नजफगढ़ मैट्रो न्यूज/नई दिल्ली/शिव कुमार यादव/- चीन ने जापान से कहा है कि वो जुलाई में होने वाले नाटो समिट में हिस्सा न ले। चीन की फॉरेन मिनिस्ट्री ने कहा- जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा नाटो समिट में शिरकत के लिए लिथुआनिया न जाएं तो अच्छा होगा। इससे इस क्षेत्र का अमन बना रहेगा।
बयान में आगे कहा गया- जापान समेत हम सभी को इतिहास से सबक लेना चाहिए। किसी भी हरकत से इस इलाके का अमन दांव पर लग सकता है और इससे सभी को नुकसान होने का खतरा है।
जुलाई में होगी समिट
नाटो समिट जुलाई में लिथुआनिया में होने वाली है। रूस-यूक्रेन जंग को एक साल से ज्यादा हो चुका है। इस लिहाज से यह समिट काफी अहम मानी जा रही है। जापान वैसे तो नाटो का हिस्सा नहीं है, लेकिन अमेरिका और दूसरे सदस्य देशों ने उसे स्पेशल इनविटेशन दिया है। जापान सरकार कह चुकी है कि प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा इस समिट में हिस्सा लेने के लिए लिथुआनिया जा सकते हैं। इसके बाद से चीन सरकार जापान पर दबाव बनाने के लिए तमाम हथकंडे इस्तेमाल कर रही है।
माना जा रहा है कि जापान और नाटो के बाकी मेंबर्स टेक्नोलॉजी और इंटेलिजेंस शेयरिंग पर नए सिरे से कोई समझौता कर सकते हैं। इसके अलावा नाटो प्लस पर भी विचार किया जा सकता है। इसमें भारत और जापान को इसमें शामिल करने का प्रपोजल दिया जा सकता है।
चीन क्या कह रहा है
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने सोमवार को कहा- जापान को इस नाटो समिट में हिस्सा लेने से बचना चाहिए। अगर फुमियो किशिदा समिट में हिस्सा लेने के लिए लिथुआनिया जाते हैं तो इससे चीन और जापान के रिश्ते खराब हो सकते हैं। निंग ने आगे कहा- इस तरह के किसी प्लेटफॉर्म में जाने से इस रीजन की पीस और स्टेबिलिटी पर गंभीर असर पड़ेगा। हम सभी को इस तरह के हालात से बचने के लिए हाई अलर्ट पर रहना होगा। इतिहास से सबक सीखा जाए, ताकि किसी को भारी नुकसान न उठाना पड़े।
चीन की यह वॉर्निंग जापान को डराने के लिए है। दूसरी तरफ, जापान सरकार इशारा दे चुकी है किशिदा समिट में हिस्सा जरूर लेंगे। नाटो के सेक्रेटरी जनरल जेन्स स्टोलनबर्ग भी कह चुके हैं कि किशिदा को परेशान होने की जरूरत नहीं है। नाटो चाहता है कि उसका एक रीजनल ऑफिस अब जापान की राजधानी टोक्यो में भी खोला जाना चाहिए।
नाटो और तुर्की
नाटो का पूरा नाम नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन है। यह यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों का एक सैन्य और राजनीतिक गठबंधन है। नाटो की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई थी। इसका हेडक्वॉर्टर बेल्जियम के बु्रसेल्स में है। नाटो की स्थापना के समय अमेरिका समेत 12 देश इसके सदस्य थे। अब 30 सदस्य देश हैं, जिनमें 28 यूरोपीय और दो उत्तर अमेरिकी देश हैं। इस संगठन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी नाटो देशों और उसकी आबादी की रक्षा करना है। नाटो के आर्टिकल 5 के मुताबिक, इसके किसी भी सदस्य देश पर हमले को नाटो के सभी देशों पर हमला माना जाएगा।
1952 में नाटो से जुड़ा तुर्की इसका एकमात्र मुस्लिम सदस्य देश है।
नाटो की नींव कैसे पड़ी थी
दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ को रोकने के लिए अमेरिकी और यूरोपीय देशों ने एक सैन्य गठबंधन बनाया था, जिसे नाटो के नाम से जाना जाता है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और अमेरिका दो सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे, जो दुनिया पर अपना दबदबा कायम करना चाहते थे। इससे अमेरिका और सोवियत संघ के संबंध बिगड़ने लगे और उनके बीच कोल्ड वॉर की शुरुआत हुई। सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार दूसरे विश्व युद्ध के बाद कमजोर पड़ चुके यूरोपीय देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहती थी। सोवियत संघ की योजना तुर्की और ग्रीस पर दबदबा बनाने की थी। तुर्की और ग्रीस पर कंट्रोल से सोवियत संघ काला सागर के जरिए होने वाले दुनिया के व्यापार को नियंत्रित करना चाहता था। सोवियत संघ की इन विस्तारवादी नीतियों से पश्चिमी देशों और अमेरिका से उसके संबंध पूरी तरह खराब हो गए। आखिरकार यूरोप में सोवियत संघ के प्रसार को रोकने के लिए यूरोपीय देशों और अमेरिका ने मिलकर नाटो की नींव डाली।
रूस-यूक्रेन विवाद की वजह बना नाटो
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद नाटो ने खासतौर पर यूरोप और सोवियत संघ का हिस्सा रहे देशों के बीच तेजी से प्रसार किया। 2004 में नाटो से सोवियत संघ का हिस्सा रहे तीन देश- लातविया, एस्तोनिया और लिथुआनिया जुड़े, ये तीनों ही देश रूस के सीमावर्ती देश हैं। पोलैंड (1999), रोमानिया (2004) और बुल्गारिया (2004) जैसे यूरोपीय देश भी नाटो के सदस्य बन चुके हैं। ये सभी देश रूस के आसपास हैं और उनके और रूस के बीच में केवल यूक्रेन पड़ता है। यूक्रेन पिछले कई वर्षों से नाटो से जुड़ने की कोशिश करता रहा है। उसकी हालिया कोशिश की वजह से ही रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया है। यूक्रेन की रूस के साथ 2200 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है। रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन नाटो से जुड़ता है तो नाटो सेनाएं यूक्रेन के बहाने रूसी सीमा तक पहुंच जाएंगी। यूक्रेन के नाटो से जुड़ने पर रूस की राजधानी मॉस्को की पश्चिमी देशों से दूरी केवल 640 किलोमीटर रह जाएगी। अभी ये दूरी करीब 1600 किलोमीटर है। रूस चाहता है कि यूक्रेन ये गांरटी दे कि वह कभी भी नाटो से नहीं जुड़ेगा।
बता दें कि अमेरिका नाटो के जरिए रूस को चारों ओर से घेर रहा है। सोवियत संघ के टूटने के बाद 14 यूरोपीय देश नाटो में शामिल हो चुके हैं। अब वह यूक्रेन को भी नाटो में शामिल करना चाहता है।
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