भारत रूसी टीयू-160 से सीमा पर देगा चीन के एच-6के का जवाब

स्वामी,मुद्रक एवं प्रमुख संपादक

शिव कुमार यादव

वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी

संपादक

भावना शर्मा

पत्रकार एवं समाजसेवी

प्रबन्धक

Birendra Kumar

बिरेन्द्र कुमार

सामाजिक कार्यकर्ता एवं आईटी प्रबंधक

Categories

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930  
November 8, 2024

हर ख़बर पर हमारी पकड़

भारत रूसी टीयू-160 से सीमा पर देगा चीन के एच-6के का जवाब

-भारत खरीदेगा रूस से दुनिया का सबसे घातक टीयू-160 स्ट्रैटेजिक बॉम्बर, इसका कोई नही सानी

नई दिल्ली/- चीन पिछले दो साल से अपने हथियारों के बल पर लगातार एलएसी पर आक्रामक रूख अपनाये हुए है। जिसे देखते हुए भारत भी अब अपनी सीमाओं की सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए बड़े कदम उठा रहा है। पिछले साल नवंबर में चीन ने भारतीय सीमा पर एच-6के नामक स्ट्रैटेजिक बॉम्बर तैनात किया था। उस समय भारत के पास चीन के इस हथियार का कोई तोड़ नहीं था। लेकिन अब खबर है कि भारत ड्रैगन को जवाब देने के लिए रूस से दुनिया का सबसे घातक स्ट्रैटेजिक बॉम्बर टीयू-160 खरीदने जा रहा है। दुनिया में इसे व्हाइट स्वॉन यानी सफेद हंस के नाम से भी जाना जाता है जबकि नाटो इसे ब्लैक जैक भी कहता हैं।
              हाल ही में रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम हासिल करने के बाद जेट बॉम्बर भारत के लिए एक और महत्वपूर्ण डील साबित हो सकता है। दुनिया में अब तक केवल 3 देशों-अमेरिका, रूस और चीन के पास ही स्ट्रैटेजिक बॉम्बर हैं। अमेरिका के भारी विरोध के बावजूद रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम हासिल करने के बाद भारत अपना पहला स्ट्रैटेजिक बॉम्बर जेट भी खरीदने जा रहा है।
               बता दें कि स्ट्रैटेजिक बॉम्बर ऐसे जेट होते हैं, जो पलक झपकते ही दुश्मन के घर में जाकर बम या मिसाइल गिराकर वापस लौट आते हैं। स्ट्रैटेजिक बॉम्बर की खासियत ही होती है ’कहीं भी कभी भी’ हमला करने में सक्षम। भारत के पास ऐसे बॉम्बर आने से उसके लिए बालाकोट जैसी एयर स्ट्राइक करना आसान हो जाएगा।
               मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये जानकारी इंडियन एयरफोर्स के पूर्व प्रमुख अरूप साहा के हाल ही में चाणक्य फाउंडेशन के दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में दिए भाषण से मिली। अपने भाषण में साहा ने भारत के रूस से बॉम्बर खरीदने की योजना का जिक्र किया। हालांकि, अभी भारत और रूस में से किसी ने भी इस डील को लेकर आधिकारिक बयान नहीं दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत की रूस से कम से कम छह टीयू-160 बॉम्बर एयरक्राफ्ट लेने की डील की बातचीत आखिरी दौर में है।

भारत के पास क्यों नहीं हैं स्ट्रैटेजिक बॉम्बर?
चीन के साथ सीमा पर जारी तनाव को देखते हुए भारत की इस डील को करने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। इससे पहले 1970 के दशक में सोवियत रक्षा मंत्री सर्जेई गोर्शाकोव के टीयू-22 बैकफायर बॉम्बर देने के ऑफर को भारतीय एयरफोर्स ने ठुकरा दिया था। एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत के पास स्ट्रैटेजिक बॉम्बर न होने की एक बड़ी वजह ये भी है कि इन बॉम्बर का इस्तेमाल अक्सर सीमा पार करके दुश्मन के घर में घुसकर करना पड़ता है। भारत की ऐसी कोई महत्वाकांक्षा नहीं रही है। क्योंकि भारत के पास पहले से ही अपनी सीमा में रहकर दुश्मन के ठिकानों को निशाना बनाने में सक्षम टैक्टिकल बॉम्बर और फाइटर प्लेन हैं।

