नई दिल्ली/अनीशा चौहान/- शिक्षक दिवस हर किसी के लिए खास होता है, लेकिन मेरे लिए यह दिन और भी भावनात्मक है। क्योंकि मेरी मां स्वयं एक शिक्षिका थीं। आज वह इस दुनिया में नहीं हैं, फिर भी उनकी कही बातें और उनके दिए जीवन के सबक मुझे हमेशा याद रहते हैं।
पढ़ाई से दूरी और मां की सख्ती
जब मैं छठवीं कक्षा में थी, तब मेरा पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था। मैं अपनी मां के ही स्कूल में पढ़ती थी और यही सोचती थी कि मेरी मां अध्यापिका हैं, तो मुझे मेहनत करने की कोई जरूरत नहीं है। वे चाहेंगी तो मुझे पास कर ही देंगी। इस वजह से मैंने कभी पढ़ाई को गंभीरता से नहीं लिया और पूरा साल खेलकूद में निकाल दिया।
नतीजे ने दिखाया आईना
जब परीक्षा हुई, तो मैंने बिना पढ़ाई किए ही कुछ भी लिख दिया। नतीजा यह हुआ कि मैं फेल हो गई। उस समय मैंने गुस्से में मां से कहा कि उन्होंने चाहा होता तो मुझे पास कर सकती थीं। लेकिन उन्होंने शांत रहकर मुझे समझाया।
मां का संदेश और सीख
मां ने कहा कि एक अध्यापिका के लिए सभी छात्र समान होते हैं। बिना मेहनत किए किसी को अंक देना न केवल गलत है बल्कि मेहनती छात्रों के साथ अन्याय भी है। अगर वह मुझे एक बार पास कर देतीं तो मैं आगे भी कभी मेहनत न करती और बिना प्रयास किए सबकुछ पाना चाहती।
जीवनभर की प्रेरणा
उस दिन मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ और मैंने ठान लिया कि जिंदगी में हर चीज मेहनत से ही हासिल करनी है। आज शिक्षक दिवस पर मुझे मां की वही बातें याद आ रही हैं। वास्तव में, मां ही मेरी पहली और सबसे बड़ी शिक्षिका थीं, जिन्होंने मुझे मेहनत का असली महत्व समझाया।


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