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    निगम चुनावों में इस बार कौन होगा सत्तासीन, पति या पत्नी…?

    -इस बार निगम चुनाव पार्टियों के साथ-साथ पति-पत्नी के बीच में भी लड़ा जायेगा, दोनो में हो रही कड़ी टक्कर

    नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/द्वारका/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/भावना शर्मा/- इस बार निगम चुनावों में एक आश्चर्यचकित करने वाली बात भी सामने आ रही है जिसमें पति-पत्नी में सत्तासीन होने को लेकर कड़ी टक्कर होने की बात सामने आ रही है। हालांकि अभी तक चुनावों में पत्नी अपने पति के नाम का इस्तेमाल करती रही है।
                   इसबार नजफगढ़ निगम वार्ड जोन में लगभग उन सभी सीटों पर पति-पत्नी की यह टक्कर देखने को मिलेगी जिन सीटों को परिसीमन के तहत महिला वार्ड घोषित किया जायेगा। अभी तक पत्नियां चुनावों में अपने पति के नाम का इस्तेमाल करती आई हैं। वहीं पति भी अपना वर्चस्व व लोगों में अपने नाम को बनाये रखने के लिए पत्नियों के नाम के साथ अपना नाम जोड़ते रहे है। लेकिन क्या इसबार भी ऐसा होगा या पत्निया अपने नाम के सहारे ही चुनाव लड़ेगी। इसबार एक और बात जो अलग दिखाई दे रही है कि इस बार चुनाव में पति-पत्नी के नाम के बीच ही टक्कर होती दिखाई दे रही है। कुछ ऐसी उम्मीदवार भी है जो रूतबें में पति से कहीं आगे निकल चुकी हैं तो वो कैसे पति के नाम को अपने नाम के साथ जोड़ेगी। एक रिपार्ट में सामने आया है कि इसबार निगम चुनावों पार्टियों के साथ-साथ पति-पत्नी के नाम के बीच भी लड़ा जायेगा। नजफगढ़ की बात करे तो गोपालनगर वार्ड में वर्तमान पार्षद महोदया सुरज अिंतम गहलोत लिखती है। वहीं दिचाऊं कलां वार्ड की पार्षद नीलम कृष्ण पहलवान लिखती हैं, नजफगढ़ निगम वार्ड की पार्षद मीना तरूण यादव लिखती हैं। इसी तरह पहले भी नामों का तालमेल चलता रहा है। हालांकि कई बार यह सवाल जरूर उठा था कि इससे महिलाओं की अपनी पहचान सामने नही आ पाती लोग उन्हे उनके पति के नाम से ही जानते हैं। इस बार के निगम चुनाव में भी अनेकों ऐसे संभावित उम्मीदवार है जो अभी से अपना व अपनी पत्नी का नाम साथ जोड़कर चुनावी वैतरणी में उतर रहे है। आज पार्टियों के कार्यकर्ता सिर्फ एक चेहरे पर नही बल्कि परिवार में ही पति-पत्नी के नाम पर संयुक्त उम्मीदवारी कर रहे है ताकि चुनावी परिसीमन में महिला वार्ड घोषित हो तो उसी नाम से पत्नी को मैदान में उतार देंगे लेकिन जब पति को टिकट मिला जाता है तो वह पत्नी का नाम अपने नाम से ऐसे काट देता है जैसे दूध से मक्खी निकालकर फेंकी जाती है।
                      अब असली विवाद की जड़ यही से शुरू होती है। महिलाऐं भी अब सिर्फ अपने नाम के साथ चुनाव लड़ना चाहती है ताकि उनकी भी अपनी एक निजी पहचान बन सके लेकिन पुरूष है कि पत्नियों को यह अवसर देना ही नही चाहते उनके नाम के साथ अपना नाम जोड़े रखना चाहते है ताकि जब अगले चुनाव में परिसीमन जनरल कैटेगिरी में हो तो वो इस नाम को भुनाकर चुनाव लड़ सकें। हाल-फिलहाल ऐसे अनेक नाम चुनावी बयार में बह रहे है जिन्हे संभावित उम्मीदवार आगे बढ़ा रहे है ताकि परिसीमन का परिणाम कोई भी हो सत्ता सिर्फ उनके ही हाथ रहे। यानी अगर पति नही तो पत्नी ही सही। ऐसे नामों में मनजीत राजेश कुमारी, संजय किरण मान राठी, संतोष सुखबीर शौकीन, यानी सभी उम्मीदवार चाहते है कि यदि उनकी उम्मीदवारी पक्की ना हो तो पत्नी को ही टिकट मिले यानी टिकट घर से बाहर न जाये। ये इस बार ही नही इससे पहले भी ऐसा होता रहा है। और ज्यादातर निगम चुनावों में इसका चलन तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि बड़े चुनावों जैसे विधायक व सांसद में ऐसा देखने को कम ही मिलता है। फिर लोग चाहते है कि सत्ता की चाबी उनके घर में रहे फिर पति बना या पत्नी क्या फर्क पड़ता है।
                      ऐसा नही है कि पत्निया इस बात से पूरी तरह से संतुष्ट है। कई उम्मीदवार महिलाओ ंका कहना है कि वह नही चाहती की उनकी पहचान राजनीति मे ंउनके पति से हो आखिर उनका भी अपना एक स्टेट्स है तो फिर उसका क्या ? लेकिन फिर भी कही न कही पत्निया इस बात को लेकर एडजेस्ट करती ही दिखाई देती है। अब देखना यह है कि क्या पत्निया इस बेड़ी को तोड़ पायेगी या फिर ऐसे ही पति के नाम के साथ चुनाव लड़ती रहेंगी ?

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