चीन ने भारतीय सीमा के पास तैनात किया है एच-6के बॉम्बर जेट
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ने पिछले साल नवंबर में भारत से लगी सीमा के पास एच-6के बॉम्बर जेट तैनात कर दिया था। पिछले साल 11 नवंबर को चीनी एयरफोर्स पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स यानी पीएलएएएफ के 72वें स्थापना दिवस के मौके पर चीन के सरकारी मीडिया ने एच-6के बॉम्बर के एक पहाड़ी के ऊपर उड़ान भरने के फुटेज प्रसारित किए थे। चीनी मीडिया ने दावा किया था कि इस बॉम्बर को हिमालय की ओर भेजा गया है।
                 चीन ने सबसे पहले 1970 के दशक में सोवियत संघ की मदद से बॉम्बर बनाया था। उसका बेसिक शियान एच-6 बॉम्बर सोवियत संघ के टीयू-16 मीडियम-रेंज बॉम्बर का लाइसेंड प्रॉड्यूसड वर्जन था। बाद में चीन ने एच-6 बॉम्बर के कई अपग्रेडेड वर्जन बना लिए। इनमें सबसे हालिया है एच-6के बॉम्बर, जिसके कुछ वर्षों पहले ही चीनी एयरफोर्स में शामिल किया गया है।
                चीनी एयरफोर्स के भारतीय सीमा के पास बॉम्बर तैनात करने के उकसावे भरे कदम के बाद से ही भारतीय एयरफोर्स को स्ट्रैटेजिक बॉम्बर की जरूरत महसूस हुई है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि बॉम्बर के जरिए भारत न केवल चीन बल्कि पाकिस्तान को कड़ा संदेश दे सकता है। यही वजह है कि अब भारत रूस से ज्न-160 जैसा घातक बॉम्बर खरीदने की तैयारी में है।

क्या है रूसी बॉम्बर टीयू-160, जिससे अमेरिका भी घबराता है
टुपोलेव टीयू-160 एक सुपरसोनिक रूसी स्ट्रैटेजिक बॉम्बर है। इसे वाइट स्वॉन यानी सफेद हंस भी कहा जाता है। नाटो इसे ब्लैक जैक कहता है। ये आवाज की गति से भी दोगुनी रफ्तार यानी मैक-2$ स्पीड से चलने वाला दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा और भारी फाइटर प्लेन है। वर्तमान में इसके मुकाबले में कुछ हद तक अमेरिका का बी-1 स्ट्रैटेजिक बॉम्बर ही है, जोकि चर्चित बी-52 बमवर्षक का अपग्रेडेड वर्जन है। टीयू-160 एयरक्राफ्ट करीब 52 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम है। इसलिए, रडार भी इस विमान को नहीं पकड़ सकता है। ये विमान करीब 40 हजार किलो वजनी बम भी ले जा सकते हैं। उनकी ऊंचाई 43 फीट, लंबाई 177.6 फीट और रेंज 12300 से 14500 किमी तक है।  टीयू-160 बॉम्बर जेट से क्रूज और लैंड अटैक मिसाइल के साथ ही ट्रैडीशनल और न्यूक्यिलर हथियार भी कैरी किए जा सकते हैं। इस जेट से करीब 40 हजार किलो वजनी बम भी ले जाए जा सकते हैं। इसका डिजाइन 1970 के दशक में टुपोलेव डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया था। इसने पहली उड़ान 1981 में भरी थी और 1987 में इसे रूसी सेना में शामिल किया गया था। दिसंबर 2014 के बाद से रूस इसके अपग्रेडेड वर्जन टीयू-160एम पर काम कर रहा है और उसकी योजना जल्द ही 50 नए टीयू-160एम को एयरफोर्स में शामिल करने की है। इसमें 4 क्रू होते हैं, जिनमें पायलट, को-पायलट, बॉम्बर्डियर और डिफेंसिव सिस्टम ऑफिसर शामिल हैं।

