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  • लोगों की निजता के लिए खतरनाक साबित हो सकते है न्यूरो-टेक्नोलॉजी डिवाइस

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    लोगों की निजता के लिए खतरनाक साबित हो सकते है न्यूरो-टेक्नोलॉजी डिवाइस

    -दिमाग पढ़ने वाले न्यूरो-टेक्नोलॉजी डिवाइस बनाने वाली कंपनियां दिमाग का डेटा बेच रहीं, ब्रेन रेगूलेट करने का मांग रही पूरा अधिकार

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/वॉशिंगटऩ/शिव कुमार यादव/- खोज और तकनीक के सहारे आज हम उस मुकाम तक पंहुच चुके है जहां अब हम किसी के भी दिमाग में क्या चल रहा है उसे न केवल जान सकते है बल्कि कंप्यूटर स्क्रीन पर लिखा भी जा सकता है। अर्थात् यह सब संभव हो पाया है न्यूरोटेक्नोलॉजी डिवाइस यानी दिमाग पढ़ने वाली मशीनों के जरीये। लेकिन सुनने में जितना यह अच्छा लगता है उतना ही यह खतरनाक भी है। इस तरह के डिवाइसों की संख्या दुनिया भर में बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कानून बनाकर इनका अभी रेगूलेशन नहीं किया गया तो ये मानवता खासतौर पर लोगों की निजता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएंगी।
                     कोलंबिया विश्वविद्यालय के न्यूरोसाइंटिस्ट राफेल यूस्ते ने न्यूरोफाइट्स फाउंडेशन की स्थापना की है। वे बताते हैं- 18 कंपनियां अपने उपभोक्ता को मजबूर कर रही हैं कि वे अपने दिमाग का डेटा हासिल करने का पूरा अधिकार कंपनी को दे दें। उनमें से एक कंपनी तो ये डेटा किसी तीसरे को देने का अधिकार भी ले लेती है। यह सब इसलिए हो पा रहा है क्योंकि न्यूरोटेक्नोलॉजी पर सरकारों का फोकस नहीं है और तेजी से बढ़ता यह उद्योग मनमाना रवैया अपना रहे हैं। इन पर अभी नियंत्रण नहीं किया गया तो आने वाले समय में ये इंसानी दिमाग को रेगूलेट करने लगेंगी।

    लोगों की सोच और व्यवहार नियंत्रित कर सकते हैं
    लोगों की सोच और व्यवहार बदलने से रोकना न्यूरोटेक्नोलॉजिकल डिवाइस से लोगों की सोच और उनका व्यवहार दोनों बदला जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि ब्रेन मॉनिटरिंग डिवाइसों को नियंत्रित किया जाए।
                    नॉर्थ कैरोलिना की ड्यूक यूनिवर्सिटी की नीतिशास्त्री नीता फैरहैनी कहती हैं- नीतियां बनाने वाले खासतौर से राजनीति से जुड़े लोग न्यूरोटेक्नोलॉजिकल डिवाइसों का इस्तेमाल लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए करेंगे, जबकि मेडिकल उपकरणों में दूसरी समस्या आ सकती है कि सभी लोग एक खास तरह से ही व्यवहार करने लगें।

    कंपनियां इंसानी दिमाग का डेटा बेच रही हैं
    बड़ी न्यूरो टेक्नोलॉजिकल कंपनियों से लेकर स्टार्टअप तक हेडसेट्स, ईयरबड्स, कलाई पर बांधने वाले बैंड बना रही हैं, जो इंसानी दिमाग की गतिविधियां रिकॉर्ड कर रही हैं। ये कंपनियां इनके जरिए इंसानों के दिमाग का डेटा बेस तैयार कर रही हैं और दूसरी कंपनियों को यह डेटा बेच रही हैं। इस डेटा के लीक होने से लोगों की निजता पूरी तरह खत्म हो रही है। दूसरी कंपनियों इन डेटा के आधार पर नए उत्पाद तैयार कर रही हैं।

    न्यूरोटेक्नोलॉजी का कारोबार 2.70 लाख करोड़ का
    न्यूरोटेक्नोलॉजी पर यूनेस्को की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में न्यूरोटेक्नोलॉजी से संबंधित पेटेंट 2015 से 2020 के 5 साल में दोगुने हो गए हैं। 2010 से 2020 तक न्यूरोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में निवेश 22 गुना बढ़ गया है। इस वक्त दुनिया भर में न्यूरोटेक्नोलॉजी का कारोबार 2.70 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का हो गया है। जिस तेजी से कंपनियां इसमें शोध और निवेश कर रही हैं, उससे यह साफ है कि अभी यह कई गुना तेजी से बढ़ेगा।
                    इसी महीने यूनेस्को ने पेरिस में न्यूरोटेक्नोलॉजी के फायदों और खतरों पर एक बैठक का आयोजन किया। इसमें न्यूरोसाइंटिस्ट, नीति शास्त्री और कई देशों के मंत्रियों ने हिस्सा लिया। यूनेस्को के सामाजिक और मानव विज्ञान के असिस्टेंट डायरेक्टर-जेनरल गैब्रियेला रामोस कहते हैं कि यह तकनीक का मामला नहीं है, यह एक बहुत मुश्किल सामाजिक और कानूनी मामला है। इस पर जल्द कानून बनाने की जरूरत है।

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