
नजफगढ़/ नई दिल्ली/ शिव कुमार यादव/ /- श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,में नई दिल्ली 18 से 20 मार्च तक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। यह सेमिनार भारतीय ज्ञान परम्परा में निहित वैज्ञानिक

, राजनीतिक, समाजिक, नैतिक आदि तत्त्वों तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के वैशिष्ट्य को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया। सेमिनार के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे भूतपूर्व राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा ने भारतीय ज्ञान परम्परा की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जिस काल में अन्य सभ्यताएं उत्पन्न हो रहीं थीं उस समय भारत में अनेकों वैज्ञानिक ग्रन्थ लिखे जा चुके थे। स्वास्थ्य के संरक्षण हेतु आज कई प्रणालियां प्रयत्नशील हैं किन्तु प्राचीन काल में तो आयुर्वेद और योग स्वास्थ्य संरक्षण के प्रमुख स्रोत थे। वस्तुतः भारतीय ज्ञान परम्परा में ही विज्ञान के सभी तत्त्व निहित हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में समागत अन्ताराष्ट्रिय संस्कृत अध्ययन समवाय की अध्यक्ष प्रो. दीप्ति त्रिपाठी ने भारतीय ज्ञान परम्परा एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तःसम्बन्ध पर विशेष व्याख्यान प्रस्तुत किया।

उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरलीमनोहर पाठक ने भारतीय ज्ञान परम्परा के विभिन्न स्रोतों वेद, उपनिषद्, पुराण, दर्शन आदि का रिफरेंस देते हुए, भारतीय प्राचीन विज्ञान के मर्म को समझाया। आज सम्पूर्ण विश्व भारत के समक्ष नतमस्तक है यह हमारे संस्कृति की विलक्षणता है।भारतीय ज्ञान परम्परा में शिक्षा एवं विज्ञान के ऐसे अनेक तत्त्व निहित हैं, जिनपर आधुनिक दृष्टिकोण से अनुसन्धान किये जाने पर निश्चय ही मौलिक विषयों को प्रकाश में लाया जा सकेगा। 18 से 20 मार्च तक विभिन्न सत्रों में लगभग 200 प्रतिभागियों ने भारतीय ज्ञान परम्परा एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति विषय पर भिन्न-भिन्न सन्दर्भों में विचार रखा।

दिनांक 20 मार्च को समापन सत्र में सारस्वत अतिथि के रूप में पधारे केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सदाशिव परिसर के भूतपूर्व निदेशक प्रो. खगेश्वर मिश्र ने भारतीय ज्ञान परम्परा के विविध पक्षों का प्रतिपादन किया।

एनसीईआरटी के निदेशक प्रो. दिनेश प्रसाद सकलानी ने मुख्यातिथि के रूप में भाषण देते हुए भारतीय संस्कृति के चारों आश्रमों पर विस्तार पूर्वक प्रकाश डाला। उन्होंने भारतीय प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के रूप में परिवर्तित होने का कारण बताया। आज हमारा देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परम्परा को प्रमुखता देते हुए नवीन पाठ्यक्रम तथा ग्रन्थों का निर्माण कर रहा है, यही भारतीय ज्ञान परम्परा की पुनः जागृति है।
सत्र के अध्यक्ष प्रो. मुरलीमनोहर पाठक जी ने सम्पूर्ण कार्यक्रम की प्रशंसा की एवं आयोजन समिति का उत्साहवर्धन किया। कार्यक्रम में संयोजक प्रो. देवीप्रसाद त्रिपाठी, प्रो. शिवशङ्कर मिश्र, प्रो. आरावमुदन्, प्रो. शीतला प्रसाद शुक्ला, प्रो. कल्पना जैन, प्रो. मीनू कश्यप, प्रो. प्रेम कुमार शर्मा तथा प्रो. जयकान्त सिंह शर्मा, श्री सन्तोष कुमार श्रीवास्तव की विशेष उपस्थिति रही। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सभी आचार्य तथा शताधिक की संख्या में शोधच्छात्र एवं शोध-पत्र प्रस्तोता उपस्थित रहे।
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