आखिर बॉम्बर क्या होते हैं?
रूस में बना टीयू-160 एक स्ट्रैटेजिक बॉम्बर है। दरअसल, बॉम्बर या बमवर्षक दो तरह के होते हैं-स्ट्रैटेजिक और टैक्टिकल बॉम्बर। बॉम्बर या बमवर्षक ऐसे फाइटर प्लेन होते हैं, जिनका इस्तेमाल जमीन और नौसेना के टारगेट्स को निशाना बनाने के लिए हवा से जमीन पर बम गिराने, या हवा से क्रूज मिसाइलों को लॉन्च करने में होता है। टैक्टिकल बॉम्बर का इस्तेमाल आमतौर पर युद्ध के दौरान अपनी जमीन पर दुश्मन सेना के ठिकानों या मिलिट्री हथियारों को निशाना बनाने में होता है।
                  इस बमवर्षक का इस्तेमाल युद्ध के दौरान अपनी ग्राउंड फोर्स की मदद के लिए उसके आसपास मौजूद करीबी ठिकानों को निशाना बनाने में होता है। टैक्टिकल बॉम्बिंग यानी हवा से जमीन पर बम गिराने का पहली बार इस्तेमाल 1911-1912 के दौरान इटली-तुर्की युद्ध के दौरान किया गया था। इसके बाद पहले वर्ल्ड वॉर के दौरान 1915 में नेऊ चैपल की जंग में ब्रिटिश रॉयल फ्लाइंग कॉर्प्स ने जर्मन रेल कम्यूनिकेशन पर बम गिराने के लिए टैक्टिकल बॉम्बर्स का इस्तेमाल किया था। 1939 से 1945 के दौरान दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान भी टैक्टिकल बॉम्बर का इस्तेमाल जर्मन, ब्रिटिश, अमेरिकी और जापानी फौजों ने किया था।
               स्ट्रैटेजिक बॉम्बर ऐसे मीडियम या लॉन्ग रेंज विमान होते हैं, जिनका इस्तेमाल रणनीति के तहत दुश्मन देश के शहरों, फैक्ट्रियों, सैन्य ठिकानों, मिलिट्री कारखानों को निशाना बनाने में किया जाता है। स्ट्रैटेजिक बॉम्बर ऐसे फाइटर प्लेन होते हैं, जो हजारों किलोमीटर की यात्रा करके दुश्मन के घर में हमला करके वापस लौट आते हैं। इन बॉम्बर के जरिए दुश्मन के ठिकानों पर क्रूज मिसाइलों के साथ ही न्यूक्लियर वेपन तक से हमला किया जा सकता हैं। स्ट्रैटेजिक बॉम्बर का इस्तेमाल आमतौर पर अपनी सीमा से पार जाकर दुश्मन के घर में घुसकर हमला करने में होता है। यही टैक्टिकल और स्ट्रैटेजिक बॉम्बर का सबसे बड़ा फर्क भी है। स्ट्रैटेजिक बॉम्बर की रेंज और क्षमता दोनों टैक्टिकल बॉम्बर से कहीं ज्यादा होती है।
               स्ट्रैटेजिक बॉम्बर का पहली बार इस्तेमाल पहले वर्ल्ड वॉर के दौरान 6 अगस्त 1914 को जर्मनी ने बेल्जियम के शहर लीज पर बमबारी के लिए किया था। अगस्त 1914 में ही रूस ने पोलैंड के वॉरसा शहर पर स्ट्रैटेजिक बॉम्बर से बमबारी की थी। जर्मनी और रूस के अलावा ब्रिटेन और फ्रांस ने भी स्ट्रैटेजिक बॉम्बर का इस्तेमाल किया था। 1939 से 1945 तक दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान जर्मनी ने पोलैंड, ब्रिटेन और सोवियत संघ के शहरों पर हमले के लिए स्ट्रैटेजिक बॉम्बर का इस्तेमाल किया था। वहीं ब्रिटेन ने भी जर्मनी के बर्लिन जैसे शहरों को निशाना बनाया था। इसका सबसे घातक इस्तेमाल अमेरिका ने 6 और 9 अगस्त को जापानी शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने के लिए किया था।

About Post Author

Subscribe to get news in your inbox