नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/ताइपे/शिव कुमार यादव/- ताइवान अमेरिका से 400 एंटी-शिप हारपून मिसाइल खरीदने जा रहा है। बताया जा रहा है कि चीन से तनातनी व अपनी सुरक्षा के लिए ताइवान ने अमेरिका से 96 हजार करोड़ की डील की है। जमीन से मार करने वाली इन मिसाइल का इस्तेमाल वो चीन का मुकाबला करने के लिए करेगा। अमेरिका ने 7 अप्रैल को 400 एंटी-शिप मिसाइलों के लिए 1.17 बिलियन डॉलर (96 हजार करोड़ रुपए) के कॉन्ट्रैक्ट की घोषणा की थी। हालांकि, इस दौरान पेंटागन ने ये नहीं बताया था कि कॉन्ट्रैक्ट किस देश के साथ साइन किया गया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, इन मिसाइलों का खरीददार ताइवान ही है।
कॉन्ट्रैक्ट की घोषणा के साथ पेंटागन ने बताया कि मिसाइलों का प्रोडक्शन 2029 तक पूरा हो जाएगा। इससे पहले ताइवान शिप से लॉन्च होने वाली हारपून मिसाइलें भी खरीद चुका है। इन्हें अमेरिका की बोइंग कंपनी ने बनाया था। ब्लूमबर्ग ने न्ै-ताइवान बिजनेस काउंसिल के अध्यक्ष रूपर्ट हैमंड-चैम्बर्स का हवाला देते हुए बताया कि एंटी-शिप मिसाइल के लिए भी बोइंग के साथ डील की गई है।
बोइंग कंपनी को दिया गया कॉन्ट्रैक्ट
वहीं इस कॉन्ट्रैक्ट से पहले कंपनी को हारपून कोस्टल डिफेंस सिस्टम से जुड़े लॉन्च इक्विपमेंट बनाने का भी 498 मिलियन डॉलर (4 हजार करोड़) का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया है। इसमें मोबाइल ट्रांसपोर्टर, रडार और ट्रेनिंग उपकरण शामिल हैं। पेंटागन ने इस मामले में कोई भी बयान देने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि अमेरिका ताइवान को उसकी रक्षा के लिए जरूरी डिफेंस सर्विसेज देता रहेगा।
ताइवान के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सुन ली-फांग ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा- मंत्रालय ने पहले ही इस खरीद को लेकर जानकारी दी थी। हमें पूरा भरोसा है कि डील तय कार्यक्रम के मुताबिक पूरी होगी। ताइवान 2020 में भी अमेरिका से हारपून मिसाइल खरीदने की इच्छा जाहिर कर चुका है।
चीन ने 3 दिन तक ताइवान के पास की थी वॉर ड्रिल
चीन ने 8 अप्रैल को ताइवान के फुजियान प्रांत के पिंगटन आईलैंड के पास 4 इलाकों में मिलिट्री ड्रिल शुरू की थी। तीन दिन की ड्रिल में कुल 172 चीनी फाइटर जेट्स ने उड़ान भरी थी। इस दौरान चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने लाइव गोला-बारूद का इस्तेमाल किया था। दरअसल चीन, ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन की अमेरिका के स्पीकर मैकार्थी से मुलाकात के बाद से भड़का हुआ था।
चीन ने दो अमेरिकी संस्थाओं पर भी बैन लगा दिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक इन्हीं दो संस्थाओं ने राष्ट्रपति साइ इंग वेन की अमेरिकी यात्रा की प्लानिंग की थी। इन संस्थाओं में कैलिफोर्निया की रोनाल्ड रीगन लाइब्रेरी भी शामिल है।
अमेरिका-चीन के रिश्तों में ताइवान सबसे बड़ा फ्लैश पॉइंट
अमेरिका ने 1979 में चीन के साथ रिश्ते बहाल किए और ताइवान के साथ अपने डिप्लोमैटिक रिश्ते तोड़ लिए। हालांकि चीन के ऐतराज के बावजूद अमेरिका ताइवान को हथियारों की सप्लाई करता रहा। अमेरिका भी दशकों से वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करता है, लेकिन ताइवान के मुद्दे पर अस्पष्ट नीति अपनाता है।
राष्ट्रपति जो बाइडेन फिलहाल इस पॉलिसी से बाहर जाते दिख रहे हैं। उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि अगर ताइवान पर चीन हमला करता है तो अमेरिका उसके बचाव में उतरेगा। बाइडेन ने हथियारों की बिक्री जारी रखते हुए अमेरिकी अधिकारियों का ताइवान से मेल-जोल बढ़ा दिया। इसका असर ये हुआ कि चीन ने ताइवान के हवाई और जलीय क्षेत्र में अपनी घुसपैठ आक्रामक कर दी है। छल्ज् में अमेरिकी विश्लेषकों के आधार पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक चीन की सैन्य क्षमता इस हद तक बढ़ गई है कि ताइवान की रक्षा में अमेरिकी जीत की अब कोई गारंटी नहीं है। चीन के पास अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है और अमेरिका वहां सीमित जहाज ही भेज सकता है।
अगर चीन ने ताइवान पर कब्जा कर लिया तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा दिखाने लगेगा। इससे गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिका के मिलिट्री बेस को भी खतरा हो सकता है।
ताइवान का उत्तरी एयर स्पेस बंद करेगा चीनः अमेरिका-जापान की 70 फीसदी फ्लाइट्स पर असर होगा
चीन ने नॉर्थ ताइवान के एक खास हिस्से में 16 से 18 अप्रैल के बीच एयर स्पेस बंद रखने का फैसला कर लिया है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक- इस दौरान इस हिस्से में सिविलियन फ्लाइट्स ऑपरेट नहीं कर सकेंगी। एक ताइवानी अफसर के मुताबिक- फ्लाइट बैन से इस इलाके का करीब 70þ एयर ट्रैफिक डिस्टर्ब होगा।
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