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    कौन हैं स्वामी महाराज? जिन्होंने मुस्लिम बहुल UAE में रखा था हिन्दू मंदिर बनाने का विचार

    मानसी शर्मा / –  22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम जन्मस्थान पर बन रहे मंदिर में भगवान श्रीराम के बाल स्वरूप रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गई है, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। अब एक और मंदिर दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। यह मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि यह मुस्लिम खाड़ी देश संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में बना है, जिसका उद्घाटन आज यानी 14 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं।

    जबलपुर में हुआ था स्वामी महाराज का जन्म

    बोचासनवासी अक्षर पुरूषोत्तम स्वामीनारायण संस्था यानी बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के छठे आध्यात्मिक गुरु महंत स्वामी महाराज का जन्म 13 सितंबर 1933 को मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम मणिभाई नारायणभाई पटेल और माता का नाम दहिबेन है। उनके जन्म के कुछ समय बाद स्वामी नारायण संस्था के शास्त्रीजी महाराज जबलपुर में मणिभाई के घर आये। उन्होंने ही मणिभाई के नवजात बेटे का नाम केशव रखा था।

    घर में आध्यात्मिक वातावरण का प्रभाव

    मूल रूप से गुजरात के आनंद के रहने वाले मणिभाई व्यवसाय के लिए जबलपुर आए और वहीं बस गए। उनके घर का वातावरण अत्यंत आध्यात्मिक था, जिसका प्रभाव बालक केशव पर भी पड़ा। माता-पिता संतों का आदर करते थे और सत्संग में भाग लेते थे। इससे केशव बहुत प्रभावित हुए।

    योगीजी महाराज ने दीक्षा दी

    जबलपुर में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद केशव ने कृषि विज्ञान में स्नातक किया। अध्यात्म की ओर रुझान होने के कारण वे ब्रह्मस्वरूप शास्त्रीजी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी योगीजी महाराज के संपर्क में आये और अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ते रहे। वर्ष 1957 में योगीजी महाराज ने केशव को सदस्यता की दीक्षा दी, जिसके बाद उन्होंने अक्षरधाम मंदिर के निर्माण के दौरान सेवा की।

    पहली बार 1997 में सामने आया था ये विचार

    यह वर्ष 1997 की बात है, महंत स्वामी महाराज संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर गये थे। तभी उन्होंने अबू धाबी में स्वामीनारायण मंदिर की स्थापना का विचार व्यक्त किया, जिसके माध्यम से विभिन्न देशों, संस्कृतियों और धर्मों के बीच एकता को बढ़ावा दिया जा सके। वर्षों बाद, संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने 2015 में मंदिर के लिए भूमि आवंटन की घोषणा की।

    मंदिर के सात शिखर सात अमीरातों के प्रतीक हैं।

    32.92 मीटर यानी करीब 108 फीट ऊंचा, 79.86 मीटर यानी 262 फीट लंबा और 54.86 मीटर यानी 180 फीट चौड़ा यह मंदिर प्राचीन हिंदू ग्रंथों में वर्णित शिल्प शास्त्र के आधार पर बनाया गया है। बताया जा रहा है कि एक साथ 10 हजार लोगों की क्षमता वाला यह मंदिर पश्चिम एशिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होगा। इस मंदिर के अंदर सात मंदिर और सात शिखर हैं जिन्हें सात अमीरातों का प्रतीक कहा जाता है।

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