक्ष पूरी तरह से भाजपा के बुने जाल में फंस गया है। हालांकि यह जाल विपक्ष ने ही खुद अपने लिए बुना है। वैसे तो विपक्ष को हिन्दू वोट चाहिए लेकिन इस समय विपक्ष का मानना है कि हिन्दू वोट बैंक भाजपा की तरफ ज्यादा झुका हुआ है और मुस्लिम वोट बैंक ही अब उनकी राजनीतिक नैया को पार करने का एकमात्र सहारा है। जैसा कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में तेलंगाना में मुस्लिमों ने बीआरएस को छोड़कर कांग्रेस को खुलकर वोट दिये थे। अब कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा धर्मसंकट यही है कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने से कही मुस्लिम वोट बैंक उसके हाथ से ना खिसक जाये। वहीं यूपी में अखिलेश यादव के सामने भी यही धर्म संकट खड़ा है। आज यूपी में सपा सुप्रीमों अपने आपकों मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी बताते हैं और खुलकर उनकी पैरवी भी कर रहे है। लेकिन उन्हे यह नही पता कि जिस राम मंदिर को लेकर वह राजनीति कर रहे है उसी राम मंदिर के निर्माण में मुस्लिमों ने भी खुलकर दान दिया है। हालांकि अखिलेश यादव के दो सिपहसालार सांसद शफीकुर्रहान बर्क और स्वामी प्रसाद मौर्य जमकर हिन्दूओं के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। यह बात ओर है कि सपा ने इनके बयानों अपने आपको अलग कर लिया है लेकिन फिर भी नेता तो ये सपा के ही हैं।
राम मंदिर मुद्दे को भाजपा किस तरह भुनाएगी और लोकसभा चुनाव में वह इसका कैसे फायदा उठाएगी, इस बात की सबसे पहली चिंता सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने की थी। इंडिया गुट की बैठक में उन्होंने सभी साझेदार दलों से आग्रह किया था कि वह राम मंदिर मुद्दे पर एक काउंटर स्ट्रेटेजी तैयार करे। पूरा विपक्ष इस बारे में कोई साझा रणनीति तय कर पाता, उससे पहले वामदलों की ओर से बृंदा करात ने क्लियर कर दिया है कि हमारी पार्टी अयोध्या में राम मंदिर के ’प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह में शामिल नहीं होगी। हम धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हैं लेकिन वे एक धार्मिक कार्यक्रम को राजनीति से जोड़ रहे हैं। यह एक धार्मिक कार्यक्रम का राजनीतिकरण है। यह सही नहीं हैं। वहीं आयोध्या से आए निमंत्रण पर सीताराम येचुरी ने कहा कि हमने किसी को कुछ नहीं कहा। वो आए थे निमंत्रण देने, हमने चाय कॉफी पूछी उनको, हमे निमंत्रण मिला। लेकिन उद्घाटन समारोह में पीएम, योगी और पदाधिकारी रहेंगे। राजनीतिकरण होगा इसका, ये गलत है, राजनीतिकरण के खिलाफ हम हैं, इसलिए हम नहीं जाएंगे वहां। धर्म का मतलब उनको समझना पड़ेगा बाकि का नहीं पता, लेकिन हम नही जाएंगे।
अखिलेश यादव और सुप्रिया सुले की हां की ना जारी
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और एनसीपी की नेता सुप्रिया सुले ने इस हफ्ते जिस तरह की बातें की हैं उससे तो यही लगता है कि दोनों कन्फ्यूज हैं कि उन्हें क्या करना है? अखिलेश यादव ने इसी हफ्ते यह कहा था कि अगर राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट उन्हें आमंत्रित करता है तो वो प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जरूर शामिल होंगे। पर इसी बीच उनकी पार्टी के दूसरे सांसद.और नेताओं के जो बयान आए हैं उससे तो यही लगाता है अखिलेश राम मंदिर समारोह में जाने के लिए उत्साहित नहीं होंगे।
उनकी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहान बर्क ने कहा है कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दिन वो बाबरी मस्जिद जो हमसे छीनी गई उसके लिए दुआ करेंगे। इसी बीच सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने हिंदू धर्म के खिलाफ फिर जहर उगला है। ऐसी दशा में यही लगता है कि अखिलेश बुलावा नहीं आने का बहाना बनाकर राममंदिर समारोह से दूरी बनाना चाहते हैं। पर दूसरी तरफ विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत सभी प्रमुख दलों के प्रमुखों को आदरपूर्वक आमंत्रित किया जाएगा। उन्होंने यहां तक कहा है कि अगर आमंत्रण पत्र लेने के लिए विहिप व राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र के पदाधिकारियों को मिलने का वक्त अखिलेश नहीं देंगे तो उन्हें डाक के माध्यम से आमंत्रण पत्र भेजा जाएगा। सुप्रिया सुले ने भी राम मंदिर जाने के बारे में यही कहा है कि, राम मंदिर का न्योता आने के बाद देखते हैं कि क्या करना है।
