इस्लामाबाद/शिव कुमार यादव/- पाकिस्तान जिस तालिबान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए पाल रहा था वही तालिबान अब पाकिस्तान के लिए खतरा बन गया है। दरअसल अफगानिस्तान में पाकिस्तान की मदद से अशरफ गनी की सरकार को हटाकर सत्ता में आए तालिबान आतंकियों ने अब अपने आका के आगे झुकने से इंकार कर दिया है। पाकिस्तानी सेना बार-बार तालिबान से गुहार लगा रही है कि वह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानि टीटीपी आतंकियों के खिलाफ ऐक्शन ले। ये टीटीपी आतंकी पाकिस्तानी सेना के खिलाफ अक्सर हमले करते रहते हैं। तालिबान को झुकाने के लिए पाकिस्तान ने लाखों की तादाद में देश में मौजूद अफगान शरणार्थियों को देश से बाहर जाने के लिए कह दिया। इससे भी तालिबानी नहीं झुके तो अब पाकिस्तानी सेना हमला करने के विकल्प विचार करने की धमकी दे रही है।
पाकिस्तानी सेना तालिबान के रवैये से बौखलाई
पाकिस्तान की सेना टीटीपी आतंकियों के हमलों से बौखला गई है और वह अब तालिबान को धमकी देने में जुट गई है। पाकिस्तान ने इशारों में कहा है कि वह अफगानिस्तान में टीटीपी के ठिकानों को तबाह कर सकता है। तालिबान और टीटीपी के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। यही नहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने तालिबान सरकार के साथ अफगानिस्तान में मौजूद टीटीपी के ठिकानों की सूची साझा की है। पाकिस्तान ने कहा है कि हम अपेक्षा करते हैं कि तालिबान सरकार इनके खिलाफ कार्रवाई करेगी। वहीं तालिबान ने साफ कर दिया है कि टीटीपी की समस्या उनके सत्ता में आने से पहले है और यह पाकिस्तान का आतंरिक मामला है। तालिबान ने यह भी कहा कि टीटीपी के आतंकी अफगानिस्तान नहीं बल्कि पाकिस्तान के अंदर मौजूद हैं। वहीं अफगानिस्तान के साथ तनाव के बावजूद पाकिस्तान की सरकार को भरोसा है कि वह टीटीपी के मुद्दे को तालिबान के साथ सुलझा सकता है।
पाकिस्तानी अधिकारियों का मानना है कि इस मामले से निपटने वाले अधिकारी भी ऐसा ही मानते हैं। उन्होंने कहा, ’यह आकस्मिक योजना का सवाल नहीं है। यह क्षमता का सवाल है और हमारे पास समस्या से निपटने की क्षमता है।’ एक वरिष्ठ पाकिस्तानी अधिकारी ने बुधवार को द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार को नाम न छापने की शर्त पर बताया। वे पाकिस्तान के उन संभावित विकल्पों पर एक सवाल का जवाब दे रहे थे जिसमें कहा गया था कि अगर तालिबान टीटीपी आतंकी संगठन को शरण देना जारी रखता है तो पाकिस्तान क्या करेगा।
हालांकि, पाकिस्तानी अधिकारी ने सटीक विकल्पों का खुलासा नहीं किया, बल्कि इस बात पर जोर दिया कि तालिबान सरकार भी “हमारी क्षमता“ को जानती है। ’क्षमता’ के उनके संदर्भ से पता चलता है कि पाकिस्तान संभावित सीमा पार हमलों पर विचार कर रहा है। पिछले साल मार्च में पाकिस्तान ने टीटीपी के ठिकानों को निशाना बनाकर सीमित सीमा पार हमले किए थे। हालांकि, उस कदम को कभी सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया था। इन हमलों के बाद तालिबान द्वारा मध्यस्थता के बीच पाकिस्तान और टीटीपी के बीच शांति वार्ता फिर से शुरू हुई थी।
यह प्रक्रिया वांछित परिणाम नहीं दे सकी क्योंकि टीटीपी ने बातचीत का इस्तेमाल फिर से संगठित होने और आतंकवादी हमलों को फिर से शुरू करने के लिए किया। तब से पाकिस्तान ने शांति प्रक्रिया का रास्ता छोड़ दिया है और अफगान तालिबान को स्पष्ट कर दिया है कि वह अब टीटीपी से बातचीत नहीं करेगा। इसके बजाय, पाकिस्तान ने टीटीपी के खतरे को बेअसर करने के लिए काबुल को एक स्पष्ट संदेश भेजा। पाकिस्तान के केयरटेकर प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकर ने हाल ही में एक संवाददाता सम्मेलन में खुलासा किया कि इस साल फरवरी में तालिबान को पाकिस्तान और टीटीपी के बीच चयन करने का स्पष्ट संदेश दिया गया था।
काकर ने यह भी कहा कि लेकिन ऐसा लगता है कि संदेशवाहक अफगानिस्तान के तालिबानी सरकार को नहीं समझा सका क्योंकि टीटीपी और उसके सहयोगियों द्वारा किए गए आतंकवादी हमलों की संख्या बढ़ी है। पाकिस्तानी पीएम के अनुसार, अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में वापस आने के बाद से आतंकवादी हमलों में 60 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं आत्मघाती हमलों में 500 फीसदी की वृद्धि हुई है। बता दें कि जैसे-जैसे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है, पाकिस्तानी अधिकारियों की बौखलाहट बढ़ती जा रही है। वे अब तालिबानी शासन की आलोचना करने में अधिक मुखर हो रहे हैं।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने तालिबान के खिलाफ जहां आरोप पत्र जारी किया, वहीं अफगानिस्तान के लिए पाकिस्तान के विशेष प्रतिनिधि आसिफ दुर्रानी ने टीटीपी को नियंत्रित करने के लिए अफगान तालिबान पर आरोप लगाया। एक हालिया साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस तथ्य को समझ नहीं पा रहा है कि टीटीपी तालिबान के नियंत्रण में है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि टीटीपी को सीमा पार करने और पाकिस्तान में हमले करने की तालिबान की ओर से अनुमति दी गई थी।
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