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    संस्कृत का विरोध भारत और भारतीयता का विरोध है : प्रो. मुरलीमनोहर पाठक

    नजफगढ़ मेट्रो/ शिव यादव/- : संस्कृत भाषा को सम्पूर्ण वैश्विक भाषाओं की जननी कहा जाता है। संस्कृत का वैज्ञानिकी प्रभाव नासा द्वारा किये गये अनेकों रिसर्च से पता चलता है। पिछले दिनों में संस्कृत को लेकर ऐसे-ऐसे स्टेटमेंट्स आये हैं, जो भारत की सम्प्रभुता को नष्ट करने वाले हैं। भारत अपनी संस्कृति एवं नैतिक विचारों के कारण ही विश्वगुरु कहा जाता रहा है, लेकिन डीएमके के सांसद दयानिधि मारन ने संसद में संस्कृत पर कटाक्ष करते हुए जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है, वह राष्ट्र-विरोधी सोच का प्रतिफल है। श्री मारन द्वारा संसदीय क्रियाकलापों को संस्कृत भाषा में अनुवाद न करने का वाचिक प्रस्ताव दिया गया तथा कहा गया कि संस्कृत में अनुवाद कराना निरर्थक है, केवल पैसों की बर्बादी है। इसके जवाब में अध्यक्ष महोदय बिरला जी द्वारा सटीक जवाब दिया गया कि आप किस देश में रह रहे हैं, यह भारतभूमि है, जिसे संस्कृत ने बनाया है, संस्कृत ने प्रतिष्ठित किया है।

    डीएमके सांसद मारन के इस प्रकार के संस्कृत विरोधी बोल से सम्पूर्ण संस्कृत जनमानस हतप्रभ है। श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित आचार्यों के साथ एक मीटिंग आयोजित की तथा मारन के इस मूर्खतापूर्ण वक्तव्य की घोर भर्त्सना की। प्रो. पाठक ने कहा कि संस्कृत का विरोध भारतीयता का विरोध है, जिसे सहन नहीं किया जायेगा। सभा द्वारा यह निर्णय लिया गया कि सांसद मारन को अपने वचन वापस लेने तथा भारत की जनता से संसद में माफी मांगने का पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर किया जाये, जिससे उन्हें आत्मग्लानि एवं आत्मबोध हो सके। प्रो. पाठक ने कहा कि भारतीय मातृ सम्पदा संस्कृत के प्रति नेता के विध्वंसकारी बोल से जनमानस में रोष है। हम उनके प्रति उचित कार्रवाई हेतु प्रतिबद्ध हैं। इस हेतु तीनों केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय मिलकर राष्ट्रव्यापी आन्दोलन करेंगे तथा श्री मारन को क्षमायाचना के लिए बाध्य करेंगे। इस अवसर पर प्रो. प्रेम कुमार, प्रो. शीतला प्रसाद, प्रो. आरावमुदन्, प्रो. रचना वर्मा, प्रो. कल्पना जैन, प्रो. शिवशंकर मिश्र, प्रो. भागीरथि नन्द तथा कुलसचिव श्रीसन्तोष श्रीवास्तव आदि उपस्थित रहे।

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