कांग्रेस नेता नहीं खोल रहे अपने पत्ते
अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को निमंत्रण भेजा गया है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की तरफ से ये न्योता भेजा गया है। इससे पहले, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी निमंत्रण भेजा गया है। लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान का आमंत्रण पत्र सौंपा गया है। हालांकि कांग्रेस की तरफ से अभी तक इस तरह का कोई बयान नहीं आया है कि वो प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेंगे या नहीं। इससे यही लगता है कि कांग्रेस भी पशोपेश में है कि समारोह में शामिल हुआ जाए या नहीं। तेलंगाना में जिस तरह मुस्लिम समुदाय ने बीआरएस को छोड़कर कांग्रेस के लिए वोट किया है उससे ये संदेश गया है कि देश में मुस्लिम वोटर्स का भरोसा कांग्रेस जीत रही है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस इस समारोह से अपने को दूर रखने की ही कोशिश करेगी।
दरअसल इंडिया गठबंधन में शामिल अधिकतर पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए के लिए खुद को राम मंदिर आंदोलन से दूर रखती आईं हैं। आरजेडी और समाजवादी पार्टी की सरकारों ने राम मंदिर आंदोलन के खिलाफ अपने कठोर एक्शन के चलते इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं। 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को बिहार में घुसते ही केवल रोका ही नहीं गया बल्कि आडवाणी की गिरफ्तारी भी हुई। बिहार के तत्कालीन मुख्य मंत्री लालू प्रसाद यादव मुस्लिम वोटर्स के बीच ऐसा हीरो बने कि आज भी अल्पसंख्यकों का वोट आरजेडी को ही जाता है। यूपी में 1990 में ही अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाकर आंदोलन को जबरन दबाने का श्रेय यूपी के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ले चुके हैं।
लेकिन कांग्रेस अब अपने परंपरागत वोटर्स रहे मुसलमानों को फिऱ से अपने कैंप में लाने की कोशिश कर रही है। इस बीच पिछले 10 सालों में देश की राजनीति में इतना बदलाव आया है कि हर पार्टी यह दिखाने की कोशिश करने लगी है कि वो हिंदुओं की दुश्मन नहीं है। यही कारण है कि इन पार्टियों के संगठन में या विधायकों -सांसदों के टिकट वितरण में मुस्लिमों की संख्या कम होती जा रही है। कोई भी पार्टी यह नहीं दिखाना चाहती है कि वो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए हिंदू हितों की अवहेलना कर रही है।मध्यप्रदेश-राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि बनाने के लिए तमाम ऐसे नियम कानून बनाए और बनाने का वादा किया जो सीधे हिंदुओं को फायदा पहुंचाने वाले थे। मुश्किल ये है कि सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे अगर नहीं जाते हैं तो बीजेपी को कांग्रेस नेताओं को एंटी हिंदू साबित करने का मौका मिल जाएगा और अगर ये जाते हैं तो और अखिलेश यादव और मायावती नहीं जाते हैं मुसलमानों के वोट समाजवादी पार्टी और बीएसपी की तरफ शिफ्ट होने का खतरा हो जाएगा। बिल्कुल यही बात अखिलेश यादव और मायावती के साथ है। अगर ये लोग नहीं जाते हैं और कांग्रेस नेता समारोह में शामिल होते हैं तो इन्हें भी मुस्लिम वोट के कांग्रेस की ओर शिफ्ट होने का खतरा सताएगा। यही हाल नीतीश कुमार और तेजस्वी के लिए भी है. नीतीश कुमार एक तरफ हिंदुओं को खुश करने के लिए बिहार सरकार के खर्च पर सीता माता का मंदिर बनवा रहे हैं। अब किस मुंह से राम मंदिर समारोह में आने से इनकार कर सकेंगे यह देखना है।
देखा जाए तो रामंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बहिष्कार से भी विपक्ष को कोई नुकसान नहीं होने वाला है। पिछले दिनों आए विधानसभा चुनावों के रिजल्ट को देखें तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का खेला गया हिंदू कार्ड बुरी तरह असफल साबित हुआ है। जबकि तेलंगाना में मुस्लिम कार्ड पर कांग्रेस को भारी सफलता मिली।
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