नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कार्यपालिका से जुड़ी नियुक्तियों में न्यायपालिका की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका की शक्तियों पर सवाल उठाते हुएसीजेआई की एग्जिक्यूटिव नियुक्तियों में भागीदारी को ’संवैधानिक विरोधाभास’ बताया है। उन्होंने कहा कि सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति प्रक्रिया का हिस्सा आखिर सीजेआई कैसे हो सकते हैं। उनका ये बयान ऐसे समय आया है जब 18 फरवरी को मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त रिटायर हो रहे हैं। पहली बार नए कानून के तहत अगले मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति होने वाली है।

अपने बेबाक बयानों की वजह से हमेशा चर्चा में रहने वाले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ’मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है’ के अंदाज में न्यायपालिका से सवाल किया है। उन्होने न्यायपालिका की शक्तियों पर सवाल उठाया है। उन्होंने शुक्रवार को भोपाल में एक कार्यक्रम के दौरान सवाल उठाया कि कैसे भारत जैसे किसी लोकतंत्र में सीजेआई कार्यपालिका की नियुक्ति में शामिल हो सकते हैं। सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति प्रक्रिया में सीजेआई का क्या काम है? अब उपराष्ट्रपति ने भले ही सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति का जिक्र कर न्यायपालिका के रोल पर सवाल उठाया हो लेकिन अगले मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से पहले उनके बयान की अहमियत बढ़ जाती है।

उपराष्ट्रपति ने कहां बोला?
भोपाल में नैशनल ज्युडिशियल एकडमी को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कार्यपालिका के मामलों में न्यायपालिका की भागीदारी को एक ’संवैधानिक विरोधाभास’ बताया। उन्होंने कहा कि इसका समाधान जरूरी है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने भारत जैसे लोकतंत्र में कार्यपालिका से जुड़ी नियुक्तियों में भारत के मुख्य न्यायाधीश की भागीदारी पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि ऐसे नियमों पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है। सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपने अधिकार क्षेत्र में ही काम करना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने क्या कहा?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, ’आपके मन में विचार जगाने के लिए, हमारे जैसे देश में या किसी भी लोकतंत्र में वैधानिक प्रावधान द्वारा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, सीबीआई डायरेक्टर के चयन में कैसे हिस्सा ले सकते हैं? क्या इसका कोई कानूनी तर्क हो सकता है? मैं समझ सकता हूं कि वैधानिक प्रावधान इसलिए बना क्योंकि तत्कालीन कार्यपालिका ने न्यायिक फैसले के आगे घुटने टेक दिया। लेकिन अब पुनर्विचार का समय आ गया है। यह निश्चित रूप से लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता।’
सीईसी की होने वाली नियुक्ति की पृष्ठभूमि में बयान की अहमियत
उपराष्ट्रपति का यह बयान अगले मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए होने वाली बैठक से ठीक पहले आया है। मौजूदा सीईसी राजीव कुमार 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं। उनके उत्तराधिकारी को तय किया जाना है। यह मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) कानून, 2023 के पास होने के बाद सीईसी का पहला चयन होगा। इस कानून के जरिए केंद्र ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने वाले पैनल से सीजेआई को हटा दिया है।
नए कानून के तहत पहली बार मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति होने वाली है। मौजूदा सीईसी 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं और उनके उत्तराधिकारी के चयन के लिए 17 फरवरी को सिलेक्शन पैनल की मीटिंग होने वाली है जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह शामिल होने वाले हैं। दिलचस्प ये भी है कि सीईसी और ईसी की नियुक्तियों को लेकर बने नए कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 19 फरवरी को अगली सुनवाई करने वाला है यानी राजीव कुमार के रिटायरमेंट के ठीक अगले दिन। याचिकाओं में सिलेक्शन पैनल से सीजेआई को हटाए जाने को चुनौती दी गई है।
सिलेक्शन पैनल में कैसे शामिल हुए सीजेआई और कैसे कानून से हुए बाहर?
यहां मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के चयन की प्रक्रिया में सीजेआई का हिस्सा बनने और बाद में कानून के जरिए उन्हें सिलेक्शन पैनल से हटाए जाने की पृष्ठभूमि को समझना होगा। असल में सीजेआई कभी भी सीईसी या ईसी की चयन प्रक्रिया का हिस्सा रहे ही नहीं थे। संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 चुनाव और चुनाव आयोग के बारे में है। इसमें सीईसी और ईसी की नियुक्ति के बारे में कोई विशिष्ट विधायी प्रक्रिया का जिक्र नहीं है। हां, ये जरूर कहा है कि संसद इन नियुक्तियों को लेकर कानून बना सकती है। मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं और यही परंपरा चली आ रही थी कि वह सरकार की सलाह पर नियुक्तियां करेंगे। 2015 में अनूप बर्नवाल नाम के शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल करके मांग की कि सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र और कोलेजियम जैसा सिस्टम बनाया जाए ताकि चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर कोई आंच न आए।


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